‘भाषा एवं क्षेत्र’ पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए ।

‘भाषा एवं क्षेत्र’ पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए ।

उत्तर— भाषा एवं क्षेत्र– भाषा वह साधन है जिसके द्वारा हम अपने विचारों को व्यक्त करते हैं और इसके लिए हम वाचिक ध्वनियों का प्रयोग करते हैं। भाषा सुख से उच्चारित होने वाले शब्दों और वाक्यों आदि का वह समूह है जिनके द्वारा मन की बात बतलाई जाती है। भाषा की सहायता से ही किसी एक समाज या देश के लोग अपने मनोभाव तथा विचार एक-दूसरे पर प्रकट करते हैं।
भाषा का सम्बन्ध एक व्यक्ति से लेकर सम्पूर्ण विश्व सृष्टि तक है। व्यक्ति और समाज के बीच व्यवहार में आने वाली इस परम्परा से अर्जित सम्पत्ति के अनेक रूप हैं। समाज सापेक्षता प्रयास क्षेत्र सापेक्षता भाषा के लिए अनिवार्य है, ठीक वैसे ही जैसे व्यक्ति सापेक्षता। अपने समाज या क्षेत्र की भाषा के बालक बचपन से ही अभ्यस्त होने के कारण अच्छी तरह जानते हैं परन्तु अन्य क्षेत्रगत भाषाओं को उसे सीखना पड़ता है।
भाषा साम्यतंर अभिव्यक्ति का सर्वाधिक विश्वसनीय माध्यम है। वह हमारे साम्यंतर के निर्माण विकास, हमारी अस्मिता, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा क्षेत्रगत पहचान का भी साधन है।
भाषा की सबसे छोटी इकाई बोली कही जाती है। इसका सम्बन्ध ग्राम या मण्डल से होता है। इसमें प्रधानता व्यक्तिगत बोली की रहती है और देशज शब्दों तथा घरेलू शब्दावली का बाहुल्य रहता है। यह मुख्य रूप से सामान्य बोलचाल की ही भाषा है। अतः इसमें उत्कृष्ट साहित्यिक रचनाओं का प्रायः आभाव रहता है तथा व्याकरण दृष्टि से भी इसमें असाधुता रहती है।
क्षेत्रगत भाषा को प्रादेशिक भाषा भी कहा जा सकता है। प्रादेशिक भाषा वह भाषा है जिसका प्रयोग प्रदेश या प्रान्त के विस्तृत भू-भाग के अधिकांश लोगों द्वारा किया जाता है। भारत के उत्तर क्षेत्र में प्रयोग की जाने वाली हिन्दी भाषा इस क्षेत्र की प्रादेशिक भाषा कही जा सकती है। इसी तरह पंजाब क्षेत्र में प्रयोग की जाने वाली पंजाबी भाषा, बंगाल प्रान्त (क्षेत्र) में प्रयोग की जाने वाली बंगाली भाषा इन प्रदेशों या क्षेत्रों की प्रादेशिक अथवा क्षेत्रीय भाषाएँ कही जा सकती है। अपने क्षेत्र से अच्छी प्रकार से परिचित होने के लिए क्षेत्रगत भाषा का ज्ञान बहुत जरूरी है। कोठारी आयोग द्वारा भी प्रत्येक प्रादेशिक भाषाओं (क्षेत्रीय भाषा) को शिक्षा का माध्यम बनाने की सिफारिश की गयी है। क्षेत्रीय भाषाओं के बीच कड़ी बनाकर ही राष्ट्र भाषा लोगों को राष्ट्रीयता का पाठ पढ़ाती है।
चूंकि भाषा संकेतात्मक होती है अर्थात् वह एक प्रतीक स्थिति है। इसकी प्रतीकात्मक गतिविधि के चार प्रमुख संयोजक होते हैं, दो व्यक्तिएक वह जो सम्बोधित करता है, दूसरा वह जिसे सम्बोधित किया जाता है। तीसरी संकलित वस्तु और चौथी प्रतीकात्मक संवाहक को सांकेतिक वस्तु की ओर प्रतिनिधित्व भंगिमा के साथ संकेत करता है। इस संकेतात्मक गुण के साथ- यदि क्षेत्रीय गुणों का भी समावेश हो जाता है तो बालक को भाषा सीखने में सरलता रहती है, उसमें अपने विचारों को भावों, सहजता से प्रकट कर सकता है और किसी भी चीज को आसानी से समझ सकता है। इसलिए क्षेत्रगत भाषा बालक को अधिक विकास के लिए सहयोगी कही जा सकती है।
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