वाचन कौशल क्या है ?
वाचन कौशल क्या है ?
उत्तर— वाचन कौशल–पठन (वाचन) भाषा के लिखित रूप पर आधारित होता है। बालक मातृ-भाषा बोलना पहले सीख जाता है और बाद में पढ़ना । भाषा – शिक्षण में पठन (वाचन) का अत्यधिक महत्त्व है। जब हमें लिखित बात स्वयं पढ़नी होती है अथवा किसी को वह बात पढ़कर सुनानी होती है तो उस बात को प्रवाहपूर्ण, शुद्ध उच्चारण के साथ मधुर वाणी में पढ़ने का प्रयास करते हैं। इस रीति से लिखित सामग्री का पढ़ना ही भाषा में वाचन कहलाता है। कभी-कभी लिखित सामग्री को मन ही मन में पढ़ना पड़ता है। इस प्रकार के पढ़ने को मौन वाचन की संज्ञा दी जाती है अतः वाचन में लिपि का पढ़ना ही आवश्यक नहीं, वरन् पढ़कर उसे समझ लेना भी आवश्यक है।
वाचन का अर्थ—
किसी भी लिखित सामग्री का पढ़ना ही वाचन कहलाता है। भाषा के दो भेद हैं- ध्वन्यात्मक और रूपात्मक। ध्वन्यात्मक मौखिक होता है और रूपात्मक लिखित । हम वाचन भाषा के लिखित रूप का ही प्रयोग करते हैं जिसमें ध्वनि, अर्थ तथा प्रतीक तीनों तत्त्वों का सम्मिश्रण रहता है। इस लिखित रूप में पुस्तकें, शिलालेख, मुद्रा, चिट्ठी, पत्र-पत्रिका आदि सभी आ जाते हैं। वस्तुत: वाचन में लिपि को पढ़ना उतना आवश्यक नहीं है, जितना उसे पढ़कर उसमें व्यक्त भावों को समझना और शब्दों का अर्थ ग्रहण करना है।
व्यापक दृष्टि से पढ़ने (वाचन) का अर्थ याक्षर होता है जिसके भीतर पढ़ना, लिखना और गणित का ज्ञान अन्तर्निहित रहता है। अंग्रेजी में इसे थ्री आर (Three R) कहते हैं जिसका अर्थ होता है Reading, Writing, Arthmetic अर्थात् पठन, लेखन और अंकगणित । पठन का अर्थ केवल पुस्तक को पढ़ना मात्र नहीं है वरन् पढ़कर उसे समझना, उसका अर्थ ग्रहण करना भी उतना महत्त्वपूर्ण है। बिना अर्थ ग्रहण किये पढ़ने को पाठन नहीं कहा जा सकता।
वाचन की परिभाषा इस प्रकार दी जा सकती है कि, “पूर्वश्रुत ध्वनियों के प्रतीक लिपिबद्ध शब्दों को पढ़कर अर्थग्रहण करने का प्रक्रिया को वाचन कहते हैं । “
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