विधुत जनित्र क्या है ? नामांकित आरेख खींचकर किसी विधुत जनित्र का मूल सिद्धांत तथा कार्यविधि स्पष्ट कीजिए। इसमें बुशों का क्या कार्य है ?

विधुत जनित्र क्या है ? नामांकित आरेख खींचकर किसी विधुत जनित्र का मूल सिद्धांत तथा कार्यविधि स्पष्ट कीजिए। इसमें बुशों का क्या कार्य है ?

अथवा, स्वच्छ चित्र की सहायता से विधुत जनित्र का सिद्धान्त एवं क्रिया प्रणाली की व्याख्या कीजिए।

अथवा, विधुत जेनरेटर से आप क्या समझते हैं ? यह किस सिद्धांत पर कार्य करता है ? इसकी बनावट एवं क्रिया विधि का वर्णन करें।

उत्तर ⇒ प्रत्यावर्ती धारा प्राप्त करने के विधुत उपकरण को विधुत जनित्र कहते है।

सिद्धांत – जनित्र इस सिद्धांत पर आधारित है कि किसी चालक में प्रेरित धारा तब उत्पन्न होती है जब इससे संबंधित चुंबकीय रेखाओं में परिवर्तन होता है । उत्पन्न विधुत धारा की दिशा फ्लेमिंग के दायें हाथ के नियम के अनुसार होती है ।

फ्लेमिंग का दायें हाथ का नियम – अपने दायें हाथ के अंगूठे, तर्जनी और मध्यमा अंगुली को इस प्रकार फैलाएँ कि प्रत्येक एक-दूसरे के साथ समकोण बनाए तो तर्जनी चुंबकीय क्षेत्र की ओर संकेत करती है, अंगूठा चालक की गति की दिशा को प्रदर्शित करता है और मध्यमा अंगुली कुंडली में उत्पन्न विधुत धारा की दिशा को देखती है।

फ्लेमिंग का दायें हाथ का नियम - अपने दायें हाथ के अंगूठे, तर्जनी और मध्यमा अंगुली को इस प्रकार फैलाएँ कि प्रत्येक एक-दूसरे के साथ समकोण बनाए तो तर्जनी चुंबकीय क्षेत्र की ओर संकेत करती है, अंगूठा चालक की गति की दिशा को प्रदर्शित करता है और मध्यमा अंगुली कुंडली में उत्पन्न विधुत धारा की दिशा को देखती है।

किसी साधारण प्रत्यावर्ती जनित्र में निम्नलिखित प्रमुख भाग होते हैं –

1. आर्मेचर – इसमें मृद लोहे की क्रोड पर तांबे की तार की अवरोधी बड़ी संख्या में कुंडली ABCD होती है। इसे आर्मेचर कहते हैं। इसे एक धुरी पर लगाया जाता है जो गिरते पानी, हवा या भाप की सहायता से घूम सकती है।

2. क्षेत्र चुंबकव – कुंडली को शक्तिशाली चुंबकों के बीच स्थापित किया जाता है। छोटे जनित्रों में स्थायी चुंबक लगाए जाते हैं। पर बड़े जनित्रों में विधुत चुंबकों का प्रयोग किया जाता है । ये चुंबकीय क्षेत्र को उत्पन्न करते हैं।

3. स्लिप रिंगज – धातु के दो खोखले रिंग R, और R, को कुंडली की धुरी पर लगाया जाता है। कुंडली के AB और CD को इनसे जोड़ दिया जाता है। आर्मेचर के घूमने के साथ R, और R, भी साथ-साथ घूमते हैं।

4. दो कार्बनिक ब्रशों B, और B, से विद्युत धारा को लोड तक ले जाया जाता है। चित्र में इसे गैल्वनोमीटर से जोड़ा गया है जो विधुत धारा को मापता है।

कार्य विधि – जब कुंडली को चुंबक के ध्रुवों N और S के बीच घड़ी की सूई को विपरीत दिशा घुमाया जाता है तब AB नीचे और CD ऊपर की दिशा में जाता है। उत्तरी ध्रुव के निकट AB चुंबकीय रेखाओं को काटती है और CD ऊपर दक्षिणी ध्रव के निकट रेखाओं को काटती है। इससे AB और DC में प्रेरित धारा उत्पन्न होती है। फ्लेमिंग के दायें हाथ के नियमानुसार विद्युत धारा B से A और D से C की ओर बहती है। प्रभावी विद्युत धारा DCBA की दिशा में चलता है। आधे चक्कर के बाद कुंडली के AB और DC अपनी स्थिति को बदल लेते हैं । AB दायीं तरफ और DC बायीं तरफ हो जाएगा इससे AB ऊपर तथा DC नीचे की ओर हो जाएंगे। इस परिवर्तन के कारण कुंडली में धारा की दिशा आधे घुमाव के बाद उलट जाएगी। दो सिरों की धन और ऋण ध्रुवण भी परिवर्तित हो जाएगी। हमारे देश में 50Hz प्रत्यावर्तन धारा का प्रयोग किया जाता है। इसलिए कुंडली को एक सैकेंड में 50 बार घुमाया जाता है। एक चक्कर में धारा अपनी दिशा को 2 बार बदलती है।

इस व्यवस्था में एक ब्रश उस भजा के साथ संपर्क में रहता है जो चुबकाय क्षेत्र में ऊपर की ओर गति करती है। इसका ब्रश सदा नीचे की ओर गति करन वाली भुजा के संपर्क में रहता है।

इस व्यवस्था में एक ब्रश उस भजा के साथ संपर्क में रहता है जो चुबकाय क्षेत्र में ऊपर की ओर गति करती है। इसका ब्रश सदा नीचे की ओर गति करन वाली भुजा के संपर्क में रहता है।

Ajit kumar

Sub Editor-in-Chief at Jaankari Rakho Web Portal

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