रोजगार एवं सेवाएँ एक-दूसरे के पूरक हैं, कैसे ?

रोजगार एवं सेवाएँ एक-दूसरे के पूरक हैं, कैसे ?

उत्तर – ‘रोजगार एवं सेवाएँ का अभिप्राय यहाँ इस बात से है कि जब व्यक्ति अपने परिश्रम एवं शिक्षा के आधार पर जीविकोपार्जन के लिए धन एकत्रित करता है, जब एकत्रित धन को पूँजी के रूप में व्यवहार किया जाता है और उत्पादन के क्षेत्र में निवेश किया जाता है तो सेवा क्षेत्र उत्पन्न होता है। अतः रोजगार एवं सेवा एक-दूसरे के परस्पर सहयोगी है।आर्थिक प्रगति के कारण देश के विकास के साथ सेवा क्षेत्र का विस्तार होता है जिसके फलस्वरूप लोगों के लिए रोजगार के नये अवसर उपलब्ध होते हैं। सेवा क्षेत्र के विकास में शिक्षा की नितांत आवश्यकता है, जिसके कारण लोग रोजगार पाने में सक्षम हो पाते हैं तथा हीन भावना से उठकर देश व राज्य के हित में काम करना प्रारंभ करते हैं जिससे विकास का भाव परिलक्षित होता है। सेवा क्षेत्र का विस्तार ही रोजगार के अवसर को जन्म देता है। उदाहरण से स्पष्ट है कि कोई किसान अपने खेतों में धान उपजाता है, उसमें मेहनत कर चावल प्राप्त करता है। अगर वह किसान अपने घर में चावल चुनकर उसे साफ-सुथरा कर एक किलो का पॉलिथिन पैकेट बनाकर बाजार में बेचने का कार्य करता है तो उसे प्रारंभ से लेकर अंत तक रोजगार मिल जाता है। अगर व्यापार करना चाहता है तो व्यापक स्तर पर कर सकता है, जिसमें अधिक-से अधिक किसानों को रोजगार मुहैया करा सकता है। यदि किसान इससे संबंधित तकनीकि जानकारी और प्रशिक्षण प्राप्त करता है तो अपनी आमदगी और भी बढ़ा सकता है। इस प्रकार रोजगार एवं सेवा एक-दूसरे के पूरक है।

Ajit kumar

Sub Editor-in-Chief at Jaankari Rakho Web Portal

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