बिहार में डेनिस कंपनी का आगमन

बिहार में डेनिस कंपनी का आगमन

डेनिश

डेनिश ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना 1616 में की गई।

→ सेरमपुर तथा ट्रैकोबार डेनों का प्रमुख व्यापारिक केंद्र था।

→ 1845 में उन्होंने अपनी फैक्ट्रियाँ ब्रिटिश कंपनी को बेच दीं।

भारत में आनेवाली यूरोपीय कंपनियों (European Companies) में डेनमार्क का नाम सबसे अंत में लिया जाता है। प्रायः 1774-75 ई. में पटना में डेनमार्क के कंपनी की फैक्टरी की स्थापना हुई। मई, 1775 में पटना की डेनिस फैक्टरी के प्रमुख जॉर्ज वर्नर ने बिहार में व्यापार के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी के गवर्नर जनरल एवं उनकी परिषद् से फरमान की माँग की। डेनिस कंपनी भी मुख्य रूप से शोरे का व्यापार करती थी।

1801 ई. में ग्रेट ब्रिटेन एवं डेनमार्क के बीच युद्ध आरंभ हुआ, जिसके परिणामस्वरूप भारत में भी दोनों कंपनियों के बीच तनाव उत्पन्न हुए। पटना की डेनिस फैक्टरी एवं सेरामपुर की कोठी को अंग्रेजों ने जब्त कर लिया। 1802 ई. में आमियाँ की संधि हुई और भारत में डेनमार्क के स्वामित्व वाले क्षेत्रों को वापस कर दिया गया। 1845 ई. तक बिहार के सारे डेनिस माल गोदाम एवं ठिकाने अंग्रेजों के अधीन हो गए। अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी का आगमन बिहार में अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी के स्थायी माल गोदामों की स्थापना को लेकर विद्वानों में मतभेद हैं। अधिकतर इतिहासकारों का मानना है कि ईस्ट इंडिया कंपनी के स्थायी माल गोदाम की स्थापना 1691 ई. में पटना के गुलजार बाग में की गई थी। कंपनी की रुचि अमवर्ती कैलिको वस्त्र एवं कच्चे रेशम से संबंधित व्यापार में थी। इसके अतिरिक्त वे शोरा तथा अफीम को भी व्यापार का अभिन्न अंग मानते थे। पटना के समीप लखबार में कैलिको वस्त्र बड़े पैमाने पर तैयार किए जाते थे।

1664 ई. में जॉब चारनाक को पटना की अंग्रेजी फैक्टरी का प्रमुख नियुक्त किया गया, जो 1680-81 तक इस पद पर बना रहा। बिहार के सूबेदार साइस्ता खान द्वारा 1680 ई. में अंग्रेजों की कंपनी के व्यापार पर 3.5 प्रतिशत कर लगा दिए जाने के कारण जॉब चारनाक ने 1686 ई. में हुगली शहर को लूट लिया। परिणामस्वरूप साइस्ता खान ने बंगाल एवं बिहार में अंग्रेजों की समस्त संपत्ति को जब्त करने का आदेश दिया, लेकिन 1690 ई. में एक समझौते के तहत अंग्रेजों को पुनः व्यापार करने की स्वतंत्रता प्रदान की। मुगल बादशाह औरंगजेब की मृत्यु के साथ ही अंग्रेजों की व्यापारिक गतिविधियों में रुकावट आई। फर्रुखसियर के शासन काल में 1713 ई. में पटना फैक्टरी को बंद कर दिया गया, लेकिन उसने पुनः 1717 ई. में अंग्रेजों को बिहार एवं बंगाल में व्यापार करने की स्वतंत्रता प्रदान कर दी। अतः पटना फैक्टरी को अंग्रेजों ने 1718 ई. में पुनः खोल दिया। नवाब अलीवर्दी खान के दबाव के कारण पटना फैक्टरी 1750 ई. में पुनः बंद कर दी गई, लेकिन हॉलवेल ने प्रयास करके 1755 ई. में पटना फैक्टरी को पुनः शुरू कर दिया। 1757 ई. में प्लासी युद्ध एवं 1764 ई. के बक्सर युद्ध के फलस्वरूप बिहार ब्रिटिश आधिपत्य में पूर्णरूप से आ गया। बक्सर युद्ध के पश्चात् लॉर्ड क्लाइव तथा मुगल सम्राट् शाह आलम द्वितीय के बीच 12 अगस्त, 1765 को इलाहाबाद में एक संधि हुई, जिसके द्वारा कंपनी को बिहार, बंगाल एवं उड़ीसा की दीवानी प्राप्त हुई।

हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
  • Whats’App ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Facebook पर फॉलो करे – Click Here
  • Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
  • Google News ज्वाइन करे – Click Here

Ajit kumar

Sub Editor-in-Chief at Jaankari Rakho Web Portal

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *