भारत में सामाजिक-धार्मिक सुधारों को पुस्तकों एवं पत्रिकाओं ने – किस प्रकार बढ़ावा दिया?

भारत में सामाजिक-धार्मिक सुधारों को पुस्तकों एवं पत्रिकाओं ने – किस प्रकार बढ़ावा दिया?

उत्तर ⇒ 18वीं तथा 19वीं शताब्दी में प्रेस ज्वलंत राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक प्रश्नों को उठानेवाला एक सशक्त माध्यम बन गया। 19वीं सदी में बंगाल में “भारतीय पुनर्जागरण” हुआ। इससे सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन का मार्ग प्रशस्त हुआ। परंपरावादी और नई विचारधारा रखनेवालों ने अपने-अपने विचारों का प्रचार करने के लिए पुस्तकों और पत्र-पत्रिकाओं का सहारा लिया। राजा राममोहन राय ने अपने विचारों को प्रचारित करने के लिए बंगाली भाषा में संवाद कौमुदी पत्रिका का प्रकाशन 1821 में किया। उनके विचारों का खंडन करने के लिए रूढ़िवादियों ने समाचार चंद्रिका नामक पत्रिका प्रकाशित की। राममोहन राय ने 1822 में फारसी भाषा में मिरातुल अखबार तथा अंग्रेजी भाषा में ब्राह्मनिकल मैगजीन भी प्रकाशित किया। उनके ये अखबार सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन के प्रभावशाली अस्त्र बन गए। भारतीय समाचार-पत्रों ने सामाजिक-धार्मिक समस्याओं से जुड़े ज्वलंत प्रश्नों को उठाया। समाचार-पत्रों ने न्यायिक निर्णयों में किए गए पक्षपातों, धार्मिक मामले में सरकारी हस्तक्षेप और औपनिवेशिक प्रजातीय विभेद की नीति की आलोचना कर राष्ट्रीय चेतना जगाने का प्रयास किया।

Ajit kumar

Sub Editor-in-Chief at Jaankari Rakho Web Portal

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