‘चिंतित भृकुटि क्षितिज तिमिरांकित, नमित नयन नभ वाध्याच्छादित’ की व्याख्या करें।
‘चिंतित भृकुटि क्षितिज तिमिरांकित, नमित नयन नभ वाध्याच्छादित’ की व्याख्या करें।
उत्तर :- प्रस्तुत पंक्ति हिन्दी साहित्य के ‘भारतमाता’ पाठ से उद्धत है जो सुमित्रानंदन पंत द्वारा रचित है। इसमें कवि ने भारत का मानवीकरण करते हुए पराधीनता से प्रभावित भारतमाता के उदासीन, दु:खी एवं चिंतित रूप को दर्शाया है।
प्रस्तुत व्याख्येय पंक्ति में कवि ने चित्रित किया है कि गलामी में जकडी भारतमाता चिंतित है, उनकी भृकुटि से चिंता प्रकट हो रही है, क्षितिज पर गुलामीरूपी अंधकार की छाया पड़ रही है, माता की आँखें अश्रुपूर्ण हैं, और आँसू वाष्प बनकर आकाश को आच्छादित कर लिया है । इसके माध्यम से परतंत्रता की दु:खद स्थिति का दर्शन कराया गया है ।
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
- Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
- Facebook पर फॉलो करे – Click Here
- Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
- Google News ज्वाइन करे – Click Here