लोकतंत्र क्या है? लोकतंत्र से आप क्या समझते हैं? | लोकतंत्र की परिभाषा | Loktantra kya hai? | Loktantra kise kahate hain?
लोकतंत्र क्या है? लोकतंत्र से आप क्या समझते हैं? | लोकतंत्र की परिभाषा | Loktantra kya hai? | Loktantra kise kahate hain?
विश्व के विभिन्न देशों में शासन व्यवस्था के अलग-अलग स्वरूप देखने को मिलते हैं। कहीं लोकतंत्र, कहीं राजतंत्र और कहीं सैनिकतंत्र स्थापित हैं। लोकतंत्र आज सबसे लोकप्रिय शासन व्यवस्था बन गया है। हम सच्चे अर्थों में उसी शासन व्यवस्था को लोकतंत्र कह सकते हैं जिसमें शासन का संचालन जनता के प्रतिनिधियों द्वारा किया जाता और जनता के प्रतिनिधियों का चुनाव जनता स्वयं बिना किसी दबाव के स्वतंत्र रूप से करती है। इसी आधार पर विश्व के विभिन्न देशों की शासन व्यवस्था को लोकतांत्रिक और अलोकतांत्रिक श्रेणियों के अंतर्गत रखा जाता है। दोनों प्रकार की शासन व्यवस्था के अंतर को उदाहरणों द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।
जिन देशों में राजतंत्र है वहाँ राजा ही प्रधान होता है और जनता गौण एवं मौन रहती है। शासन वंशानुगत चलता है और राजा की मृत्यु के बाद उसका बेटा या भाई ही शासक बनता है, दूसरा कोई नहीं। नेपाल में 2006 से पहले इसी प्रकार की शासन व्यवस्था थी। परंतु, वर्तमान में वहाँ लोकतंत्र की स्थापना हो चुकी है। 2008 से पूर्व पाकिस्तान में सैनिकतंत्र था, परंतु अभी वहाँ भी निर्वाचन के बाद सैनिकतंत्र समाप्त हो चुका है और लोकतांत्रिक सरकार का गठन हो चुका है। स्पष्ट है कि परवेज मुशर्रफ के सैनिकतंत्र को लोकतांत्रिक सरकार की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है। पाकिस्तान में राष्ट्रपति के पद पर आसिफ अली जरदारी और प्रधानमंत्री के पद पर यूसुफ रजा गिलानी के स्थापित होने के बाद पाकिस्तान भी लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था की श्रेणी में आ गया।
चीन की साम्यवादी सरकार को भी लोकतांत्रिक सरकार की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता, क्योंकि वहाँ कम्युनिस्ट पार्टी का अधिनायकत्व है। वहाँ कम्युनिस्ट पार्टी की ही सरकार बन सकती है। चीन में चुनाव भी होते हैं, परंतु कम्युनिस्ट पार्टी का ही उसपर पूर्ण नियंत्रण होता है।
स्पष्ट है कि 2006 के पूर्व नेपाल की शासन व्यवस्था, परवेज मुशर्रफ के समय में पाकिस्तान की शासन व्यवस्था तथा वर्तमान में चीन की शासन व्यवस्था को हम लोकतांत्रिक नहीं कह सकते । इसके विपरीत ब्रिटेन और भारत की शासन व्यवस्था को लोकतांत्रिक कहते हैं। इन दोनों देशों में जनता के प्रतिनिधि शासन करते हैं। प्रतिनिधियों के चयन के लिए निर्वाचन होते हैं । निर्वाचन वयस्क मताधिकार के आधार पर होता है ।
जिस शासन व्यवस्था में जनता की भागीदारी होती है उसे लोकतांत्रिक और जिसमें जनता की भागीदारी नहीं होती उसे अलोकतांत्रिक कहते हैं।
‘लोकतंत्र’ शब्द अँगरेजी शब्द ‘डेमोक्रेसी’ का हिंदी रूपांतर है। ‘डेमोक्रेसी’ दो यूनानी शब्दों से बना है— डेमोस (demos) और क्रेशिया (cratia), जिनका अर्थ क्रमश: है – ‘जनता’ और ‘शासन’। इस प्रकार, व्युत्पत्ति की दृष्टि से लोकतंत्र का अर्थ ‘जनता का शासन’ हुआ। दूसरे शब्दों में लोकतंत्र का अर्थ ऐसी शासन प्रणाली है जिसमें जनता स्वयं भाग लेती है। लोकतांत्रिक शासन प्रणाली में संप्रभुता जनता में निहित रहती है। संप्रभुता का अर्थ निर्णय करने की सर्वोच्च शक्ति है। यह ऐसी शक्ति है जिसके ऊपर और कोई शक्ति नहीं होती। स्पष्ट है कि लोकतंत्र में इस सर्वोच्च शक्ति का प्रयोग जनता ही करती है। लोकतांत्रिक सरकार में जनता की भागीदारी होती है और साथ ही उसका नियंत्रण भी। जब तक जनता चाहती है तब तक सरकार बनी रह सकती है। इसी आधार पर अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने लोकतंत्र की परिभाषा देते हुए कहा है, लोकतंत्र जनता का, जनता द्वारा और जनता के लिए शासन है। प्रथम विश्वयुद्ध के बाद से एक आदर्श व्यवस्था के रूप में लोकतंत्र की लोकप्रियता की लहर फैल गई। प्रथम विश्वयुद्ध के समय स्पष्ट रूप से यह घोषणा की गई कि विश्व में लोकतंत्र की रक्षा के लिए ही यह युद्ध लड़ा जा रहा है। 1921 में लॉर्ड ब्राइस की एक पुस्तक मॉडर्न डेमोक्रेसी प्रकाशित हुई जिसमें ब्राइस ने अपना मत व्यक्त करते हुए लिखा, 70 वर्ष पूर्व लोकतंत्र शब्द नापसंद था और दहशत से भरा था। अब इस शब्द का गुणगान किया जा रहा है।
धीरे-धीरे लोकतंत्र विकास के मार्ग पर आगे बढ़ा। लोकतंत्र समानता पर आधृत हो गया। राजनीतिक समानता की स्थापना हुई। परंतु, इससे ही काम चलने को न था। समानता का प्रवेश सामाजिक और आर्थिक जीवन में भी हुआ। इस सिद्धांत को प्रोत्साहन मिला कि आर्थिक समानता के अभाव में राजनीतिक स्वतंत्रता निरर्थक है। 1917 की रूसी क्रांति ने आर्थिक लोकतंत्र की नींव को मजबूती प्रदान की। इस प्रकार, लोकतंत्र का विकास कई चरणों में हुआ। प्रथम चरण में उत्तरदायित्व का सिद्धांत पनपा, दूसरे चरण में सार्वजनिक वयस्क मताधिकार की परंपरा स्थापित हुई और तीसरे चरण में राजनीतिक समानता के सिद्धांत का विस्तार आर्थिक समानता के रूप में दृष्टिगोचर हुआ।
उपर्युक्त संदर्भ में ही लोकतंत्र का सही अर्थ समझा जा सकता है। सही अर्थ में लोकतंत्र एक जीवनदर्शन, एक सामाजिक व्यवस्था, एक आर्थिक ढाँचा तथा राज्य का एक स्वरूप है। लोकतंत्र का सही अर्थ हुआ — लोकतंत्र एक प्रकार का शासन है, एक सामाजिक व्यवस्था का सिद्धांत है, एक विशेष प्रकार की मनोवृत्ति है तथा एक आर्थिक आदर्श है। इसके अंतर्गत राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक व्यवस्था तथा दैनिक व्यवहार के सामाजिक एवं सांस्कृतिक मापदंड सम्मिलित हैं।
प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष लोकतंत्र
लोकतंत्र के मुख्यतः दो भेद किए जाते हैं— प्रत्यक्ष लोकतंत्र तथा अप्रत्यक्ष लोकतंत्र ।
प्रत्यक्ष लोकतंत्र – प्रत्यक्ष लोकतंत्र शासन का वह रूप है जिसमें जनता प्रत्यक्ष रूप से शासन करती है, प्रतिनिधियों द्वारा नहीं। यह लोकतंत्र का विशुद्ध रूप है। जनता स्वयं एक स्थान पर एकत्र होकर शासन-संबंधी नीति एवं योजनाओं तथा कानूनों का निर्माण करती है। जनता वादविवाद में भाग लेती है तथा सरकारी पदाधिकारियों को निर्वाचन द्वारा नियुक्त करती है। प्रत्यक्ष लोकतंत्र की पद्धति प्राचीनकाल में भारत, चीन, यूनान तथा रोम में प्रचलित थी। आधुनिक युग में प्रत्यक्ष लोकतंत्र संभव नहीं है, क्योंकि आज के राज्य अधिक जनसंख्यावाले विशालकाय राज्य हैं। मनुष्य की भौतिक आवश्यकताएँ पहले से बहुत बढ़ गई हैं। साथ ही आर्थिक, राजनीतिक तथा नागरिक समस्याएँ बहुत जटिल हो गई हैं। फिर भी, आधुनिक युग में स्विट्जरलैंड के कुछ भागों में प्रत्यक्ष लोकतंत्र के उदाहरण मिलते हैं। स्विट्जरलैंड को आधुनिक युग में प्रत्यक्ष लोकतंत्र का देश कहा जाता है। प्रत्यक्ष लोकतंत्र के उपकरण हैं — जनमत संग्रह, आरंभण, प्रत्यावर्तन, लोकनिर्णय आदि ।
अप्रत्यक्ष लोकतंत्र – प्रत्यक्ष लोकतंत्र शासन का एक आदर्श स्वरूप रहते हुए भी आधुनिक युग में संभव नहीं है। यही कारण है कि आधुनिक युग में अप्रत्यक्ष लोकतंत्र की ही परंपरा स्थापित है। अप्रत्यक्ष लोकतंत्र शासन का वह स्वरूप है जिसमें जनता के प्रतिनिधियों द्वारा शासन चलाया जाता है। जनता के प्रतिनिधि ही प्रशासनिक निर्णय करते हैं, कानून बनाते हैं तथा सरकार पर नियंत्रण रखते हैं। नागरिक मताधिकार द्वारा अपने प्रतिनिधियों का निर्वाचन करते हैं। एक निश्चित अवधि के लिए नागरिक अपने प्रतिनिधियों को चुनते हैं, जो विधायिका के सदस्य के रूप में कानूनों का निर्माण करते हैं। ऐसे प्रतिनिधियों को निश्चित अवधि के बाद पुनः निर्वाचन का सामना करना पड़ता है। जिन प्रतिनिधियों का कार्य संतोषप्रद नहीं माना जाता, उन्हें जनसमर्थन नहीं मिलता। फलतः, वे चुनाव हार जाते हैं।
लोकतंत्र की विशेषताएँ
लोकतंत्र का अर्थ एवं स्वरूप समझने के बाद इसकी विशेषताएँ भी स्पष्ट हो जाती हैं। इन विशेषताओं के रहने पर ही किसी देश की शासन पद्धति को पूर्ण लोकतांत्रिक कहा जा सकता है। लोकतंत्र की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं —-
(i) लोकतंत्र की पहली विशेषता यह है कि इस पद्धति में अंतिम निर्णय लेने का अधिकार जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों के हाथ में रहता है। बहुत से देश ऐसे हैं जहाँ प्रतिनिधियों को तो निर्वाचित किया जाता है, परंतु अंतिम निर्णय लेने की शक्ति निर्वाचित प्रतिनिधियों के हाथ में नहीं रह पाती । ऐसे देश अपने को लोकतांत्रिक होने का दावा तो अवश्य करते हैं, परंतु उनके दावे में कोई दम नहीं रहता। जनरल मुशर्रफ के शासनवाले पाकिस्तान की गणना ऐसे देशों में ही की जाती है। पाकिस्तान में भी जनता के प्रतिनिधियों का निर्वाचन होता था और मंत्रिपरिषद का भी गठन होता था, परंतु इन दोनों के पास अंतिम निर्णय लेने की शक्ति नहीं थी। अंतिम निर्णय लेने का अधिकार वहाँ के राष्ट्रपति के पास ही था। पाकिस्तान की तरह अन्य तानाशाही और राजशाहीवाली शासन व्यवस्थाओं में भी अंतिम निर्णय की शक्ति निर्वाचित जनप्रतिनिधियों के पास नहीं रहकर तानाशाह और राजाओं के पास ही रहती है। ऐसी अवस्था में ऐसी शासन पद्धतियों को लोकतंत्र की श्रेणी में कदापि नहीं रखा जा सकता।
(ii) लोकतंत्र की दूसरी विशेषता है – इसका निष्पक्ष और स्वतंत्र निर्वाचन पर आधृत होना। कई ऐसे देश हैं जहाँ निर्वाचन का स्वांग तो रचा जाता है, परंतु चुनाव स्वतंत्र एवं निष्पक्ष नहीं होते हैं। विघटन के पूर्व सोवियत संघ में भी निर्वाचन वैसा ही होता था। परंतु, साम्यवादी दल के अधिनायकत्व के कारण सिर्फ साम्यवादी दल के सदस्य अथवा साम्यवादी दल के समर्थक ही निर्वाचन में भाग लेते थे। वर्तमान में चीन में भी यही व्यवस्था है । यहाँ भी संसद, अर्थात राष्ट्रीय जन संसद के सदस्यों का निर्वाचन अवश्य होता है, परंतु निर्वाचन में भाग लेने के लिए उम्मीदवारों को चीन के साम्यवादी दल से स्वीकृति प्राप्त करनी पड़ती है। परिणामस्वरूप, चीन में साम्यवादी दल के समर्थक उम्मीदवार ही निर्वाचन में खड़े होते हैं तथा साम्यवादी दल की ही सरकार गठित होती है। मेक्सिको में भी 2000 तक यही स्थिति थी। यहाँ भी पी॰ आर॰ आई॰ (इंस्टीट्यूशनल रिवोल्यूशनरी पार्टी) की ही सरकार बनती थी । इस प्रकार, एक दल की तान हीवाले देशों में लोकतंत्र के अस्त्र के रूप में निर्वाचन का प्रयोग एक धोखा है अथवा दिखावामात्र है। निर्वाचन का अर्थ सिर्फ निर्वाचन की व्यवस्था कर देना ही नहीं होता, बल्कि निर्वाचन में स्वतंत्रतापूर्वक राजनीतिक विकल्पों के बीच चयन करने का अवसर दिया जाना भी है। स्पष्ट है कि एक दल की तानाशाहीवाले राज्यों को लोकतांत्रिक राज्य नहीं कहा जा सकता।
(iii) लोकतंत्र की तीसरी विशेषता है— लोकतंत्र का ‘एक व्यक्ति – एक वोट- एक मोल’ के सिद्धांत पर आधृत होना। वैसे देशों को भी सही अर्थ में लोकतांत्रिक शासन पद्धतियोंवाले देशों में नहीं गिना जा सकता जहाँ बिना किसी भेदभाव के लोगों को सार्वजनिक वयस्क मताधिकार प्राप्त नहीं है। मतदान के अधिकार के संबंध में स्त्री-पुरुष, बहुसंख्यक-अल्पसंख्यक, मूल निवासी तथा विदेशी मूल निवासी का भेदभाव कई देशों में अभी भी विद्यमान है। जहाँ सऊदी अरब में महिलाओं को मताधिकार से वंचित रखा गया है, एस्टोनिया नामक पूर्व सोवियत संघ के गणराज्य में रूसी अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को मताधिकार हासिल करने में मुश्किल होती है, वहाँ फिजी में भारतीय मूल के निवासी के मत का मूल्य फिजी के मूल निवासी की तुलना में कम रखा गया है। लोकतंत्र के लिए यह आवश्यक है कि मत का एकसमान मूल्य हो ।
(iv) लोकतंत्र की अंतिम, लेकिन सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसमें विधि के शासन और नागरिक अधिकारों को संरक्षण प्राप्त रहता है। लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में नागरिकों को कुछ मौलिक अधिकार प्रदान किए जाते हैं और उनके संरक्षण की भी व्यवस्था की जाती है। विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, संघ अथवा संगठन बनाने की स्वतंत्रता, राजनीतिक गतिविधियों में सहभागिता की स्वतंत्रता, कानून की दृष्टि में सबों को समानता का अधिकार, अवसर की समानता आदि मुख्य अधिकार हैं। इनके संरक्षण के लिए लोकतांत्रिक शासन में स्वतंत्र न्यायपालिका की व्यवस्था की जाती है। सरकार को भी सांविधानिक कानूनों के अनुसार ही आचरण करना पड़ता है। निर्वाचित सरकार को भी मनमाने ढंग से कानून बनाने तथा अपना कार्य करने का अधिकार नहीं होता है। निर्वाचित सरकार अपने क्रियाकलापों के लिए जनता के प्रति उत्तरदायी होती है। उसे अपने नागरिकों के सांविधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए सदा तत्पर रहना पड़ता है। सबसे अधिक इस बात के लिए सचेत रहना पड़ता है कि नागरिक मतदान के समय अपने मताधिकार का सही ढंग से प्रयोग कर सकें और निर्वाचन में उनकी पसंद के प्रतिनिधि निर्वाचित हो सकें । निर्वाचन में गलत तरीके नहीं अपनाए जा सकें। अधिकांश लोकतांत्रिक सरकारें ऐसे ही प्रयत्न करती हैं। परंतु, कुछ देश ऐसे भी हैं जहाँ लोकतंत्र के नाम पर मतदान में गलत हथकंडे का प्रयोग कर शासक अपने दल की जीत सुनिश्चित कर लेते हैं। इसे किसी लोकतांत्रिक राज्य के उदाहरण से स्पष्ट किया जा सकता है। जिंबाब्वे को उदाहरण के रूप में उपस्थित किया जा सकता है, जिसे 1980 में अल्पसंख्यक गोरों के शासन से मुक्ति मिली। जिंबाब्वे लोकतांत्रिक राज्य बना। जिंबाब्वे अफ्रीकी नेशनल यूनियन- देशभक्त मोर्चे (जानु-पी०एफ०) के नेता रॉबर्ट मुगाबे को देश का प्रधानमंत्री बनाया गया। मुगाबे तब से देश के शासन की बागडोर अपने हाथ में रखे रहे। यहाँ निर्वाचन भी नियमित रूप से होता रहा और जानु-पी०एफ० को ही बहुमत मिलता रहा। परंतु, निर्वाचन के संपन्न होने मात्र से ही लोकतांत्रिक राज्य की शर्तें पूरी नहीं हो जातीं। जिंबाब्वे में जो हुआ वह लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए सही नहीं था। मुगाबे की लोकप्रियता में कमी नहीं थी, फिर भी निर्वाचन में गलत तरीके अपनाए जाते रहे। सरकार के विरोधियों को कुचला जाता रहा। मीडिया की स्वतंत्रता पर अंकुश लगा। इससे स्पष्ट है कि लोकतांत्रिक सरकार का लोकप्रिय नेता भी तानाशाह हो सकता है।
लोकतंत्र क्यों ?
जितनी भी शासन पद्धतियाँ हैं, सबकी प्रशंसा और आलोचना हुई है। लोकतंत्र की भी कुछ विद्वानों ने प्रशंसा की है और कुछ ने आलोचना।
लोकतंत्र के गुण एवं पक्ष में तर्क
विद्वानों की प्रशंसा के आधार पर लोकतंत्र के गुण एवं पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिए जाते हैं —-
1. जनमत पर आधृत शासन – जनमत पर आधृत शासन का अर्थ हुआ कि शासन जनता की सामान्य इच्छा के अनुसार चलाया जाता है। इसमें प्रत्येक व्यक्ति की इच्छा को ध्यान में रखा जाता है।
2. समानता और स्वतंत्रता का पोषक – लोकतंत्र के अंतर्गत जाति, वंश, रंग, धर्म, लिंग आदि के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाता है। कानून के सामने सभी नागरिक समान माने जाते हैं। इसके अतिरिक्त लोकतंत्र स्वतंत्रता का भी पोषक है। इसके अंतर्गत विचार, भाषण, सभा इत्यादि की स्वतंत्रताएँ दी जाती हैं।
3. जनकल्याण का पोषक – लोकतंत्र का उद्देश्य सभी लोगों का कल्याण करना है। यह अधिकाधिक मनुष्यों की अधिकतम भलाई करना चाहता है।
4. राजनीतिक जागृति – लोकतंत्र जनता में राजनीतिक जागृति उत्पन्न कराने में भी सहायक होता है। निर्वाचन तथा शासनकार्य में भाग लेने के कारण जनता में राजनीतिक चेतना आती है।
5. लोकप्रिय एवं स्थायी शासन – जनता के हित का सबसे अधिक ध्यान रखे जाने के कारण ही लोकतंत्र सर्वाधिक लोकप्रिय शासन है। लोकतंत्र जनता की तथा जनता के लिए सरकार है। यह स्थायी शासन का साधन भी है, क्योंकि इसमें जनता ही शासन का संचालन करती है।
6. राजनीतिक और सामाजिक क्रांति का भय नहीं – इस शासन प्रणाली को जनता का सहयोग प्राप्त रहता है। जनता के संतुष्ट रहने के कारण राजनीतिक और सामाजिक क्रांति का भय नहीं रहता।
7. राष्ट्रीयता और देशभक्ति की भावना का विकास – जनता ही देश का शासक होती है, अतः लोकतंत्र में नागरिकों में देशभक्ति का विकास स्वाभाविक है। जनता को देश के लिए काम करने का मौका मिलता है। यही कारण है कि उसमें राष्ट्रीयता की भावना भी विकसित होती रहती है।
8. नैतिक और मानवीय महत्त्व – लोकतंत्र का नैतिक महत्त्व इस कारण है कि इसे सफल बनाना जनता अपना नैतिक कर्तव्य समझती है। लोकतंत्र का मानवीय महत्त्व तो स्वाभाविक है, क्योंकि यह लोककल्याण पर आधृत है।
लोकतंत्र के दोष एवं विपक्ष में तर्क
आलोचकों ने लोकतंत्र के दोष एवं विपक्ष में कई तर्क दिए हैं, जो इस प्रकार हैं —-
1. अयोग्यों की पूजा – प्लेटो और अरस्तू ने लोकतंत्र को मूर्खों की सरकार कहा है। एच० जी० वेल्स ने भी लोकतंत्र को बुद्धिहीनों एवं अज्ञानियों का शासन कहा है। प्रजातंत्र में मूर्ख तथा विद्वान, सच्चे और झूठे, चरित्रवान एवं चरित्रभ्रष्ट सबको समान रूप से शासन करने का अवसर मिलता है। व्यावहारिक जीवन में शिक्षित व्यक्तियों की कमी के कारण अंततः अयोग्यों के हाथ में ही शासन चला जाता है। अतः, अयोग्यों की ही पूजा होने लगती है।
2. अनुत्तरदायी शासन – सिद्धांततः लोकतंत्र उत्तरदायी शासन है, परंतु व्यवहार में यह अनुत्तरदायी शासन हो जाता है। इसमें उत्तरदायी केंद्रबिंदु को ढूँढ़ना कठिन है। प्रजातंत्र में शासन एक अव्यवस्थित भीड़ के हाथों में रहने के कारण किसी एक व्यक्ति को उत्तरदायी ठहराना कठिन होता है। जनता के प्रतिनिधि भी चुनाव जीतने के बाद अपने उत्तरदायित्व को भूल जाते हैं। जनता के हितों को ध्यान में नहीं रखकर दलविशेष के हितों का ध्यान रखा जाता है।
3. समय तथा धन का अपव्यय – लोकतंत्र में चुनावों पर करोड़ों रुपये खर्च होते हैं। चुनाव की प्रत्याशा में ही जनता बढ़नेवाली महँगाई से भयभीत हो जाती है। मंत्रियों की संख्या अधिक रहने से भी जनता के धन का अपव्यय होता है। साथ ही, जनता के प्रतिनिधियों के वेतन और भत्ते के रूप में राष्ट्रीय आय का एक बहुत बड़ा भाग अनावश्यक रूप से खर्च हो जाता है।
4. धनवानों की प्रबलता – निर्वाचन पद्धति के कारण धनवानों की बन आती है। पैसे के बल पर धनवान गरीब मतदाताओं से मत खरीदकर चुनाव जीत जाते हैं। निर्वाचन में चुने जाने के बाद वे धनवानों के हितों की ही रक्षा करने लगते हैं। इस प्रकार, गरीबों को सब तरह से नुकसान उठाना पड़ता है।
5. साहित्य, कला एवं संस्कृति का विरोधी – लोकतंत्र में उसी कार्यक्रम में धन खर्च किया जाता है जिससे मत अधिक बटोरा जा सके। साहित्य, कला एवं संस्कृति के विकास पर जितना ध्यान दिया जाना चाहिए उतना नहीं दिया जाता है। इसी आधार पर लोकतंत्र को साहित्य, कला एवं संस्कृति का विरोधी कहा जाता है ।
6. दलगत बुराइयाँ – लोकतंत्र का कार्य दलप्रथा के आधार पर होता है। राजनीतिक दल कपट को उत्साहित करते हैं, स्वाभाविक आदर्शों को हीन बनाते हैं और राष्ट्र के जीवन में फूट डालते हैं। दल हमेशा अपने स्वार्थ की सिद्धि में लगे रहते हैं। देश में दूषित वातावरण का निर्माण करते हैं और जनता के समक्ष भ्रामक आदर्श प्रस्तुत करते हैं। निर्वाचन के समय दलगत बुराइयाँ और उभर जाती हैं। सभी दल एक-दूसरे को नीचा दिखाने की चेष्टा करते हैं। दलगत बुराइयों के परिणामस्वरूप पारस्परिक कटुता और द्वेष में वृद्धि होती है और नागरिक जीवन अशांत हो जाता है।
7. कोरा आदर्शवाद – लोकतंत्र कोरे आदर्शवाद पर आधृत है। इसमें व्यावहारिक पक्ष पर ध्यान नहीं दिया जाता है। यह समानता और स्वतंत्रता जैसे सिद्धांतों पर अवश्य आधृत है, परंतु व्यवहार में समानता और स्वतंत्रता कहीं दिखाई नहीं देती।
8. वीरपूजा – लोकतंत्र में जनता अपनी मूर्खता के कारण एक नेता की पूजा करने लग जाती है। इसका लाभ उठाकर वह नेता तानाशाह भी बन सकता है। फ्रांस में नेपोलियन और जर्मनी में हिटलर इसी कारण तानाशाह बन सके।
लोकतंत्र के पक्ष और विपक्ष के तर्कों की विवेचना के बाद यह निष्कर्ष निकालना सही प्रतीत होता है कि लोकतंत्र ही शासन का सर्वोत्तम रूप है। इसके विपक्ष में जो तर्क दिए गए हैं उनके आधार पर हम इतना अवश्य कह सकते हैं कि लोकतंत्र की भी अपनी कमजोरियाँ हैं। लोकतंत्र भी अनेक समस्याओं से ग्रसित है। लोकतंत्र में भी अनेक गलतियाँ होती हैं। गरीबी और भ्रष्टाचार मिटाने में लोकतंत्र को पूर्ण सफलता नहीं मिल सकी है। इसके मार्ग में कई बाधाएँ हैं।
सर्वोत्तम शासन के रूप में लोकतंत्र
सभी बाधाओं के रहते हुए भी आजकल लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था को ही सर्वोत्तम माना जा रहा है। इसका मुख्य कारण यह है कि लोकतंत्र एक उत्तरदायी शासन है, इसमें सही निर्णय लेने की क्षमता है, मतभेदों और संघर्षों को दूर करने की क्षमता है तथा गलतियों को ठीक भी किया जा सकता है। लोकतंत्र अपने सम्मान की परवाह किए बिना भी अपने नागरिकों का सम्मान बढ़ाने के लिए सचेष्ट रहता है। अतः, एडवर्ड कारपेंटर के इस कथन से सहमति प्रकट की जा सकती है, हा! असम्मानित लोकतंत्र, मैं तुझे प्यार करता हूँ।
लोकतंत्र का व्यापक अर्थ
उपर्युक्त संदर्भ में ही लोकतंत्र का सही अर्थ समझा जा सकता है। सही अर्थ में लोकतंत्र एक जीवनदर्शन, एक सामाजिक व्यवस्था, एक आर्थिक ढाँचा तथा राज्य का एक स्वरूप है। लोकतंत्र का सही अर्थ हुआ— लोकतंत्र एक प्रकार का शासन है, एक सामाजिक व्यवस्था का सिद्धांत है, एक विशेष प्रकार की मनोवृत्ति है तथा एक आर्थिक आदर्श है। इसके अंतर्गत राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक व्यवस्था तथा दैनिक व्यवहार के सामाजिक एवं सांस्कृतिक मापदंड सम्मिलित हैं।
लोकतंत्र की सफलता की शर्तें
यह धारणा सही है कि लोकतंत्र सरकार का एक सर्वोत्तम रूप है, परंतु इस प्रकार की सरकार प्रत्येक देश में सफल नहीं हो सकती। इसकी सफलता के लिए अनुकूल वातावरण की आवश्यकता होती है। इसकी सफलता की आवश्यक शर्तें हैं
1. लोकतंत्र में आस्था – आस्था के बिना कोई सरकार नहीं टिक सकती। लोकतंत्र की सफलता के लिए तो लोकतंत्र में जनता की आस्था की सबसे अधिक आवश्यकता है, क्योंकि लोकतंत्र जनमत पर आधृत सरकार है।
2. नागरिकों की सच्चरित्रता – जनता को सच्चरित्र होना चाहिए। उनमें कर्तव्यपालन की क्षमता होनी चाहिए। जनता में ईमानदारी, सच्चाई और लगन होनी चाहिए। डॉ० वेनी प्रसाद का कहना है, लोकतंत्रीय सरकार की सफलता जनता में उच्चकोटि के चारित्रिक गठन, स्वराज्य की लालसा और समाजसेवा की भावना पर आधृत है।
3. जनता का शिक्षित होना – लोकतंत्र में जनता का शासन होता है, इसलिए आवश्यक है कि जनता शिक्षित हो । शिक्षित जनता के बिना लोकतंत्र की सफलता की आशा बेकार है। शिक्षा के बिना नागरिक न तो अपने अधिकारों का उपयोग ठीक ढंग से कर सकते हैं और न अपने कर्तव्यों का पालन ही कर सकते हैं। शिक्षित रहने पर ही जनता मतदान के अधिकार का भी उचित प्रयोग कर सकती है। जे० एस० मिल का कहना है, मतदान को सार्वजनिक बनाने के लिए शिक्षा का द्वार सभी व्यक्तियों के लिए खुला रहना चाहिए।
4. आर्थिक समानता – लोकतंत्र समानता के सिद्धांत पर आधृत । समानता में भी आर्थिक समानता का महत्त्व बहुत अधिक है। आर्थिक समानता का अर्थ है कि सभी नागरिकों को अर्थोपार्जन के लिए समान अवसर मिले, सबको समान और इतनी मजदूरी अवश्य मिले कि उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके। इसके महत्त्व के संबंध में कोल ने कहा है, आर्थिक समानता के अभाव में राजनीतिक स्वतंत्रता निरर्थक है।
5. सामाजिक समानता – आर्थिक समानता के साथ-साथ सामाजिक समानता भी नागरिकों को प्राप्त होनी चाहिए। गरीब, अमीर, धर्म, जाति, रंग आदि के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए। लोकतंत्र में सामाजिक समानता की सबसे अधिक आवश्यकता है।
6. राजनीतिक जागृति – जिस प्रकार स्वाधीनता के लिए बराबर जागृत रहने की आवश्यकता है, उसी प्रकार लोकतंत्र की सफलता और सुरक्षा के लिए भी राजनीतिक जागृति आवश्यक है। राजनीतिक जागृति से ही यह संभव है कि नागरिक राजनीतिक समस्याओं को समझेंगे और सही प्रतिनिधियों को चुन सकेंगे। अतः, लोकतंत्र के उज्ज्वल भविष्य के लिए नागरिकों में राजनीतिक जागृति आवश्यक है।
7. स्थानीय स्वशासन – स्थानीय स्वशासन लोकतंत्र की सर्वोत्तम पाठशाला है। स्थानीय स्वशासन में काम करने के बाद जनता को लोकतंत्र-संचालनकला की शिक्षा प्राप्त हो जाती है। अल्फ्रेड स्मिथ का कहना है, लोकतंत्र के सभी रोगों का निदान अतिलोकतंत्र से हो सकता है।
8. स्वस्थ और सच्चा जनमत – जनमत जनता की इच्छा है। जनता की इच्छा ही लोकतंत्र का आधार तथा पथप्रदर्शक है। कहा भी जाता है, सचेत और स्वस्थ जनमत लोकतंत्र की प्रथम शर्त है।
स्पष्ट है कि यदि हम चाहें तो लोकतंत्र को सफलता की ओर अग्रसर करा सकते हैं। अनेक बाधाओं और समस्याओं से घिरे रहने के बावजूद भी लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था अलोकतांत्रिक व्यवस्था से श्रेष्ठ है। यदि ऐसा नहीं होता तो नेपाल में लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए इतना बड़ा जन आंदोलन क्यों चलता? म्यांमार में सू ची कैद में रहकर भी देश में लोकतंत्र की बहाली के लिए बेचैन क्यों रहतीं? लोकतंत्र में जनता की सक्रिय भागीदारी से लोकतंत्र की समस्याओं पर भी विजय प्राप्त कर लिया जा सकता है।
स्मरणीय
⇒ लोकतंत्र से जनता के शासन का बोध होता है
⇒ समय-समय पर लोकतंत्र के कई सिद्धांतों का विकास हुआ; यथा – विधि का शासन, उत्तरदायित्व का सिद्धांत, मताधिकार, सार्वजनिक वयस्क मताधिकार, समानता इत्यादि ।
⇒ लोकतंत्र के दो भेद हैं— प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष।
⇒ प्रत्यक्ष लोकतंत्र शासन का वह रूप है जिसमें जनता प्रत्यक्ष रूप से शासन में भाग लेती है।
⇒ अप्रत्यक्ष लोकतंत्र शासन का वह रूप है जिसमें जनता के प्रतिनिधियों द्वारा शासन चलाया जाता है।
⇒ लोकतंत्र की मुख्य विशेषताएँ हैं- – अंतिम निर्णय लेने का अधिकार जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों के हाथ में, निष्पक्ष और स्वतंत्र निर्वाचन पर आधृत, एक व्यक्ति – एक मत और एक मूल्य के सिद्धांत पर आधृत तथा विधि के शासन और नागरिक अधिकारों को संरक्षण प्राप्त ।
⇒ लोकतंत्र के प्रशंसक अधिक हैं, इसीलिए इसके गुणों की ही चर्चा विशेष रूप से की गई है। इसके पक्ष और विपक्ष में भी तर्क उपस्थित किए जाते हैं। इसके पक्ष में मुख्य तर्क हैं— जनमत पर आधृत शासन, समानता और स्वतंत्रता का पोषक, जनकल्याण का पोषक, राजनीतिक