व्याख्या करें –
व्याख्या करें –
“बनकर शायद हंस मैं किसी किशोरी का;
धुंधरू लाल पैरों में;
तैरता रहूँगा बस दिन-दिन भर पानी में
गंध जहाँ होगी ही भरी, घास की।”
उत्तर :- प्रस्तुत अवतरण बांग्ला माहित्य के प्रख्यात कवि जीवनानंद दास द्वारा रचित “लौटकर आऊँगा फिर” कविता । से उद्धृत है। इस अंश में कवि बंगाल की भूमि पर बार-बार जन्म लेने की उत्कट इच्छा को अभिव्यक्त करता है।
यहाँ कवि बंगाल में एक दिन लौटकर आने की बात कहता है। वह अगले जन्म में भी अपनी मातृभूमि बंगाल में ही जन्म लेने का विचार प्रकट करता है। वह
हंस. किशोरी और घुघरू की बिम्ब-शैली में अपने-आपको उपस्थित करना कहता है कि जहाँ की किशोरियाँ पैरों में घुघरू बाँधकर हंस के समान मधा में अपनी नाच से लोगों को आकर्षित करती हैं, वही स्वरूप मैं भी धारण करना चाहता हूँ। यहाँ तक कि बंगाल की नदियों में तैरने के एक अलग आनंद की अनभति मिलती है। यहाँ की क्यारियों में उगने वाली घास की गंध कितनी मनमोहक होती है यह तो बंगप्रांतीय ही समझ सकते हैं । इस प्रकार, कवि पर्ण अपनत्व की भावना में प्रवाहित होकर हार्दिक इच्छा को प्रकट किया गया है।
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