‘राम नाम बिनु बिस्थे जगि जनमा’ और ‘जो नर दुख में दुख नहि मानै।” कविता का सारांश लिखें।

‘राम नाम बिनु बिस्थे जगि जनमा’ और ‘जो नर दुख में दुख नहि मानै।” कविता का सारांश लिखें।

उत्तर :- पाठयपुस्तक में गुरुनानक के दो पद संगृहित हैं : ‘राम नाम बिन बिरथे जगि जनमा’ और ‘जो नर दुख में दुख नहिं माने।” प्रथम पद में गुरु नानक ने बाहरी वेश-भूषा , पूजा-पाठ और कर्मकांड के स्थान पर निश्छल-निर्मल हृदय से राम नाम के कीर्तन। पर जोर दिया है। गुरु नानक ऐसा मानते हैं कि राम नाम कीर्तन से ही व्यक्ति को स्थायी शांति मिल सकती है और उसके सारे सांसारिक दु:ख-दर्द मिट सकते हैं। दूसरे पद में गुरु नानक ने कहा है कि सुख-दु:ख, हर्ष-विषाद आदि में एक सम्मान उदासीन रहते हुए हमें अपने मानसिक दुर्गुणों से ऊपर उठकर अंत:करण को विश् शुद्ध और निर्मल रखना चाहिए, क्योंकि इसी स्थिति में गोविंद से एकाकार होने की संभावना रहती है। गुरु नानक कहते हैं कि राम नाम के बिना इस संसार में जन्म होना व्यर्थ है। राम नाम के बिना हम विष खाते हैं और विष ही बोलते हैं। अर्थात, राम नाम के बिना हमारा खाना जहर के समान होता है और हमारी वाणी जरह के समान होती है। पुर तक पढ़ने, शास्त्रों पर चर्चा करने और संध्याकालीन उपासना करने से हमें मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती। राम के बिना हम विभिन्न जंजालों में उलझकर मर जाते हैं। जीवन में स्थायी शांति धार्मिक बाह्याडंबरों और तीर्थाटन करने से नहीं प्राप्त होती, राम नाम के जपने से ही प्राप्त होती है। भवसागर पार करने का सबसे सुगम मार्ग है राम नाम का जप करना। गुरु नानक कहते हैं कि जो नर दु:ख में दु:ख नहीं मानता, सुख-दु:ख में जो उदासीन रहता है प्रीति और भय जिसके लिए एक समान है, सोना और मिट्टी में जो द नहीं करता; हर्ष और शोक जिसके लिए पृथक्-पृथक् नहीं हैं, वह नर गुरु की कृपा प्राप्त करता है और उसे ही प्रभु के सान्निध्य का सुख मिलता है।

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