पाठ्य पुस्तक से आप क्या समझते हैं ? एक अच्छी पाठ्य पुस्तक की क्या विशेषताएँ हैं ?

पाठ्य पुस्तक से आप क्या समझते हैं ? एक अच्छी पाठ्य पुस्तक की क्या विशेषताएँ हैं ?  

उत्तर— पाठ्य पुस्तक—शिक्षण के कार्य में पाठ्य-पुस्तकें सहायक रही हैं तथा अध्यापक का मार्ग-प्रदर्शन करती आ रही हैं। एक विद्वान के शब्दों में—’पाठ्य पुस्तक ज्ञान को मितव्ययी ढंग से प्रदान करने के लिये आवश्यक है। यह मनुष्यों तथा अध्यापकों का समय बचाती है, एक ही समय में लाखों मनुष्यों के हृदय को प्रभावित करती है। इनके द्वारा स्वाध्याय तथा आत्मविश्वास की वृद्धि की जा सकती है।”
डाक्टर थिग्र के मतानुसार एक पाठ्यपुस्तक अध्यापकों का अध्यापक है।
डगलस के शब्दों में अध्यापक तथा पाठ्यपुस्तक स्कूल बनाते है।
पाठ्य पुस्तक की उपयोगिता—
(i) पाठ्य पुस्तकों के द्वारा पाठ्य वस्तु को संगठित करके पढ़ाया जा सकता है।
(ii) इनके उपयोग से छात्र व अध्यापक दोनों का समय बचता है ।
(iii) तथ्यों का ज्ञान छात्र स्वयं कर लेते हैं ।
(iv) पाठ की तैयारी में विशेष सहायक होती हैं
(v) योजना विधि में इनका प्रयोग करना आवश्यक हो जाता है।
(vi) उचित चुनाव में दी गई पाठ्य-पुस्तक छात्रों को प्रेरणा का अवसर देती है ।
(vii) पाठ्य पुस्तक वह साधन है जिसके माध्यम से अध्यापक किसी विषय को कक्षा के सामने प्रस्तुत करने में समर्थ होता
(vili) कम मूल्य पर छात्र महत्त्वपूर्ण तथ्य तथा सूचनायें प्राप्त कर लेते हैं ।
(ix) पाठ्य-पुस्तकें छात्रों को स्वाध्याय की प्रेरणा देती हैं।
(x) गृह कार्य के लिये पाठ्य पुस्तकें विशेष रूप से सहायक सिद्ध होती हैं ।
उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट हो जाता है कि उत्तम पाठ्य-पुस्तक आधारभूत ज्ञान की प्राप्ति का साधन है। पाठ्य पुस्तक तभी उपयोगी होती है जब वह एक अच्छी पाठ्य पुस्तक हो ।
एक अच्छी पाठ्यपुस्तक की विशेषताएँ—पाठ्यपुस्तक शिक्षण का सर्वोत्तम उपकरण है। यह शिक्षकों का साथी तथा छात्रों का ज्ञानदाता है। पाठ्यपुस्तक की ये सभी विशेषताएँ समाप्त हो जाती हैं, यदि पाठ्यपुस्तक अच्छी न हो। इसके लिए आवश्यक है कि अच्छी पाठ्यपुस्तक का ही प्रयोग किया जाए। अच्छी पाठ्यपुस्तक में निम्न विशेषताएँ होती है—
(1) पुस्तक की बाह्य आकृति बच्चों की आयु के अनुसार होनी चाहिए। छोटे बालक चित्रों को देखने में आनन्द लेते हैं । अतः उनकी पाठ्यपुस्तक की बाह्य आकृति पूर्ण सजधज के साथ होनी चाहिए।
(2) पुस्तक का कागज साफ, चिकना तथा अच्छा हो।
(3) पुस्तक की जिल्द मजबूत तथा अच्छी हो ।
(4) पाठ्यपुस्तक की भूमिका ऐसी होनी चाहिए कि पाठकगण उस पुस्तक के मुख्य गुणों तथा उसकी केन्द्रीय समस्याओं को उसमें प्राप्त कर सकें। उसकी विषय सूची पुस्तक की संक्षिप्त योजना के रूप में होनी चाहिए।
(5) पाठ्यपुस्तक में पाठ्यपुस्तक का व्यवस्थापन इस प्रकार किया जाये जिससे प्रकरणों तथा पाठों का तारतम्य बना रहे । वे एक-दूसरे से सतत् रूप में जुड़े रहें।
(6) पाठ्यपुस्तक की भाषा तथा शैली छात्रों की आयु तथा मानसिक योग्यता के अनुसार होनी चाहिए।
(7) पुस्तक की छपाई में जो टाइप उपयोग में लाया जाए, वह बालकों की आयु के अनुसार हो; जिससे पढ़ते समय उनकी आँखों पर जोर न पड़े। इनकी छपाई भी सुन्दर तथा आकर्षक होनी चाहिए। माध्यमिक कक्षाओं की पाठ्यपुस्तक में कम से कम एक इंच का मारजिन रखा जाए जिससे छात्र मुख्य बिन्दुओं तथा बातों को लिख सकें ।
(8) पुस्तक का लेखक विषय का पूर्ण ज्ञाता हो। इसके अतिरिक्त वह व्यावसायिक प्रशिक्षण प्राप्त भी हो जिससे वह पाठ्यपुस्तक को छात्रों की आयु, योग्यता, रुचि, रुझान आदि बातों के अनुसार प्रस्तुत कर सके।
(9) पाठ्यपुस्तक का मूल्य यथोचित कम से कम ही होना चाहिये ।
(10) पाठ्यपुस्तक को शिक्षण के लक्ष्यों तथा उद्देश्यों को ध्यान में रखकर लिखा जाना चाहिये ।
(11) पाठ्यपुस्तक में मुख्य तथा कठिन बातों को सरल तथा सुबोध बनाने के लिये उदाहरणों, चित्रों, ग्राफों, मानचित्रों आदि का उपयुक्त रूप से प्रयोग किया जाना चाहिए। छोटे बालकों की पाठ्यपुस्तकों में आकर्षक चित्रों का उपयोग पर्याप्त मात्रा में किया जाना चाहिए । चित्र, ग्राफ, रेखाचित्र आदि का प्रयोग बालकों की योग्यता के अनुसार ही होना चाहिए। इनका आकार, स्पष्टता तथा शुद्धता भी छात्रों की आयु तथा योग्यता के अनुसार होनी चाहिए।
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