संवेगात्मक विकास के शिक्षण एवं अधिगम प्रक्रिया पर प्रभाव को स्पष्ट कीजिए ।

संवेगात्मक विकास के शिक्षण एवं अधिगम प्रक्रिया पर प्रभाव को स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर— संवेगात्मक विकास के शिक्षण एवं अधिगम प्रक्रिया पर प्रभाव – संवेग, विचार तथा व्यवहार के मुख्य चालक होते हैं । वे जीवन में आनन्द भरते हैं और महत्त्वपूर्ण गुणों की वृद्धि करते हैं निम्नलिखित तत्त्व संवेगों के महत्त्व के सूचक हैं और संवेगात्मक सिखलाई की आवश्यकता को प्रकट करते हैं—
(1) संवेग तथा शारीरिक स्वास्थ्य – शारीरिक स्वास्थ्य संवेगों के उचित विकास पर निर्भर होता है। यदि संवेगात्मक स्वास्थ्य ठीक नहीं है तो शारीरिक स्वास्थ्य कभी भी ठीक नहीं हो सकता। संवेगों के बढ़ने से ग्रन्थियाँ बहुत क्रियाशील होती हैं, दिल की धड़कन, नाड़ी की गति तथा सांस की रफ्तार तेज हो जाती है। नाड़ियाँ तन जाती है और पाचन शक्ति को हानि पहुँचती है। ये घबराहट में गड़बड़ी पैदा करते हैं। ठीक शारीरिक स्वास्थ्य के लिए यह जरूरी है कि मनुष्य का संवेगों पर नियंत्रण हो।
(2) संवेग तथा मानसिक स्वास्थ्य – मानसिक स्वास्थ्य भी संवेगों पर निर्भर करता है। यदि संवेगों को ठीक तरह न संभाला जाए तो वे कई प्रकार के मानसिक रोग, जैसे-मन-संताप दूर साध्य-उन्माद रोग के डर ग्रस्तता विवशता जनून स्विजोफरेनिया तथा मानसिक असाधारणएँ हो जाती है। कई चिन्ताएँ तथा समस्याएँ पैदा हो जाती हैं।
(3) संवेग तथा सामाजिक जीवन – सामाजिक जीवन में संवेगों का महत्वपूर्ण स्थान है। मित्रों तथा समाज में शबाशी प्राप्त करने के लिए मनुष्य के संवेग सन्तुलित तथा परिपक्व होने चाहिए। प्राय: यह देखने में आता है कि परिपक्व तथा स्थायी संवेग का स्वामी, जिसे क्रोध पर नियंत्रण प्राप्त है समाज में सब द्वारा पसन्द किया जाता है। इसके विपरीत अपरिपक्व संवेगों वाला मनुष्य जिसे संवेगात्मक प्रतिक्रिया पर नियंत्रण नहीं, समाज द्वारा पसन्द नहीं किया जाता । वह अपने लिए तथा समाज के लिए दुःख का कारण बनता है ।
(4) संवेग तथा चरित्र – संवेग आचरण का कच्चा माल होते हैं । चरित्र तथा व्यक्तित्व के सन्तुलित विकास के लिए उचित संवेग पैदा करने चाहिए। मनोभावों की रचना संवेगों की सिखलाई का एक पहलू हैं, इसलिए उन्हें सिखाया जाना चाहिए।
(5) संवेग तथा वाणी – खोज से पता चलता है कि निरन्तर संवेगात्मक बोझ हकलाने तथा अटक-अटक कर बोलने का कारण बनता है। बहुत से बच्चों के हकलाने का कारण उनकी संवेगात्मक होती है।
(6) संवेग तथा अभिवृत्ति – नर्म तथा गर्म स्वभाव संवेगात्मक बोझ और निराशा के कारण हो सकता है ।
(7) संवेग तथा अधिगम — अधिगम संवेगों पर निर्भर होता है । तीव्र संवेगों तथा मुसीबत के कारण सीखने को हानि पहुँचती है। सुखदायक संवेग, जैसे—प्रसन्नता, हर्ष, आशा, उत्साह तथा संतोष अधिगम में सहायता करते हैं और विद्यार्थियों को एकाग्रता से पढ़ाई करने में सहायता करते
(8) आनन्द का साधन – संवेगों के नियंत्रण से मनुष्य को आनन्द की प्राप्ति होती है ।
(9) अभिप्रेरणा का साधन – संवेगों के नियंत्रण एवं प्रशिक्षण से मनुष्य को स्वस्थ अभिप्रेरणा प्राप्त होती है। नियंत्रित संवेग व्यक्ति को स्वस्थ एवं उपयोगी क्रियाओं के लिए अभिप्रेरित करते हैं।
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