प्रायोजना विधि” से आप क्या समझते हैं ? क्या यह विधि भारतीय विद्यालयों में व्यावहारिक है ? अपने स्वयं के अनुभवों से ठोस उदाहरण देते हुए अपने उत्तर का औचित्य प्रतिपादित कीजिए ।

प्रायोजना विधि” से आप क्या समझते हैं ? क्या यह विधि भारतीय विद्यालयों में व्यावहारिक है ? अपने स्वयं के अनुभवों से ठोस उदाहरण देते हुए अपने उत्तर का औचित्य प्रतिपादित कीजिए । 

उत्तर—”प्रायोजना विधि”–योकम व सिम्पसन के अनुसार, प्रोजेक्ट स्वाभाविक वातावरण में किये जाने वाले स्वाभाविक एवं जीवनतुल्य कार्य की एक बड़ी इकाई होती है। इसमें किसी कार्य को करने या किसी वस्तु को बनाने की समस्या का पूर्ण रूप से समाधान करने का प्रयास किया जाता है। प्रोजेक्ट उद्देश्यपूर्ण होता है। हम प्रोजेक्ट या प्रायोजना के अर्थ को अधिक स्पष्ट करने के लिए कुछ लेखकों की परिभाषाएँ नीचे दे रहे हैं—
किलपैट्रिक के अनुसार, “प्रोजेक्ट सामाजिक वातावरण में पूर्ण संलग्नता से किया जाने वाला उद्देश्यपूर्ण कार्य है । “
स्टीवेन्सन के अनुसार, “प्रोजेक्ट एक समस्यात्मक कार्य है, जिसका समाधान उसके प्रकृत वातावरण में रहते हुए ही किया जाता है।”
पार्कर के मतानुसार, “प्रोजेक्ट कार्य की एक इकाई है, जिसमें छात्रों को कार्य की योजना और सम्पन्नता के लिए उत्तरदायी बनाया जाता है।”
बैलार्ड के कथनानुसार, “प्रोजेक्ट वास्तविक जीवन का एक छोटासा अंश होता है, जिसे विद्यालय में सम्पादित किया जाता है। “
योजना विधि का अर्थ–योजना विधि के अर्थ को स्पष्ट करते हुए मरसेल ने लिखा है, “शिक्षण की निगमन या आगमन विधि के समान योजना – विधि के सार रूप में न तो कभी शिक्षण की पद्धति थी और न है। इसकी मूल धारणा यह है कि सीखने वाले का सक्रिय उद्देश्य अति महत्त्वपूर्ण होता है। सीखने वाले को स्वयं कार्य करना चाहिए, अन्यथा वह अच्छी प्रकार से नहीं सीख सकेगा । “
सामाजिक अध्ययन में योजनाओं के उदाहरण–सामाजिक अध्ययन में विभिन्न योजनाओं का प्रयोग सम्भव है। सामाजिक अध्ययन मानवीय सम्बन्धों का अध्ययन करने वाला विषय है । इन सम्बन्धों के आन्तरिक स्वरूप को समझने के लिए योजनाएँ बहुत ही महत्त्वपूर्ण हैं, क्योंकि योजनाओं की पूर्ति सामाजिक वातावरण में ही सम्भव है। सामाजिक अध्ययन में निम्नलिखित योजनाओं को प्रयोग में लाया जा सकता है—
(1) ग्राम पंचायत का चुनाव, संगठन एवं कार्य-प्रणाली ।
(2) विद्यालय में विभिन्न चुनाव |
(3) विद्यालय में विभिन्न परिषदों, गोष्ठियों तथा समुदायों का संगठन एवं उनकी कार्य-प्रणाली ।
(4) ग्राम, नगर तथा विद्यालय की सफाई ।
(5) हमारे उत्सव ।
(6) विद्यालय की कृषि ।
(7) सिंचाई के साधन ।
(8) सामुदायिक सर्वेक्षण ।
(9) विभिन्न ऐतिहासिक, औद्योगिक, भौगोलिक आदि स्थानों की यात्राएँ ।
(10) नाटकों का लेखन एवं उनका अभिनय ।
(11) विभिन्न वस्तुओं— सिक्कों, टिकटों, मुहरों, बर्तनों आदि का संग्रह ।
(12) स्क्रेप बुक्स का निर्माण ।
(13) मानचित्र, मॉडल, समय-रेखा, समय-ग्राऊ, चित्र आदि का निर्माण ।
(14) यातायात के साधन ।
(15) सहकारी बैंक, विद्यालय, पोस्ट ऑफिस, सहकारी दुकान आदि का संचालन ।
योजना विधि के गुण–निम्नलिखित हैं—
(1) योजना पद्धति के द्वारा छात्रों को सहयोगी ढंग से रहने, विचार करने तथा कार्य करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है जिससे वे समान अभिप्रायों को प्राप्त करने में सफल होते हैं। इसके द्वारा छात्रों में उत्तम सामाजिक गुणों एवं आदतों का विकास किया जाता है जिससे वे समाज की स्थिति को सुधारने में सहायक हो सकें तथा उसमें सफलतापूर्वक अपना जीवन व्यतीत कर सकें। इसके द्वारा छात्रों में व्यावहारिक गुणों का भी विकास होता है, जिससे वे अपने व्यावहारिक जीवन को श्रेष्ठ बनाने में सफल होते हैं ।
(2) इसके द्वारा विभिन्न विषयों में सरलता से समन्वय स्थापित किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त पाठ्यक्रम में भी एकीकरण स्थापित किया जा सकता है क्योंकि योजना एक अभिप्राय युक्त क्रिया होती है, जिसको सामाजिक पर्यावरण में रहकर पूर्ण किया जाता है। इस प्रकार पाठ्यक्रम का वास्तविक जीवन से सम्बन्ध स्थापित होता है जो इसका विशेष गुण है।
(3) इस विधि द्वारा रटने की प्रवृत्ति को निरुत्साहित किया जाता है और छात्रों को चिन्तन, तर्क तथा निर्णय के आधार पर समस्या सुलझाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। इस प्रकार उनमें स्वाध्याय की आदत का निर्माण होता है।
(4) यह पद्धति सीखने के सिद्धान्तों पर आधारित है। उदाहरणार्थ, अभ्यास, तत्परता तथा परिणाम का नियम । इस कारण यह विधि मनोवैज्ञानिक है ।
(5) बालकों में इस विधि के द्वारा सतत् प्रयत्नशील तथा रचनात्मक सक्रियता का विकास होता है ।
(6) योजना के विधि अन्तर्गत शिक्षालय के जीवन की वास्तविक जीवन से सम्बन्धित किया जाता है। वे अपनी योजनाओं की पूर्ति सामाजिक पर्यावरण में करते हैं, जिनमें वे व्यावहारिक जीवन की शिक्षा प्राप्त कर लेते हैं और बाद में उनको जीवन की कठिनाइयों को सुलझाने में कोई कठिनाई नहीं होती। इस सम्बन्ध के कारण बालक स्वयं अपने मूल्यों का निर्माण करने में सफल होता है।
(7) इस विधि में क्रिया पर बल दिया जाता है। छात्र इसके द्वारा ज्ञान प्राप्त करते हैं।
(8) इस विधि के प्रयोग से कक्षा-शिक्षण के दोषों का निवारण किया जा सकता है। इसमें छात्र वैयक्तिक एवं सामूहिक रूप से अपनी योग्यता, रुचि तथा क्षमता के अनुसार कार्य करते हैं। इस प्रकार इसमें सामूहिक तथा वैयक्तिक दोनों प्रकार के शिक्षण के लिये समान अवसर पाये जाते हैं ।
(9) इस विधि के प्रयोग से छात्रों में सामाजिक आदर्शों, गुणों, आदतों तथा अभिरुचियों का विकास होता है।
(10) इस विधि के द्वारा छात्रों को श्रम करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है जिससे वे श्रम के महत्त्व को समझ सकें और राष्ट्र एवं विश्व के श्रमिकों का आदर कर सकें।
(11) योजना विधि वैयक्तिक भेदों के अनुकूल सीखने के अनुभव प्रदान करती है।
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