प्लेटो द्वारा प्रतिपादित पाठ्यक्रम के विभिन्न पक्षों का वर्णन कीजिए ।

प्लेटो द्वारा प्रतिपादित पाठ्यक्रम के विभिन्न पक्षों का वर्णन कीजिए । 

                          अथवा
प्लेटो के शिक्षा सम्बन्धी विचारों का वर्णन कीजिए ।
उत्तर— प्लेटो—प्लेटो यूनान का आदर्शवादी दार्शनिक। उसकी दो प्रमुख पुस्तकें ‘रिपब्लिक’ और ‘लॉज’। एथेन्स की पुष्पित सभ्यता प्लेटो के दर्शन की देन । उसके पिता अच्छे खिलाड़ी । वह खेल और संगीत के माध्यम से शिक्षा देने का इच्छुक।
सुकरात से सम्पर्क—20 वर्ष की अवस्था में सादा जीवन बिताने वाले दार्शनिक से सम्पर्क | सुकरात के सादे जीवन ने प्लेटो के तड़कभड़क वाले जीवन को प्रभावित किया । सुकरात की मृत्यु के बाद प्लेटो अस्त-व्यस्त । प्लेटो के अनुसार ज्ञान की अपेक्षा गुणों को समझना महत्त्वपूर्ण ।
निजी उद्देश्य की खोज—सुकरात की मृत्यु के बाद प्लेटो मिस्र और मेगारा गया। मिस्र की शिक्षा व्यवस्था से प्रभावित । सिसली की राज्य व्यवस्था से राजनीतिक प्रेरणा । राजनीति में विशेष रुचि ली । शिक्षासिद्धान्तों के प्रमाणन के लिए प्लेटो द्वारा पाठशाला स्थापना । दर्शन, गणित, संगीत, खेल, मनोविज्ञान, समाजशास्त्र और राजनीतिक के विषयों पर बल । ज्ञान की सत्यता परख कर ही ज्ञान को स्वीकार करने वाला।
प्लेटो के अनुसार शिक्षा—राज्य का कर्त्तव्य है नागरिकों के लिए शिक्षा-व्यवस्था करना । कुटुम्ब या व्यक्ति द्वारा शिक्षा व्यवस्था अमान्य। संस्कृति की शिक्षा अनिवार्य । शिक्षा द्वारा योग्य नागरिक तैयार करना आवश्यक। स्पार्टा में व्यवस्था राज्य-नियंत्रित । एथेन्स के लिए भी यही व्यवस्था आवश्यक।
प्लेटो के शिक्षा—प्लेटो के रिपब्लिक और लॉज में शिक्षा-सिद्धान्तों का वर्णन । निम्नलिखित बातें आवश्यक। यूनानी विचारकों की समस्याओं के लिए मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों का उपयोग, शिक्षा दर्शन सभी कालों और देशों में प्रेरक | यूनानी शिक्षा और समाज की आलोचना तथा विचार ऐतिहासिक महत्त्व के । प्लेटो के अनुसार राज्य, समाज और व्यक्ति के विकास के लिए शिक्षा आवश्यक । शिक्षा-सिद्धान्त के चार भाग— 1. योग्यता, 2. ज्ञान, 3. सेवा, 4. राजनीतिज्ञता । ज्ञान की अपेक्षा गुण पर अधिक बल प्लेटो के अनुसार गुण, ज्ञान नहीं एक दैवी देन । आनन्द और पीड़ा के आधार पर गुण-अवगुण की परख ।
प्लेटो और शिक्षा का कार्य—शिक्षा का उद्देश्य एवं कार्य आदर्श नागरिकों का निर्माण, राज्य द्वारा शिक्षा की व्यवस्था । सत्यं, शिवं सुन्दरं, शिक्षा के लक्ष्य – इससे विश्व कल्याण की भावना । व्यक्तित्व में सम्पूर्णता लाना, शरीर-मस्तिक में सामंजस्य लाना आवश्यक । समाज और राज्य के अहित में किसी भी नागरिक को स्वतंत्रता नहीं । शिक्षा द्वारा गुण और विवेक जागृत ।
प्लेटो के अनुसार शिक्षा प्रकार और कार्यक्रम—यूनानी शिक्षा प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च स्तर में विभाजित नहीं । व्यावसायिक शिक्षा निम्न कोटि की । इसे कुटुम्ब द्वारा राज्य द्वारा देना उपयुक्त नहीं । उच्च वर्ग की शिक्षा राज्य प्रशासन के लिए।
शिक्षा के कार्यक्रम—
(1) जन्म से छः वर्ष की आयु तक—स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान, संस्कृति का ज्ञान । संगीत, कला, नृत्य के माध्यम से धार्मिक शिक्षा  खेल-कूद, घुड़सवारी आदि ।
(2) छ: वर्ष से तेरह वर्ष की आयु तक—पहले शिक्षण कार्य फिर खेलकूद में भाग लेना । साहित्यिक विषयों का अध्ययन उपयुक्त नहीं।
(3) तेरह से सोलह वर्ष की आयु तक—धार्मिक भजन, राष्ट्रीय काव्य, संगीतात्मक प्रणाली से । तर्क-शक्ति का विकास। अंकगणित का । सीखना।
(4) सोलह से बीस वर्ष तक की आयु तक—शारीरिक शिक्षा, सैन्य शिक्षा, व्यायाम, खेल-कूद । सैनिक बनने पर बल, साहित्य का ज्ञान नहीं।
(5) बीस से तीस वर्ष की आयु तक—विज्ञान का ज्ञान, खोज की प्रवृत्ति । वस्तु और परिस्थिति के सम्बन्धों का ज्ञान । वैज्ञानिक दृष्टिकोण ।
(6) तीस से पैंतीस वर्ष की आयु तक—दर्शन शास्त्र, तर्क शास्त्र, व्याख्यान, आचार शास्त्र, ज्ञान शास्त्र और मनोविज्ञान का ज्ञान, राज्य प्रशासकों के लिए |
(7) पैंतीस से पचास वर्ष की आयु में—35 वर्ष बाद प्रशासक की प्रोन्नति पचास वर्ष सेवा निवृत्ति ।
(8) पचास से अधिक आयु में—समाज की अपने अनुभवों से सेवा ज्ञान और सत्य की खोज ।
प्लेटो के शिक्षा-सिद्धान्तों का शिक्षा पर प्रभाव—प्रारम्भ में अज्ञानतावश कोई प्रभाव नहीं । ईसा पूर्व से ही शिक्षा में प्लेटो के सिद्धान्तों का व्यवहार प्रारम्भ। मध्य युग में प्लेटो के सिद्धान्त अधिक प्रयुक्त । आज भी आदर्शवादी दृष्टिकोण से प्लेटो के सिद्धान्तों को स्वीकार किय जाना और उन्हें मनोविज्ञान के द्वारा व्यावहारिक रूप देना संभव ।
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