महिलाओं पर बढ़ते हुए अत्याचारों के अन्तर्गत बलात्कार की घिनौनी और विकृत मनोवृत्ति के दायरे का वर्णन कीजिए एवं कानून की शिथिलता एवं दण्ड की अनुपस्थिति की विवेचना कीजिए।
महिलाओं पर बढ़ते हुए अत्याचारों के अन्तर्गत बलात्कार की घिनौनी और विकृत मनोवृत्ति के दायरे का वर्णन कीजिए एवं कानून की शिथिलता एवं दण्ड की अनुपस्थिति की विवेचना कीजिए।
उत्तर – महिलाओं पर बढ़ते हुए अत्याचारों के की घिनौनी और विकृत मनोवृत्ति का दायरा—
(1) तीन वर्ष की अबोध आयु से 60-65 वर्ष की वृद्धाओं, मानसिक रोगी, पागल, भिखारिनों, संन्यासिनों, साध्वियों, बीमार और गर्भवती महिलाओं से लेकर राजनीतिक, कार्यकर्ताओं सामाजिक सुधारों के क्षेत्र में जुटी महिलाओं, आदि से बलात्कारों के प्रकरण सर्वाधिक संख्या में होते हैं। आश्चर्य है कि मानवता के लिए कलंक स्वरूप इन प्रकरणों में वृद्धि हो रही है जो सिद्ध करती है कि शिक्षा, सम्पदा, संस्कृति और वैचारिक प्रबुद्धता की भीतरी परतों में कितनी पाशविकता भरी हुई है।
(2) निकट के रिश्तों का सहारा लेकर बच्चियों और अन्य आयु वर्ग की महिलाओं संकोच, मर्यादित व्यवहार एवं एकांत का अनुचित लाभ उठाना तथा अनैतिक आचरण ।
(3) सभी सांस्कृतिक, नैतिक और पारिवारिक मर्यादाओं को ध्वस्त करते हुए पुत्री पर पिता, चाचा द्वारा, बहनों पर सगे या निकट के भाइयों द्वारा अन्य रक्त सम्बन्धों को कलंकित करते हुए अनैतिक आचरण ।
(4) बलात्कार के उपसंहार में पीड़ित महिला द्वारा पहचान लिए जाने के भय से उसकी हत्या, अंगभंग कर देना या कहीं दूर ले जाकर बेच देना ।
(5) महिलाओं के प्रति अपशब्द, अशोभनीय आचरण, बसों, . रास्तों, कार्यालयों तथा सार्वजनिक स्थलों पर गंदे चुटकुले, टिप्पणियाँ, धक्का-मुक्की में उनकी देह को मसलना, अभद्र और कुत्सित संकेत करना व अश्लील गीत ।
(6) यद्यपि राजनैतिक परिदृश्य में महिलाओं को बिना भेदभाव के महत्त्वपूर्ण पदों और कार्यालयों में प्रतिष्ठित किया जाने लगा है तथापि पंचायती राज के पंचों/सरपंचों के रूप में महिलाओं पर अत्याचार का प्रवाह रूका नहीं है। स्वयं ऐसी महिलाओं के प्रति परिवार के सदस्यों या अन्यों के द्वारा उनको अपमानित, उत्पीड़ित और त्रस्त करने के प्रकरण बढ़े हैं।
(7) तीर्थ स्थानों, ऐतिहासिक स्थलों, पर्यटन की जगहों, रेलों या बसों, सड़कों-चौराहों पर, सिनेमाघरों, दुकानों, बाजारों आदि प्रत्येक स्थान पर महिलाओं के प्रति अपमानजनक व्यवहार और बेशर्मी पूर्ण अत्याचार के अनगिनत प्रकरण घटित हो रहे हैं। अबोध बच्चियों से लेकर वृद्धाओं तक हर आयु तथा वर्ग की महिलाएँ इन अत्याचारों के दायरे में शामिल हैं।
(8) अपनी शारीरिक ताकत और नशे में बोझिल दर्प में अत्यन्त निर्ममता से मारना-पीटना/ भोजन न देना/घर से निकालना/ समाज में नग्न करके अपमानित करना ।
(9) अंधविश्वासों, सामाजिक कुरीतियों और धन-सत्ता या बल के मद में महिलाओं को बेइज्जत करना, सामूहिक बलात्कार, नग्न करके शरीर को झुलसाना, गाँव/मुहल्ले से निकालना।
(10) बाल-विवाह, दहेज-शिक्षा के प्रति विरोधी मानसिकता, अधविश्वास, जादू-टोना की शंका, चरित्रहीनता के आरोप, परिवार में सदस्यों की नशे की लत का विरोध और प्रत्येक अपमान, कष्ट या लोहन के बावजूद अपनी देह के असंगत उपभोग के विरुद्ध एक शब्द कहने पर महिलाएँ वर्णनातीत अत्याचारों की शिकार बनती है। अशिक्षित और निम्न वर्ग ही नहीं, खूब शिक्षित और उच्च पदों पर आसीन महिलाओं के प्रति उनके उच्च पदों पर आसीन सुशिक्षित पति या परिवार के सदस्यों द्वारा अत्याचार का बोलबाला पाया जाता है।
(11) महिलाओं की देह के उभारों, मांसलता भरे नग्न अंगों तथा वासनाभरी मुद्राओं को चित्रों, फोटो तथा विज्ञापनी फिल्मों में प्रस्तुत कर उन्हें व्यापारिक वस्तुओं के रूप में चित्रित करना भी उनके प्रति अत्याचार है। ब्ल्यू फिल्मों, अश्लील पुस्तकों, नग्न चित्रों तथा वीडियो कैसेटों के माध्यम से महिलाओं को अवैध और अनैतिक कृत्यों में लिप्त करने के माध्यम से उन पर अत्याचार ढाये जा रहे हैं।
(12) महिलाओं की भावनाओं, उनकी मर्यादाओं और कोमल रिश्तों की उपेक्षा कर उन्हें शोषित करने, उनकी देहविक्रय के घृणित व्यवसाय में ढकलने, उन्हें झूठे कलंकों से बदनाम कर समाज में निंदा की पात्र बनाना और फिर उनको मनमानियाँ सहने को विवश किया जाना आम बात हो चली है।
अत्याचारों की सूची न पूरी है, न आँकड़ों की मुखापेक्षी। प्रतिदिन ही क्यों, प्रति पल महिलाओं के प्रति नये-नये अत्याचारों का सिलसिला जारी है ……. उसमें वृद्धि होती जाती है।
भारत ही नहीं, समूचे विश्व में महिलाओं के प्रति पुरुषों के अत्याचारों में जहाँ नारी को एक जड़जीव के सदृश माने जाने का भाव है, वही सत्ता और अधिकारों का मद भी है जो पुरुष समुदाय के अहम् को विकृत और हृदयहीन बनाता है। शताब्दियों से चले आते नारी के प्रति दृष्टिकोणों ने इन अहमवादी प्रवृत्तियों और नारी की महत्त्वहीनता के भाव को पुष्ट किया है। मानव इस क्षेत्र में पशुओं के स्तर से भी नीचे गिर गया है।
कानून की शिथिलता एवं दण्ड की अनुपस्थिति—प्रवृत्ति के इस असंतुलित विकास में एक और महत्त्वपूर्ण कारण है— नारी के प्रति अभद्रता, उत्पीड़न, बलात्कार तथा अपमानजनक व्यवहार के प्रति कानून की शिथिलता । विश्व में प्रचलित कानूनों का निर्माण पुरुषसमुदाय द्वारा ही बहुतायत से हुआ है। उसमें पुरुषों के अपराधों के प्रति उपेक्षा एवं अनदेखी का भाव है जबकि महिला वर्ग की छोटी सी भूलचूक भी बड़ी गंभीरता ली जाती है।
वास्तव में समाज में वांछित मर्यादाएँ, विधि सम्मत आचरण तथा निर्धारित रीति-नियमों के अनुपालन में दण्ड का भय भी बहुत सीमा तक प्रभावी हुआ करता है। भारत में महिलाओं से संदर्भित कानून एक तो बहुत पुराने हैं जो अंग्रेजी शासनकाल में निर्मित हुए थे तथा जिनमें बहुत पूर्वाग्रह समाए हुए हैं। कानून में गहवाही और आँखों देखी प्रामाणिकता चाही जाती है जो बलात्कार या यौन उत्पीड़न जैसे आचरणों में संभव नहीं। एक तो नारी जगत अपनी बदनामी के भय से अपने प्रति हुए अपराधों को प्रकाश में नहीं लाता और जो साहसपूर्वक सामने लाए भी जाते हैं, उनमें महिलाओं से पूछे गए अश्लील प्रश्नों के चलते प्रमाणीकरण नहीं होता। गंभीर से गंभीर दुराचरण के अपराधी द्वारा कानून की आँखों में धूल झोंककर बरी हो जाने के इतने उदाहरण सामने हैं कि महिलाएँ अपने उत्पीड़न प्रकरणों को प्रकट करके और अधिक उत्पीड़ित नहीं होना चाहती।
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