मौन पठन का अर्थ एवं तत्वों का उल्लेख कीजिए ।

मौन पठन का अर्थ एवं तत्वों का उल्लेख कीजिए । 

उत्तर—मौन पठन–जब लिखित भाषा में व्यक्त भावों एवं विचारों को समझने के लिए ध्यन्यात्मक उच्चारण किए बिना पढ़ा जाता है तो वह मौन पठन/वाचन कहलाता है । मौन पठन के अर्थ को स्पष्ट करते हुए शिक्षा शब्दकोश में लिखा है- “मौन पठन श्रवणीय शब्दोच्चारण के बिना किया गया पठन है । ”

मौन पठन के तत्त्व–मौन पठन के प्रमुख तत्त्व निम्नलिखित हैं—
(1) उचित आसन एवं मुद्रा–मौन पठन के लिए उचित. आसन एवं मुद्रा विशेष आवश्यक है। मौन पठन करते समय पाठक को सीधा बैठना चाहिए, जिससे उसकी रीढ़ की हड्डी सीधी बनी रहे और पैर 90 डिग्री का कोण बनाते हुए लटके रहने चाहिए। पाठ्य-पुस्तक एक फुट की दूरी पर रहनी चाहिए। मौन पठन में पाठक को मुँह बन्द रखना चाहिए उसके होंठ नहीं हिलने चाहिए। ऐसा न होने से पाठक को शीघ्र थकान आ जाती है और वह मौन पठन में ऊबने लगता है।
(2) परिचित शब्दावली–मौन पठन में कौशल प्राप्त करने के लिए परिचितं शब्दावली का होना आवश्यक है। इससे छात्रों को मौन पठन में सरलता रहती है और विषयवस्तु को आत्मसात् करने में कठिनाई नहीं होती है।
(3) अर्थ बोध–मौन पठन में अर्थ – बोध का भी महत्त्व है। बिना अर्थ-बोध के मौन पठन निरर्थक होता है। अतः सामान्य गति से मौन पठन करते हुए अर्थ- बोध हेतु प्रयास करना चाहिए।
(4) शान्त वातावरण–मौन पठन के लिए कक्षा या स्थल का वातावरण पूर्ण शान्त होना चाहिए। शान्त वातावरण में छात्रों का ध्यान विषयवस्तु पर केन्द्रित बना रहता है। उनके पठन में कोई बाधा नहीं पड़ती है। इससे वे अधिक समय तक मौन पठन कर सकते हैं।
(5) एकाग्रता–मौन पठन के लिए छात्रों में एकाग्रता का होना आवश्यक है। बिना एकाग्रता के मौन पठन में छात्रों का ध्यान विषयवस्तु पर अधिक समय तक केन्द्रित नहीं रह पाता है। अतः एकाग्र एवं शान्तचित्त होकर मौन पठन से किसी भाव या विचार को सरलता से हृदयगम किया जा सकता है।
(6) धैर्य–मौन पठन में छात्रों से धैर्य धारण करने की अपेक्षा रहती है क्योंकि मौन पठन नीरस होता है तथा लाभ की प्रत्यक्ष प्रतीत नहीं होता है। अत: दुर्बोध भाव या विचार आ जाने पर छात्र घबरा जाते हैं, धैय छोड़ देते हैं और अर्थ-बोध हेतु प्रयास नहीं करते हैं।
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