दल शिक्षण की आवश्यकता एवं महत्त्व का उल्लेख कीजिए ।

दल शिक्षण की आवश्यकता एवं महत्त्व का उल्लेख कीजिए । 

                                           अथवा
दल शिक्षण का महत्त्व लिखिये।
उत्तर–दल शिक्षण की आवश्यकता– आधुनिक युग में दल शिक्षण की दिनों-दिन आवश्यकता बढ़ती जा रही है। इसके निम्नलिखित कारण हैं—
(1) पिछले तीन-चार दशकों में विश्व की शिक्षा व्यवस्था में उल्लेखनीय परिवर्तन हुए हैं। शिक्षा जगत् में विषयों में विशिष्टीकरण और भी सूक्ष्म हुआ है तथा विषयों का महत्त्व भी बदलने के कारण शिक्षण भी कठिन हो गया है। अब यह कठिन लगता है कि एक शिक्षक इन नवीन तकनीकी विषयों का अकेला ही सफलतापूर्वक ज्ञान प्रदान कर सकेगा।
(2) पिछले दशकों में शिक्षकों में संख्यात्मक तथा गुणात्मक दोनों ही दृष्टिकोणों से कमी आई है। इस कमी को विशेषतौर से गुणात्मक विकास को दूर करने हेतु दल शिक्षण की आवश्यकता हुई ।
(3) पिछले कुछ वर्षों में शिक्षा तकनीकी का विकास होना भी एक प्रमुख घटना है। शैक्षिक दूरदर्शन, अभिक्रमित अधिगम (Programmed learning) का भी इन्हीं वर्षों में विकास किया गया। इन सबके विकास का स्पष्ट प्रभाव विद्यालयसंगठन पर पड़ा है। इन सबका उपयोगी ढंग से प्रयोग हो सके, इसके लिए दल शिक्षण अनिवार्य है।
(4) कक्षाओं में छात्रों की संख्या पर्याप्त मात्रा में बढ़ी है। एक अकेले अध्यापक के लिए इतने छात्रों को सम्भालना, अनुशासन में रखना तथा उनकी शैक्षिक आवश्यकताओं की पूर्ति करना सम्भव नहीं है। इसलिए आवश्यकता इस बात की हुई कि कई अध्यापक मिलकर एक दल के रूप में कक्षा में जायें और छात्रों की शैक्षिक आवश्यकताओं की पूर्ति करें।
(5) पिछले कुछ वर्षों में विभिन्न विषयों से सम्बन्धित ज्ञान में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। प्रत्येक विषय की व्याख्या व विवेचना वैज्ञानिक सिद्धान्तों के आधार पर की जाने लगी है । एक अकेला शिक्षक अपने छात्रों को नवीनतम ज्ञान नहीं दे सकता है, क्योंकि प्रत्येक अध्यापक के ज्ञान की मात्रा सीमित होती है। दल-शिक्षण से विशिष्टीकृत ज्ञान प्रदत्त करने में सहायता मिलती है।
(6) विज्ञान ने शिक्षा जगत् को आज विविध प्रकार के शिक्षण यन्त्र तथा वैज्ञानिक उपकरण प्रदान किये हैं। कक्षा-कक्ष में इनके प्रयोग के लिए लिपिक, तकनीशियन तथा विद्युत कर्मचारी आदि की आवश्यकता पड़ती है। इन व्यक्तियों की उपस्थिति के कारण शिक्षक न केवल अपना कार्य अधिक सुगमता से ही करता है अपितु उसके कारण शिक्षण कार्य पर चिन्तन करने के लिए अधिक समय श्रम भी उपलब्ध हो जाता है। “
(7) औसत, मंद बुद्धि, तीव्र बुद्धि तथा मेधावी आदि सभी प्रकार के बालकों के लिए पृथक्-पृथक् प्रकार की शिक्षा की व्यवस्था की जाती है। इन सब प्रकार के बालकों के लिए पृथक्-पृथक् प्रकार की शिक्षण विधियाँ अधिक उपयुक्त होती हैं। इस उद्देश्य से भी दल-शिक्षण आवश्यक हो गया है।
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