वाचन के अर्थ एवं प्रकार बताइए ।

वाचन के अर्थ एवं प्रकार बताइए ।

उत्तर— वाचन का अर्थ (Meaning of the Term Reading ) वाचक एक कला है। वाचन भाषा के लिखित रूप पर आधारित रहता है। सामान्य भाषा में लिखे हुए या छपे हुए शब्दों का उच्चारण करना वाचन कहलाता है। दूसरे शब्दों में, किसी पुस्तक या पठनीय साम्रगी के पढ़ने को वाचन कहते हैं।
वाचन के समय हमारा ध्यान भाषा के बाह्य रूप पर केन्द्रित रहता हैं वाचन पाठक का ध्यान वर्णों की पहचान, उच्चारण, पद- संहति, लय तथा विराम आदि पर रहता है। यह वाचन का संकुचित अर्थ है । वाचन ध्वनियों के प्रतीत लिपिबद्ध शब्दों को गति के साथ पढ़कर अर्थ-ग्रहण की प्रक्रिया वाचन अथवा पठन कहलाती हैं। यह वाचन का विस्तृत अर्थ है । अतः यह कहा जा सकता है कि वाचन वह क्रिया है जिसमें प्रतीक ध्वनि एवं अर्थ दोनों ही निहित रहते हैं। पढ़ते समय अक्षरों के प्रत्यय मस्तिष्क में क्रमबद्ध होकर एक तस्वीर बनाते हैं और हम उसे उच्चारित करते हैं।
वह क्रिया जिसमें शब्दों के साथ अर्थ- ध्वनि भी निहित है, वाचन कहलाती है।
वाचन के रूप–स्वर की दृष्टि से वाचन के दो रूप हैं—
(1) सस्वर वाचन
(2) मौन वाचन
(1) सस्वर वाचन (Loud Reading)
स्वर सहित वाचन (पठन) को सस्वर वाचन कहते हैं । अध्यापक के आदर्श वाचन के उपरान्त छात्रों से सस्वर वाचन कराना आवश्यक होता है। सस्वर वाचन में छात्र पढ़ने के साथ-साथ बोलता भी जाता है । सस्वर वाचन में सर्वप्रथम बालक लिपिबद्ध अक्षरों को देखता है, पहचानता है, शब्दों को समझता है तथा फिर उच्चारण करता है ।
सस्वर वाचन के भेद — सस्वर वाचन के दो भेद हैं—
(i) व्यक्तिगत वाचन–जब एक बालक या व्यक्ति आवाज करते हुए पढ़ता है तो उसे व्यक्तिगत वाचन कहा जाता है। जब यह वाचन अध्यापक के द्वारा किया जाता है तो इसे आदर्श वाचन कहते हैं एवं छात्र द्वारा किए जाने पर इसे अनुकरण वाचन कहा जाता है। छात्र अध्यापकों के वाचन का अनुकरण करते हैं ।
(ii) सामूहिक वाचन– इसे समवेत पठन भी कहते हैं। इसमें दो या दो से अधिक छात्र एक साथ जोर से बोल-बोलकर पढ़ते हैं। इससे बालकों की झिझक दूर होती है तथा सस्वर वाचन में कुशलता प्राप्त कर लेते हैं। सामूहिक वाचन में इस बात का ध्यान रखा चाहिए कि वाचन सही ढंग से हो तथा शोरगुल का वातावरण न बन जाए।
(2) मौन वाचन (Silent Reading)
लिखित सामग्री को मन-ही-मन बिना आवाज किए अर्थ ग्रहण करने की क्रिया को मौन वाचन कहा जाता है। मौन वाचन में ओठ नहीं मिलने चाहिए तथा मुँह के दाँत दिखाई नहीं देने चाहिए ।
मौन वाचन के भेद– मौन पठन के उद्देश्य तथा गति के आधार पर उसके दो भेद किये जा सकते हैं—
(1) गहन/गंभीर वाचन (2) द्रुत वाचन ।
(1) गहन/गम्भीर वाचन– गम्भीर वाचन में भाषा की कुछ ऐसी पाठ्य सामग्री होती है जिसका अध्ययन गहनता तथा सूक्ष्मता के साथ किया जाता है। गहन अध्ययन में बालक पाठ्यवस्तु की तह तक पहुँचता है। गहन वाचन बालक की चिन्तन- शक्ति, मनन-शक्ति, कल्पनाशक्ति तथा गहन करने की शक्ति का विकास होता है।
(2) द्रुत वाचन– भाषा की पाठ्य सामग्री को मौन रूप तथा द्रुत गति से पढ़ने को द्रुत वाचन कहते हैं। इसमें पाठ्य सामग्री को शीघ्रता से पढ़ना होता है तथा उसका केन्द्रीय भाव समझने का प्रयत्न किया जाता है। समाचार-पत्र, पत्र-पत्रिकाएँ तथा मनोरंजन सामग्री के अध्ययन में द्रुताचन का बड़ा महत्त्व होता है।
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