शिक्षण के परम्परागत स्वरूप से लेकर आधुनिक स्वरूप तक होने वाली शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया का उल्लेख कीजिए।

शिक्षण के परम्परागत स्वरूप से लेकर आधुनिक स्वरूप तक होने वाली शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया का उल्लेख कीजिए।

उत्तर— शिक्षा की व्यवस्था प्राचीन काल से ही चली आ रही है। प्राचीन काल में परम्परागत शिक्षण अधिगम व्यवस्था थी। उस समय शिक्षक को ही अधिक महत्त्व जाता था परन्तु वर्तमान में शिक्षण-अधिगम व्यवस्था में काफी परिवर्तन हो रहा है। आजकल शिक्षक केवल मार्गदर्शक के रूप में रहता है। शिक्षण का मुख्य केन्द्र छात्र ही होता है। शिक्षक शैक्षिक उद्देश्यों को पूरा करने के लिए, शिक्षार्थी को केन्द्र बिन्दु मान कर अपना शिक्षण करता है।
परम्परागत शिक्षण—
(1) परम्परागत शिक्षण में शिक्षण से तात्पर्य विषयवस्तु को छात्रों के सम्मुख प्रस्तुत करना था ।
(2) इस विधि में छात्र मात्र निष्क्रिय श्रोता ही रहता था ।
(3) छात्र को बार-बार प्रेरणा प्रदान करने की आवश्यकता रहती थी।
(4) उस समय शिक्षा के उद्देश्य स्पष्ट नहीं होते थे।
(5) शिक्षक की भूमिका ही प्रमुख होती थी।
(6) मूल्यांकन में वस्तुनिष्ठता का अभाव रहता था ।
(7) विषयवस्तु की तैयारी में अधिक परिश्रम नहीं करना पड़ता था।
परम्परागत शिक्षण अधिगम प्रक्रिया – परम्परागत शिक्षण अधिगम -प्रक्रिया में शिक्षक अपने शिक्षण में प्राचीन शिक्षण विधि का ही प्रयोग करता है तथा छात्र केवल श्रोता ही बने रहते हैं । कक्षा में शिक्षण को प्रभावी बनाने के लिए केवल श्यामपट्ट, खड़िया या कुछ हस्तनिर्मित चार्ट व मॉडल ही होते हैं। शिक्षक व छात्रों के मध्य कोई अन्तः क्रिया नहीं होती थी। शिक्षण अधिगम को प्रभावी बनाने के लिए कोई दृश्य व श्रव्य सामग्री का प्रयोग भी नहीं होता था।
शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया का परिवर्तित रूप – वर्तमान में शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के रूप में काफी परिवर्तन हो रहा है। अब शिक्षण का मुख्य केन्द्र बिन्दु शिक्षक न होकर छात्र ही होता है। शिक्षक मात्र मार्गदर्शक होता है।
वर्तमान में शिक्षण प्रक्रिया में निम्नलिखित सूत्रों का प्रयोग किया जाता है—
(1) ज्ञात से अज्ञात की ओर।
(2) सरल से जटिल की ओर।
(3) सुगम से कठिन की ओर।
(4) विशिष्ट से सामान्य की ओर।
(5) मूर्त से अमूर्त की ओर।
(6) सम्पूर्ण से खण्ड की ओर ।
(7) मनोवैज्ञानिक से तार्किक की ओर।
(8) अनिश्चत से निश्चित की ओर।
(9) विश्लेषण से संश्लेषण की ओर।
(10) निकट से दूर की ओर।
अब तक शिक्षक वस्तु के शिक्षण पर ही अधिक जोर देता था, किन्तु वर्तमान में शिक्षण के स्थान पर सीखने को अधिक महत्त्व दिया जाने लगा है। अतः शिक्षण हेतु नियोजन करते समय अध्यापक को उन बातों पर अधिक ध्यान देना चाहिये जो प्रत्यक्ष रूप से छात्र अधिगम से सम्बन्धित है जैसे— शिक्षण के उद्देश्य, पाठ्य वस्तु विश्लेषण आदि । जहाँ तक शिक्षण उद्देश्यों का सम्बन्ध है, शिक्षक को व्यवहारगत या अनुदेशात्मक उद्देश्यों को ही लेना चाहिये, क्योंकि परम्परागत उद्देश्य स्पष्ट नहीं होते हैं तथा ये उद्देश्य दीर्घावधि तक चलने वाली प्रक्रिया के द्योतक होते हैं । परम्परागत शिक्षण उद्देश्य छात्रों को प्रेरणा देने तथा उनका सही मूल्यांकन करने में सहायक नहीं होते। अधिगम के नवीन साधनों में शिक्षक व छात्र का सानिध्य आवश्यक नहीं है ।
शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में शैक्षिक तकनीकी का प्रयोग – अधिगम प्रक्रिया को प्रभावपूर्ण बनाने के लिए आजकल शैक्षिक तकनीकी का प्रयोग किया जाता है । शैक्षिक तकनीकों का मुख्य उद्देश्य यह है कि समय तक सीमित साधनों के अन्तर्गत भी अधिकतम शैक्षिक उपलब्धि प्राप्त हो सके। इसको व्यक्तियों तथा मशीनों के समन्वित कार्यकलापों द्वारा साकार बनाया जा सकेगा। शिक्षक प्रबन्धक, मार्गदर्शक के रूप में कार्य करे, ताकि उपलब्ध साधनों का अधिकतम उपयोग किया जा सके।
शैक्षिक साधनों के उपयोग से लाभ—
(1) अभिक्रमित अध्ययन द्वारा छात्रों में स्वतः अध्ययन की प्रकृति का विकास होगा।
(2) सूक्ष्म शिक्षण तथा अनुकरणीय शिक्षण प्रविधियों के प्रयोग से प्रशिक्षण प्रभावशाली एवं सार्थक बनाया जा सकेगा।
(3) नए शिक्षण प्रतिमान, शिक्षण विधियों, उपकरणों आदि से शिक्षण को प्रभावशाली बनाया जा सकेगा।
(4) रेडियो, टेलीविजन, कम्प्यूटर तथा प्रोजेक्टर आदि के शिक्षण में प्रयोग से छात्रों के एक बड़े समूह को शिक्षा प्रदान की जा सकेगी।
(5) शैक्षिक तकनीकी के प्रयोग से शिक्षा में अनुसंधान तथा शोध कार्य में सफलता मिलेगा।
(6) छात्रों को अधिगम में सुविधा मिलेगी।
शैक्षिक माध्यम बहुत ही उपयोगी साधन है। यह शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में सहायता प्रदान करना है। प्रभावशाली एवं उपयोगी अधिगम के लिए यह आवश्यक है। इससे सीखने वाले को अर्थपूर्ण अधिगम अनुभव प्रदान किया जा सकता है। शैक्षिक साधन के रूप में शिक्षक अपने शिक्षण को रोचक बना सकता है। शैक्षिक साधनों के उपयोग से कक्षा का वातावरण बदल जाता है तथा शिक्षार्थी रुचि से पढ़ते हैं।
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