“सम्प्रेषण क्रिया तभी संभव हो सकती है जब शिक्षक एवं शिक्षार्थी अपनी धारणाओं एवं अनुभवों को आपस में बाँटे ।” इस कथन से आप कहाँ तक सहमत है ? स्पष्ट कीजिए । साथ ही सम्प्रेषण का महत्त्व बताइये ।

“सम्प्रेषण क्रिया तभी संभव हो सकती है जब शिक्षक एवं शिक्षार्थी अपनी धारणाओं एवं अनुभवों को आपस में बाँटे ।” इस कथन से आप कहाँ तक सहमत है ? स्पष्ट कीजिए । साथ ही सम्प्रेषण का महत्त्व बताइये ।  

उत्तर— शिक्षक-शिक्षार्थी के मध्य होने वाली अंतःक्रिया सम्प्रेषण ही है, शिक्षा सम्प्रेषण पर बहुत कुछ निर्भर करती है जब शिक्षक द्वारा कही गई बातों व तथ्यों को छात्र भली प्रकार समझे और छात्रों की उत्सुकता, जिज्ञासा को शिक्षक समझे तब ही सम्प्रेषण अच्छा होगा और अच्छा ‘सम्प्रेषण’ होने पर ही ‘शिक्षण’ व अधिगम अच्छा होगा। शिक्षक जिस बात को कहना चाह रहा है, छात्र उसी अर्थ में उसे समझता है या छात्र जो पूछना चाहता है शिक्षक वही समझकर उसे संतुष्ट करता है अर्थात् सम्प्रेषण उचित हो रहा है। अतः सम्प्रेषण क्रिया के लिये शिक्षक एवं शिक्षार्थी दोनों को अपनी धारणाओं और अनुभवों को बाँटना जरुरी है।
सम्प्रेषण का महत्त्व निम्न बातों से स्पष्ट होता हैं—
(1) क्रियात्मक एकता के लिए– विचारों एवं सूचना के सम्प्रेषण द्वारा आदान-प्रदान, संयुक्त उद्देश्यों के कार्यों की एकता के लिए अत्यन्त आवश्यक है।
(2) सत्ता के विकेन्द्रीकरण के लिए– सम्प्रेषण द्वारा एक प्रबन्धक, प्रभावशाली विधि द्वारा, अपनी शक्तियाँ एवं उत्तरदायित्व दूसरों के सुपुर्द कर सकता है, जिसके द्वारा उसकी प्रबन्धकीय योग्यताओं में वृद्धि हो ।
(3) परस्पर सहयोग एवं विश्वास उत्पन्न करना – प्रभावशाली सम्प्रेषण संगठन के सदस्यों के मध्य परस्पर सहयोग एवं विश्वास उत्पन्न करता है। यह मालिक एवं कर्मचारियों के मध्य सहयोग में वृद्धि करता है।
(4) परिणाम प्रधान– सामूहिक सम्प्रेषण, सभाओं एवं सामूहिक वार्तालाप को अधिक प्रभावशाली बनाता है। इस प्रकार, अल्प-व्यय द्वारा, उत्तम परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं।
(5) निर्विघ्न एवं कुशल कार्य के लिए– सम्प्रेषण किसी संस्था के कार्य को निर्विघ्न एवं कुशल बनाता है। यह केवल सम्प्रेषण द्वारा ही सम्भव है कि प्रबन्धकीय परिवर्तन एवं नियमों के विषय में ज्ञान, अधीनस्थ व्यक्तियों तक पहुँचाया जा सकता है एवं उनसे आवश्यक कार्य करवाया जा सकता है।
(6) लोकतांत्रिक प्रबन्ध के लिए– सम्प्रेषण, लोकतांत्रिक प्रबन्ध के लिए आवश्यक है। यह कर्मचारियों को निर्णय करने की प्रक्रिया में सम्मिलित करके, प्रबन्ध में सहयोगी बनता है।
(7) समय एवं शक्ति की बचत के लिए– प्रभावशाली सम्प्रेषण, समय, शक्ति एवं प्रयत्नों की बचत करता है। यह उत्पादन में वृद्धि एवं लागत में कटौती करता है।
(8) प्रभावशाली नेतृत्व का आधार– सम्प्रेषण प्रभावशाली नेतृत्व का आधार है। नेतृत्व का ऐसा कोई भी कार्य नहीं जो नेता एवं जनता के मध्य, प्रभावशाली सम्प्रेषण के बिना सम्भव हो पाए ।
(9) उत्तम सम्बन्धों की स्थापना के लिए– सम्प्रेषण द्वारा प्रबन्धक, बाह्य व्यक्तियों पर अपने संगठन का उत्तम प्रभाव डाल सकते हैं। प्रभावशाली सम्प्रेषण, प्रबन्धक को कर्मचारियों, ग्राहकों, माल भेजने वालों, सहयोगियों, सरकार एवं समुदाय से उत्तम सम्बन्ध बनाए रखने में सहायता करता है।
(10) प्रबन्धकीय कुशलता में वृद्धि– प्रभावशाली सम्प्रेषण, प्रबन्धकीय कार्यकुशलता में वृद्धि करता है। इसके द्वारा प्रबन्धक, कर्मचारियों को अपने लक्ष्यों एवं इच्छाओं के विषय में ज्ञान देते हैं, उन्हें निर्देश एवं आदेश देते हैं, उत्तरदायित्व एवं नियुक्तियाँ करते हैं एवं उनके कार्यों का मूल्यांकन करते हैं।
(11) कार्य-संतुष्टि के लिए– प्रभावशाली सम्प्रेषण, कर्मचारियों में कार्य-सन्तुष्टि उत्पन्न करता है, क्योंकि यह प्रबन्धकों एवं कर्मचारियों के मध्य परस्पर विश्वास में वृद्धि करता है।
(12) अभिप्रेरणा के लिए– सम्प्रेषण द्वारा, संस्था के लक्ष्यों की प्राप्ति करने के लिए कर्मचारी प्रेरित होते हैं। इसके द्वारा उनका प्रोत्साहन एवं कार्य करने की शक्ति में वृद्धि होती है।
(13) प्रभावशाली नियन्त्रण के लिए– सम्प्रेषण, प्रभावशाली नियन्त्रण का एक उत्तम साधन है। योजना का मूल्यांकन करके, उच्चप्रबन्धकों को सम्प्रेषित करना होता है ताकि आवश्यक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए उनमें सुधार किया जा सके। ये सबकुछ एक प्रभावशाली सम्प्रेषण प्रणाली के बिना असंभव है।
(14) निर्णय लेने के लिए– सम्प्रेषण निर्णय लेने एवं योजनाबंदी के लिए अत्यन्त आवश्यक है। प्रबन्धकों के निर्णय एवं योजनाओं को उनके अधीनस्थों को संचारित करना आवश्यक है।
(15) शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के लिए– शिक्षक के प्रभावशाली सम्प्रेषण द्वारा, विद्यार्थियों को प्रेरित किया जा सकता एवं उत्तम श्रेणी वातावरण का निर्माण किया जा सकता है। इस प्रकार, शिक्षणअधिगम प्रक्रिया की सफलता, शिक्षक एवं विद्यार्थियों की सम्प्रेषण – शक्ति पर निर्भर होती है।
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