कला, साहित्य व शिक्षा के मध्य सम्बन्ध की विवेचना कीजिए ।
कला, साहित्य व शिक्षा के मध्य सम्बन्ध की विवेचना कीजिए ।
उत्तर— कला, साहित्य व शिक्षा में सम्बन्ध–कला मनुष्य की एक मधुर तथा कोमल कल्पना है, जिसकी अभिव्यक्ति वह रंग, धातु, मिट्टी, स्वर, शब्द आदि के माध्यम से व्यक्त करता है। कला की इस मधुरता में यह ध्यान रखना आवश्यक होता है कि इसमें किसी प्रकार का विकार न पैदा होने पाए। मानसिक विकारों के अवरोधन और निर्विकार की ओर अग्रसरण में ही कला की श्रेष्ठता है। कला स्वयं ललित होती है, यही इसकी प्रमुख विशेषता है।
कलाओं के आपसी सम्बन्ध उनकी समानता के आधार पर स्थापित किया जाता है। कलाओं के माध्यम चाहे भिन्न हैं, लेकिन उद्देश्य इन सब कलाओं का एक ही है, वह है सौन्दर्यानुभूति । अपने इर्द-गिर्द के वातावरण से, सुख दुःख की अनुभूति से तथा प्रकृति के सौन्दर्य से प्रभावित हो मानव मन को स्पन्दित कर यह सभी कलाएँ साकार हो उठती हैं।
कला एवं भाषा (साहित्य)—प्रत्येक शिक्षक को चाहे वह किसी भी विषय का हो, सामान्य कला का ज्ञान अवश्य रखना चाहिए। कहते हैं कि भाषा के शिक्षक को कला की आवश्यकता नहीं है, लेकिन यह भ्रम है। भाषागत विषयों को भी कला की सहायता से बहुत सुन्दर ढंग से पढ़ाया जा सकता है; जैसे—पद्य पाठ चाहे वह हिन्दी के हों, संस्कृत के हों, अंग्रेजी के हों या अन्य किसी भी भाषा के हों, यदि शिक्षक उन पाठों को संगीत की लय के अनुसार आरोह-अवरोह के द्वारा पढ़ाता है तो बालकों पर उसका अच्छा प्रभाव पड़ता है। कुछ पाठ ऐसे भी होते हैं जिन्हें हम संगीत के माध्यम से या चित्रकला के माध्यम से अच्छी तरह समझा सकते हैं। यदि भाषा का माध्यम साहित्य होता है। साहित्य का जन्म काव्य कला, संगीत कला और लेखन कला का मिश्रित प्रयास है। भाषा स्वयं कला है। भाषा में साहित्य के माध्यम से काव्य, नाटक, कहानी, निबन्ध आदि का रसास्वादन किया जाता है। भाषा में वर्णित किसी प्राकृतिक दृश्य को चित्रकला द्वारा सहयोगी रंगों के मेल से अभिव्यक्त किया जा सकता है। लयात्मक तथा गेय काव्य की पंक्तियों पर नृत्यात्मक कार्य प्रदर्शित किये जा सकते हैं। किसी नाटक को वास्तविक स्थिति में नाट्य कला द्वारा प्रदर्शित करते हुए हृदयस्पर्शी एवं आनन्ददायी बनाया जा सकता है।
कला एवं शिक्षा—कला उतनी ही पुरानी है जितना मानवीय जीवन। यह मानव जीवन अभिव्यक्ति भी है तथा सम्प्रेषण का माध्यम भी । प्रत्येक संस्कृति में मानव की मूलभूत आवश्यकताओं के साथ कला जुड़ी हुई है, इससे मनुष्य अपने भावों को अभिव्यक्त करता है। धारणाओं को बनाता है, आशाओं को संजोता है तथा भय की अभिव्यक्ति करता है। मानवीय जीवन की आवश्यकताओं की अभिव्यक्ति का यह माध्यम है। कला एक ऐसा माध्यम है जो व्यक्ति के भावों को अभिव्यक्त करती है। इस प्रकार कला की परिभाषा समय, काल तथा परिस्थितियों के अनुसार बदलती रही। कलात्मक रुचि से मनुष्य ने जो आनन्द अनुभव किया वही कला है। दूसरे शब्दों में हम इसको इस तरह भी कह सकते हैं। जीवन के प्रत्येक अंग को नियमित रूप से निर्मित करने को कला कहते हैं ।
कला और शिक्षा का परस्पर सम्बन्ध काफी घनिष्ठ है, शिक्षा में कला का विशेष स्थान है, क्योंकि कला शिक्षा का एक माध्यम तथा साधन है। मनुष्य के सामाजिक प्राणी बनने में शिक्षा का गहरा योगदान है। मानवीय जीवन के तीन पक्ष हैं—ज्ञानात्मक, भावात्मक तथा क्रियात्मक।
कला इन तीनों को विकसित करने में सहायता करती है। मानव मस्तिष्क आकृतियों के माध्यम से ज्ञान प्राप्त करता है। सीधी, टेढ़ी-मेढ़ी रेखाओं के माध्यम से उसकी भावनाओं को विकसित किया जाता है। रेखाओं को बनाने वाले हाथों को क्रियाशील बनाया जाता है। अतएव कला शिक्षा का अर्थ है बच्चे के व्यक्तित्व का सम्पूर्ण विकास । आधुनिक समय में कला जीवन का अनिवार्य अंग बन चुकी है अतएव जीवन की प्रत्येक क्रिया ही कला है क्योंकि कला को जीवन से अलग नहीं किया जा सकता है इसलिए कला शिक्षा की विशेष आवश्यकता है, शिक्षा भी कला है।
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