शिक्षण एवं अधिगम में पाठ्यपुस्तक पठन व चिन्तन का क्या महत्त्व है ?

शिक्षण एवं अधिगम में पाठ्यपुस्तक पठन व चिन्तन का क्या महत्त्व है ? 

उत्तर— शिक्षक प्रशिक्षण के समय शिक्षक शिक्षार्थी को पूरी तरह से किसी भी भाषा पर निर्भर रहना पड़ता है। चूँकि शिक्षार्थी भी किसी क्षेत्रीय भाषा के सम्पर्क में होते हैं तथा उनके परिवारों में भी क्षेत्रीय भाषा बोली जाती है। अतः शिक्षक समन्वय की विचारधारा से अलग नहीं हो सकता । इसलिए शिक्षण के विषय में पठन के महत्त्व की आवश्यकता होती है। पठन की प्रक्रिया को किस प्रकार सम्पन्न किया जाए, इसमें पुस्तकालय एवं पुस्तकों का क्या महत्त्व है, पढ़ना सिखाने की कौन-कौन विधियाँ हैं, विभिन्न प्रकार के पाठों का स्वरूप किस प्रकार का होता है और उनका पठन किस प्रकार किया जाए ? इन सभी का ज्ञान एक अध्यापक को होना आवश्यक है ।
पाठ्यवस्तु या पाठ का स्वरूप–लिखित अभिव्यक्ति को जब व्यवस्थित रूप में प्रस्तुत किया जाता है तो यह लिखित पाठ्यवस्तु या पाठ कहलाती है। लेखन के स्वरूप के आधार पर पाठ का स्वरूप निर्धारित होता है। इस प्रकार विभिन्न पाठों का निर्माण और उनका अध्ययन किया जाता है।
पठन एवं लेखन हेतु विभिन्न प्रकार के पाठ या पाठ्यवस्तु निम्नलिखित हैं—
(1) व्याख्यात्मक पाठ—व्याख्या शब्द का अर्थ है समझना और समझकर विवेचन करना । समीक्षा और समालोचना शब्दों का भी यही अर्थ है । अंग्रेजी के ‘क्रिटिसिज्म’ शब्द के समानार्थी रूप में आलोचना शब्द का व्यवहार होता है। संस्कृत में प्रचलित ‘टीका-व्याख्या’ और काव्य सिद्धान्त निरूपण के लिए भी आलोचना शब्द का प्रयोग कर लिया जाता है।
व्याख्या का कार्य है किसी साहित्यिक रचना की अच्छी प्रकार परीक्षा करके उसके रूप, गुण और अर्थ-व्यवस्था का निर्धारण करना। कृति की व्याख्या और विश्लेषण के लिए पद्धति और प्रणाली का महत्त्व होता है। व्याख्या करते समय व्याख्याकार अपने व्यक्तिगत राग-द्वेष, रुचि- अरुचि से तभी बच सकता है जब पद्धति का अनुसरण करे तभी वह वस्तुनिष्ठ होकर साहित्य के प्रति न्याय कर सकता है। भाषा के विकास के लिए यह आवश्यक है कि लेखन के विकास की प्रक्रिया को व्यावहारिक जीवन से जोड़ा जाए। अपने दैनिक जीवन में हमें अनेक प्रकार की घटनाएँ देखने, सुनने को मिलती हैं। यदि इन घटनाओं के व्याख्यात्मक विवरण लिखे जाएँ तो लेखन का अच्छा अभ्यास हो जाता है। साथ ही साथ पाठकों को घटना के बारे में जानकारी भी मिलती है। इस प्रकार के पाठ विवरणात्मक या व्याख्यात्मक पाठ कहलाते हैं ।
(2) वर्णनात्मक पाठ—वर्णन शब्द का अर्थ व्यापकता के साथ किसी विषयवस्तु को व्यक्त किया जाना है। वर्णन के अन्तर्गत वर्णनकर्त्ता की भावना भी छिपी होती है। इसलिए वर्णन के समय प्राय: अतिशयोक्ति की स्थिति भी पायी जाती है; जैसे—शिवाजी की गाथा वर्णन में शिवाजी की प्रशंसा में अतिशयोक्ति का समावेश पाया जाता है। इसमें विभिन्न प्रकार की भावनाओं के वर्णन के लिए ध्यान शैली एवं भाव बोधक भाषा का प्रयोग करना अनिवार्य है। वर्णन में व्यक्ति के अपने विचार भी सम्मिलित होते हैं ।
वर्णन के उद्देश्य—वर्णन के निम्नलिखित उद्देश्य हैं—
(i) इसका प्रमुख उद्देश्य प्रशिक्षुओं को वर्णन का वास्तविक अर्थ एवं प्रक्रिया को समझाना है, जिससे कि सभी प्रशिक्षु इसको समझ सकें तथा उसके अनुसार विद्यालय में विभिन्न
प्रकार की घटनाओं एवं वृत्तों का वर्णन प्रभावी रूप में सम्पन्न कर सकें।
(ii) वर्णन कौशल को अधिगम अनुभव के रूप में विकसित करने की प्रक्रिया का ज्ञान प्रशिक्षुओं को प्रदान करना, जिससे कि सभी प्रशिक्षु अपने भावी जीवन में वर्णन प्रक्रिया के माध्यम से छात्रों को विभिन्न क्षेत्रों में अधिगम करा सकें तथा अधिगम की प्रक्रिया को रुचिपूर्ण बना सकें।
(iii) वर्णन के घटकों से परिचित कराना, जिससे कि सभी प्रशिक्षु वर्णन की प्रक्रिया के समस्त घटकों को समझ सकें तथा उसका प्रयोग करते हुए छात्रों में भी वर्णन के गुणों को विकसित कर सकें ।
(iv) इस सोपान के माध्यम से प्रशिक्षुओं में अधिगम परिस्थितियों के सृजन की योग्यता विकसित करना, जिससे वे अपने भावी जीवन में अधिगम परिस्थितियों के सृजन कर सकें ।
(v) वर्णन प्रक्रिया के प्रभावी दिशा-निर्देश के बारे में प्रशिक्षुओं को परिचित करना इस सोपान का प्रमुख उद्देश्य है, जिससे वे अपने भावी जीवन में भी कक्षा के छात्रों को इस योग्यता से परिचित करा सकें ।
(3) विमर्शात्मक पाठ—विमर्शात्मक पाठ भी एक महत्त्वपूर्ण विधा है। यह पठन के प्रकारों से ही सम्बन्धित है । इसमें पाठक द्वारा विषयवस्तु का गहरायी से अध्ययन किया जाता है। इसमें पठन करने वाला भाव के साथ पूर्ण तादात्म्य कर लेता है। इसलिए विमर्शात्मक पाठों के पठन को गहन पठन के रूप में माना जाता है। गहन पठन को उच्च स्तरीय श्रेणी के अन्तर्गत रखा जाता है परन्तु इसका अभ्यास छात्रों को प्राथमिक स्तर से कराया जा सकता है। उदाहरणार्थ, एक छात्र किसी कहानी या घटना को पढ़ता है तथा पढ़ने के पश्चात् यह जानने का प्रयास करता है कि कहानी का क्या उद्देश्य है तथा इसमें कौन-कौनसे सुधारात्मक पक्ष छिपे हुए हैं तो वह गहनतम पठन की श्रेणी में आ जाता है।
(4) व्यापारिक या व्यावसायिक पाठ—व्यापारिक या व्यावसायिक पाठों में विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं एवं समाचार पत्रों को सम्मिलित किया जाता है। इन पाठों को पढ़ने के लिए शिक्षक एवं छात्रों को स्वयं में योग्यता का विकास करना चाहिए, जिससे कि वे बाल समाचार पत्र एवं बाल पत्रिका के प्रकाशन में सहयोग प्रदान कर सकें। इसके लिए प्रशिक्षुओं को शिक्षण अभ्यास के समय छात्रों से सम्पर्क करके उन्हें बाल पत्रिका एवं बाल समाचार पत्र के प्रकाशन के लिए तैयार करना चाहिए। इसके लिए उच्च प्राथमिक स्तर के छात्रों को अधिक उत्तरदायित्व प्रदान करने चाहिए। प्राथमिक स्तर पर यह कार्य कक्षा 4 या 5 के बालकों को दिया जाना चाहिए।
इसके द्वितीय रूप में प्रशिक्षुओं द्वारा स्वयं इस कार्य को सम्पन्न किया जाता है तथा तैयार स्वरूप में इसको छात्रों के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है। इसमें प्रशिक्षुओं को प्रतिदिन समाचार पढ़ने के लिए नियुक्त किया जाता है, उनके संकलन की समीक्षा की जाती है यदि कोई त्रुटि होती है उसको अगले दिन दूर करने का प्रयास किया जाता है। बाल समाचार पत्र का प्रकाशन पाक्षिक एवं साप्ताहिक रूप में होना चाहिए। बाल पत्रिका का प्रकाशन वार्षिक या अर्द्धवार्षिक आधार पर होना चाहिए, जिससे कि उसकी तैयारी के लिए पूर्ण समय मिल जाए दोनों प्रकार की गतिविधियों में ही प्रशिक्षुओं की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है । इस सोपान का उद्देश्य प्रशिक्षुओं में बाल पत्रिका एवं बाल समाचार पत्र को प्रकाशित करने की योग्यता का विकास करना है तथा छात्रों को समाचार पत्र एवं पत्रिका के महत्त्व के बारे में समझाना है। इसलिए प्रशिक्षण काल में ही प्रशिक्षुओं को इस कार्य के योग्य बना दिया जाता है कि वे अपने भावी जीवन में कुशलतापूर्वक अपने दायित्वों को सम्पन्न कर सकें ।
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