‘स्वर्ण शस्य पर-पद-तल लुंठित, धरती-सा सहिष्णु मन कुंठित’ की व्याख्या करें।

‘स्वर्ण शस्य पर-पद-तल लुंठित, धरती-सा सहिष्णु मन कुंठित’ की व्याख्या करें।

उत्तर :- प्रस्तुत पंक्ति हिन्दी साहित्य के सुमित्रानंदन पंत रचित ‘भारतमाता’ पाठ से उद्धत है। इसमें कवि ने परतंत्र भारत का साकार चित्रण किया है।
प्रस्तुत व्याख्येय में कवि ने कहा है कि भारत पर अंग्रेजी हुकूमत कायम हो गयी है। यहाँ के लोग अपने ही घर में अधिकारविहीन हो गये हैं। पराधीनता के चलते यहाँ की प्राकृतिक शोभा भी उदासीन प्रतीत हो रही है । ऐसा प्रतीत होता है कि यहाँ कवि की स्वर्णिम फसल पैरों तले रौंद दी गयी है और भारतमाता का मन सहनशील बनकर कुंठित हो रही है। इसमें कवि ने पराधीन भारत की कल्पना को मूर्तरूप दिया है।

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