पाठ्यक्रम एवं प्रबन्धन व्यूहरचनाओं पर शिक्षा के उद्देश्यों का प्रभाव स्पष्ट कीजिए।
पाठ्यक्रम एवं प्रबन्धन व्यूहरचनाओं पर शिक्षा के उद्देश्यों का प्रभाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर— पाठ्यक्रम एवं प्रबन्धन व्यूहरचनाओं पर शिक्षा के उद्देश्यों का प्रभाव– समाज के व्यक्तियों की प्रमुख आवश्यकताओं एवं परिस्थितियों को ध्यान में रखकर ही शिक्षा के पाठ्यक्रम का निर्माण किया जाता है। शिक्षा मनुष्य का सर्वांगीण विकास करती है जिसमें उसके विभिन्न उद्देश्यों का समावेश होता है। शिक्षा के विभिन्न उद्देश्यों का पाठ्यक्रम तथा व्यवहार की रणनीतियों पर विशेष प्रभाव पड़ता है जिसको हम निम्न प्रकार समझ सकते हैं—
(1) छात्रों का सर्वांगीण विकास करना– जिस प्रकार शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य छात्रों का सर्वांगीण विकास करना होता है उसी प्रकार शिक्षा के इस उद्देश्य का प्रभाव पाठ्यक्रम एवं व्यवहार की रणनीतियों पर पड़ता है। शिक्षा के उद्देश्यों का निर्धारण देश, काल एवं परिस्थितियों के आधार पर निर्धारित किए जाते हैं जिनका व्यापक प्रभाव पाठ्यक्रम एवं व्यावहारिक रणनीतियों पर पड़ता है।
(2) सभ्यता व संस्कृति का हस्तान्तरण तथा विकास– शिक्षा के इस उद्देश्य के अनुसार सभ्यता एवं संस्कृति का एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक हस्तान्तरण तथा विकास को पाठ्यक्रम में समाहित किया जाता हैं। किसी समाज, देश की सभ्यता एवं संस्कृति को बनाए रखना शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य है जिसके आधार पर उस समाज की शिक्षा का पाठ्यक्रम एवं व्यवहार की रणनीतियों पर प्रभाव पड़ता है।
(3) नैतिक एवं चारित्रिक विकास– शिक्षा के नैतिक एवं चारित्रिक विकास का उद्देश्य बालक में सामाजिक गुणों के समावेश द्वारा उसमें सद्गुणों एवं चरित्र का निर्माण करना होता है। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु पाठ्यक्रम में इन गुणों के आधार पर विषय समावेश किया जाता है जिसका प्रभाव व्यावहारिक रणनीतियों पर भी पड़ता हैं अर्थात् व्यावहारिक रूप से इनको समाज में स्वीकृति प्राप्त होती है ।
(4) मानसिक एवं रचनात्मक शक्तियों का विकास– पाठ्यक्रम का निर्माण शिक्षा के मानसिक एवं रचनात्मक शक्तियों के विकास से प्रभाव पर आधारित होता है। पाठ्यक्रम में बच्चे के मानसिक विकास एवं उनमें रचनात्मक शक्तियों के विकास ध्यान में रखते विभिन्न रचनात्मक खेलों, क्रियाओं आदि को पाठ्यक्रम में समावेश किया जाता है जिससे बच्चे का पूर्ण मानसिक एवं रचनात्मक विकास हो सके। शिक्षा के इन उद्देश्यों का व्यावहारिक रणनीतियों पर भी विशेष प्रभाव पड़ता है क्योंकि यह उद्देश्य सम्पूर्ण रूप से स्वस्थ बालकों का निर्माण करना है।
(5) व्यावसायिक विकास– नवीन युग की आवश्यकतानुरूप शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य व्यावसायिक विकास द्वारा बच्चे में कुशलता एवं क्षमता का विकास करना है जिसके अनुरूप पाठ्यक्रम का निर्माण किया जाता है तथा व्यावसायिक विषयों का समावेश व्यवहार की रणनीतियों के आधार पर किया जाता है ।
(6) लोकतान्त्रिक भावना का विकास– शिक्षा के उद्देश्य के आधार पर ही पाठ्यक्रम में लोकतान्त्रिक भावना के विकास हेतु पाठ्यक्रम में समभाव एवं एकता पर आधारित विषयों का समावेश किया जाता है। समाज के विभिन्न मूल्यों, संस्कृति का ज्ञान देकर सामाजिकता एवं सुनागरिकता के गुणों के विकास द्वारा लोकतान्त्रिक भावना विकास को ध्यान में रखकर पाठ्यक्रम एवं व्यवहार की रणनीतियाँ तैयार की जाती
(7) निरीक्षण एवं तर्क शक्तियों का विकास– पाठ्यक्रम में बालकों को स्वतन्त्र वातावरण प्रदान करने के उद्देश्य का समावेश किया जाता है जिससे बालक स्वयं के विचार, तर्क एवं निरीक्षण द्वारा वास्तविक तथ्य की खोज कर सके बच्चों में तर्क सम्मत निर्णय लेने की शक्ति का विकास करने हेतु पाठ्यक्रम ही उपयुक्त वातावरण प्रदान कर सकता है। शिक्षा का यह उद्देश्य व्यावहारिक दृष्टि से भी तर्क संगत है।
(8) नवीन खोजों एवं वैज्ञानिक विधियों का ज्ञान– शिक्षा के उद्देश्यों में प्रमुख रूप नवीन तथ्यों का समावेश करना होता है। शिक्षा का पाठ्यक्रम भी शिक्षा के उद्देश्यों से प्रभावित होता है तथा आधुनिक समाज की माँग के अनुसार पाठ्यक्रम में इनका समावेश किया जाता है जिससे पाठ्यक्रम अधिक उपयोगी एवं व्यावहारिक रणनीतियों पर आधारित हो। इससे बालकों में जिज्ञासा प्रवृत्ति तथा खोज करने की प्रवृत्ति का विकास होता है।
(9) भावी जीवन हेतु तैयार करना– शिक्षा बालक को उसके भविष्य हेतु तैयार करती है तथा उसे सक्षम बनाती है। इसी प्रकार पाठ्यक्रम विषयों व क्रियाओं के मध्य समन्वय व सामंजस्य स्थापित करके बालक का शारीरिक, मानसिक व सर्वांगीण विकास करने का प्रयत्न करना है । सन्तुलित विकास द्वारा व्यावहारिक रणनीतियों को भी शिक्षा के उद्देश्य प्रभावित करते हैं ।
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