‘नानक लीन भयो गोविंद सो, ज्यों पानी संग पानी की व्याख्या करें।

‘नानक लीन भयो गोविंद सो, ज्यों पानी संग पानी की व्याख्या करें।

उत्तर :- प्रस्तुत पंक्ति हमारी पाठ्य-पुस्तक के महान संत कषि गुरुनानक के द्वारा रचित “जो नर दु:ख में दुःख नहिं मान” पाठ से उद्धत हैं। इसमें कवि ब्रह्म की सत्ता की महत्ता को बताते हैं।
प्रस्तुत व्याख्येय पंक्ति के माध्यम से कवि कहना चाहते हैं इस मानवीय जीवन में ब्रह्म को पाने की सच्ची युक्ति, यथार्थ उपाय करना आवश्यक है । परब्रह्म को पाना प्राणी का अंतिम लक्ष्य होना चाहिए। जिस प्रकार पानी के साथ पानी मिलकर एकसमान हो जाता है उसी प्रकार जीव जब ब्रह्म के सान्निध्य में जाता है तब ब्रह्ममय हो जाता है । जीवात्मा एवं परमात्मा में जब मिलन होता है तब जीवात्मा भी परमात्मा बन जाता है। दोनों का भेद मिट जाता है।

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