मौखिक एवं लिखित भाषा का महत्त्व लिखिए।

मौखिक एवं लिखित भाषा का महत्त्व लिखिए। 

उत्तर— मौखिक भाषा का महत्त्व — मौखिक भाषा का महत्त्व निम्न प्रकार से हैं—

(1) मौखिक भाषा में वक्तृत्वकला को बहुत महत्त्व प्रदान किया गया है। इसके अतिरिक्त रोमन शिक्षा-व्यवस्था में वक्तृत्वकला, वाक्चातुर्य एवं शास्त्रार्थकला को विशेष स्थान मिला था । कैथोलिक शिक्षा में भाषणकला को तथा पुनरुत्थान काल में भी भाषण-कला को महत्त्व दिया गया। चीन और जापान की शिक्षा व्यवस्था में भी वक्तृत्वकला को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त था।
(2) साधारण रूप से समस्त जन समाज में भी मौखिक भाषा का अपना महत्त्व है– मौखिक भाषा निश्चित रूप से लिखित भाषा से अधिक प्रभावपूर्ण मानी गयी है। मौखिक भाषा में वह शक्ति है जो निरक्षरी एवं सामान्य जन को भी उद्वेलित और स्पन्दित कर दे। ध्वनियों का आरोह-अवरोह भावानुरूप वाणी का कम्पन, ओजस्विता और उचित हाव-भाव से प्रस्तुत की गई भाषा, अभिव्यक्ति अवश्य ही प्रभावित करती है। अस्तु, शिक्षण को अधिक प्रभावी बनाने के लिए भी यह आवश्यक है।
(3) मौखिक अभिव्यक्ति का क्षेत्र लिखित अभिव्यक्ति की अपेक्षा अधिक व्यापक है— आज के युग में भी अपनी ऐसी अनेक भाषाएँ देखने-सुनने में आती हैं जिनकी कोई लिपि नहीं है अर्थात् प्रयोक्ता मौखिक रूप से ही विचारों की अभिव्यक्ति करके व्यावहारिक जीवन व्यतीत करते हैं । अतः स्पष्ट है कि भाषा का मूल रूप मौखिक ही है। लिखित भाषा मुखरित भाषा का ही कालान्तर में विकसित प्रतीक रूप में ध्वन्यात्मक संकेत मात्र है ।
(4) मौखिक प्रस्तुति अधिक देर तक अपना प्रभाव छोड़ती है– भावपूर्ण ढंग से मौखिक अभिव्यक्ति मानस पटल पर एक अमिट छाप तो छोड़ती ही है साथ ही देखा गया है कि अधिक देर तक मस्तिष्क में दृढ़ रहती है, शीघ्र भूलना कठिन होता है ।
(5) मौखिक अभिव्यक्ति व्यक्ति विशेष के व्यक्तित्व का परिचायक है– वाणी किसी भी व्यक्ति की अन्तरात्मा का उद्घाटन करती है। हम उसके बोलचाल के ढंग से उसके व्यक्तित्व की विशेष प्रकृति का आभास कर लेते हैं। वाणी पर नियंत्रण करने वाला और संयत होकर अपने विचारों की अभिव्यक्ति करने वाला व्यक्ति ही सदैव उन्नत, शान्त एवं आत्म-निग्रही बन सकता है । जनमानस पर अपने विचारों की छाप छोड़ सकता है। उसकी असंयमित वाक् प्रस्तुति जहाँ उसे असम्मानित बनाती है, वहीं वाक्चातुर्य उसके व्यक्तित्व में चार चाँद लगाता है।
लिखित भाषा का महत्त्व—
(1) विश्वसनीय– लिखित भाषा मौखिक भाषा की तुलना में अधिक विश्वसनीय है। संचार की विश्वसनीयता प्रापक को बहुत अधिक प्रभावित करती है।
(2) समय की बचत– समय एवं लागत की दृष्टि से लिखित भाषा अधिक उपयोगी है। संगोष्ठी, बैठक, सम्मेलन इत्यादि में धन अधिक व्यय होता है जबकि लिखित संचार में डाक द्वारा सन्देश प्रेषित करना दूरभाष की अपेक्षा कम खर्चीला होता है। लिखित संदेश की फोटोस्टेट प्रति कम समय में अधिक लोगों तक पहुँचाई जा सकती है।
(3) सामग्री की गोपनीयता– लिखित भाषा ही केवल ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा विषय-वस्तु की गोपनीयता का निर्वहन सम्भव है। लिखित भाषा कुछ निश्चित सूचनाओं के विस्तार के लिए महत्त्वपूर्ण है जिन्हें कि मौखिक भाषा द्वारा सम्प्रेषित नहीं किया जा सकता है।
(4) साक्ष्यों का रिकार्ड सम्भव– सन्दर्भ स्रोतों के रूप में लिखित भाषा माध्यमों का उपयोग किया जा सकता है। रिपोर्ट, सरक्यूलर्स, नियम पुस्तिका एवं अन्य प्रकार की मुद्रित सामग्री को भरवाकर भविष्य में सन्दर्भ के रूप में प्रयुक्त किया जा सकता है। लिखित भाषा माध्यम कानूनी साक्ष्य के रूप में भविष्य में उपयोग में लाये जा सकते हैं।
(5) लम्बी दूरी के संचार में उपयुक्त– लिखित भाषा संदेशों को सम्प्रेषित करने का औपचारिक माध्यम है एवं लम्बी दूरी के प्रापकों से सम्पर्क करने का एक उपयोगी माध्यम है। इसमें संचारक एवं प्रापक दोनों की उपस्थिति एक साथ आवश्यक नहीं होती। इसलिए लिखित भाषा ही केवल ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा किसी भी स्थान पर प्रापक तक सूचनाएँ पहुँचाई जा सकती हैं ।
(6) विस्तृत विषय-वस्तु को प्रेषित करने में उपयुक्त–मौखिक भाषा द्वारा कम लागत में लम्बे विषयों को विस्तार एवं स्पष्ट रूप से प्रापक तक नहीं पहुँचाया जा सकता, परन्तु लिखित भाषा द्वारा प्रभावी रूप से सूचनाओं का आदान-प्रदान किया जा सकता है। कमजोर स्मृति, भूलने सम्बन्धी आदतें, बोलते समय अनुचित शब्दों का प्रयोग इत्यादि समस्याओं का निवारण लिखित भाषा में आसानी के साथ किया जा सकता है।
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