शिक्षण मूल्यों की व्याख्या कीजिये व अध्यापक की व्यावसायिक अभिवृद्धि में इनकी भूमिका बताइये ।
शिक्षण मूल्यों की व्याख्या कीजिये व अध्यापक की व्यावसायिक अभिवृद्धि में इनकी भूमिका बताइये ।
उत्तर— शिक्षण मूल्य– एक शिक्षक से कुछ ऐसे मूल्यों की अपेक्षा की जाती है जो उसे विद्यार्थियों में, समाज में आदर्श छवि के रूप में स्थापित कर सके, समाज व राष्ट्र के हित के लिए कुछ ऐसे ही गुणों या मूल्यों का शिक्षक में होना आवश्यक है जो स्वयं की व्यावसायिक अभिवृद्धि तो करे ही साथ ही समाज को भी योग्य व कुशल पीढ़ी प्रदान कर सके, ऐसे ही कुछ शिक्षण मूल्य निम्न हैं—
(1) अध्ययनशीलता– निरन्तर अध्ययनशील बने रहना, शिक्षक के उत्तम व आदर्श होने के लिए आवश्यक है क्योंकि निरन्तर अध्ययन करते रहने से शिक्षक को विषय की समझ गहरी व गूढ़ होती जाती है जो छात्रों के हित में होती है इससे शिक्षक में आत्मविश्वास व अंतर्दृष्टि विकसित होती है ।
(2) कुशल-वक्ता– अध्यापक के कुशल वक्ता होने से वह अपने विचार छात्रों तक प्रभावशाली ढंग से पहुँचा सकता है। भाषण कला द्वारा वह छात्रों का ध्यान भली प्रकार विषय-वस्तु पर केन्द्रित कर सकता है।
(3) कल्पनाशीलता– जो शिक्षक जितना कल्पनाशील होता है वह अपने कार्य में उतना ही सफल व प्रगतिशील होता है। कल्पनाशील शिक्षक बालक में कल्पना करने की शक्ति का विकास कर अन्वेषक, वैज्ञानिक बनने की राह बालक के लिए खोल सकता है। ऐसा कल्पनाशील शिक्षक अपन अध्यापन कार्य के उद्देश्यों की पूर्ति का मार्ग पहले ही देखने में सफल होता है। इस तरह का शिक्षक भावी जीवन का नियामक होता है।
(4) सामाजिकता– विद्यालय की गणना एक सामाजिक संस्था के रूप में होती है क्योंकि विद्यालय में समाज के भावी भाग्य निर्माता तैयार होते हैं शिक्षक समाज का एक उपयोगी सदस्य तथा मान्य मार्गदर्शक है। शिक्षक को मिलनसार, गणतंत्रवादी, सहयोगी, उपकारी होना चाहिए वह सामाजिक कार्यों में उत्साहपूर्वक भाग ले सके व समाज की सेवा करने को हमेशा तत्पर रहे, आवश्यकता पड़ने पर समाज का नेतृत्व भी कर सके, ऐसा शिक्षक ही सफल, लोकप्रिय, उपयोगी व प्रभावशाली होता है।
(5) आशावादी दृष्टिकोण– जो स्वयं आशावादी हो वह दूसरों में भी आशा का संचार करता है। अतः आशावादी शिक्षक रचनात्मक कार्यों को आरम्भ कर सकता है व बालक में भी आशावादी, रचनात्मक दृष्टिकोण का विकास कर सकता है।
(6) अभिप्रेरित करने की क्षमता– शिक्षक में छात्रों के अभिप्रेरणा स्तर को जाग्रत करने की योग्यता भी होनी चाहिए वह समय व आवश्यकतानुसार छात्रों को विभिन्न विधियों यथा- प्रशंसा, ईनाम, इत्यादि विधियों द्वारा छात्रों को अभिप्रेरित कर सफल अधिगम की ओर अग्रसरित करे ( परन्तु प्रशंसा, ईनाम इत्यादि का आवश्यकता से अधिक प्रयोग भी न करें इससे बालक में हर कार्य को करने से पहले किसी प्रतिफल की आदत विकसित होने लगती है) ।
(7) नवीन तकनीकों का ज्ञान– नयी तकनीकियों का ज्ञान होने पर शिक्षक अपने शिक्षण में इन तकनीकों जैसे— स्मार्ट बोर्ड प्रजन्टेशन, एल.सी.डी., प्रोजेक्टर, इन्टरनेट इत्यादि का प्रयोग कर, बालक की अधिकाधिक इन्द्रियों को सक्रिय करते हुए, शिक्षण को नवीनता से जोड़ते हुए शिक्षण को बालकों के मस्तिष्क में स्थायी कर सकता है।
(8) धैर्य व सहनशीलता– शिक्षक में धैर्य व सहनशीलता के गुण का होना अत्यन्त आवश्यक है क्योंकि धैर्यशील होने पर शिक्षक छात्र को विषय-वस्तु समझ न आने तक बार-बार समझायेगा परन्तु धैर्यविहीन होकर वह बिना कारण ही छात्र का अहित कर सकता है। धैर्य व सहनशील होने की स्थिति में शिक्षक प्रतिकूल परिस्थिति का सामना भी सहजता से कर सकता है। वह छात्रों में भी धैर्य व सहनशीलता के ! गुण को विकसित करने में आदर्शता का कार्य कर सकता है।
(9) निष्पक्षता– शिक्षक को सभी छात्रों को समान दृष्टि से देखना चाहिए। कभी-कभी शिक्षक मेधावी छात्रों को कक्षा में अन्य छात्रों की अपेक्षा अधिक महत्त्व देकर अन्य बालकों में हीन भावना का विकास कर देता है ऐसा करना शिक्षक के लिए अशोभनीय है। आदर्श शिक्षक मंदबुद्धि छात्रों को अधिक सहानुभूति प्रदान करता है। अतः शिक्षक का निष्पक्ष होना आवश्यक है।
(10) सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार– शिक्षक को अपने शिष्यों के प्रति प्रेम व सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार करना चाहिए । इस प्रकार के व्यवहार से वह छात्रों का विश्वास व सहयोग प्राप्त कर सकता है । कक्षा में स्थायी अनुशासन डण्डे के बल पर नहीं बल्कि प्रेम, स्नेह व सहयोग के आधार पर स्थापित किया जा सकता है।
(11) मौलिकता– शिक्षक में अपनी बात को मौलिक ढंग से रखने व मौलिक विचार देने की क्षमता होनी चाहिए ऐसा करने से शिक्षक सदैव नवीनता व आकर्षण का केन्द्र बना रहता है।
(12) असाम्प्रदायिकता और जाति निरपेक्षता– वर्तमान में साम्प्रदायिकता एक बहुत व्यापक समस्या का रूप ले कर उभरी है। जातीयता का स्तर तो और भी भयानक स्थिति में है। इसलिए शिक्षक को इन सबसे ऊपर उठकर अपने छात्रों में इन अवगुणों को पनपने नहीं देना चाहिए। उन्हें केवल देशभक्ति व उसके अवयवों के लिए हानिकारक तत्त्वों से छात्रों को अवगत कराना है।
(13) सन्तुलित व्यक्तित्व– शिक्षक यदि अपने विषय का गहन जानकार है परन्तु व्यक्तित्व प्रभावकारी व संतुलित नहीं है तो शिक्षक प्रभावोत्पादक शिक्षण नहीं कर सकता। अत: इस हेतु शिक्षक को संतुलितव्यक्तित्व का स्वामी होना भी आवश्यक है ।
(14) विनोदप्रियता– विनोदप्रिय शिक्षक का छात्रों व सहयोगियों के मध्य सदा स्वागत होता है विनोदी स्वभाव होने पर शिक्षक अपने अध्ययन को रोचक व छात्रों को अभिप्रेरित करता है।
(15) समय – पाबंद– शिक्षक अध्यापन कार्य करते हुए अपने समय पर आवश्यक रूप से नियंत्रण रखे। समय पर नियंत्रण न होने की स्थिति में शिक्षक समय के भीतर अपना पाठ समाप्त नहीं कर पाते, ऐसा होना बहुत ही दुखद व छात्रों के लिए अहितकर है। सफल शिक्षक ऐसा कभी नहीं करेगा। वह निश्चित समय में अपना शिक्षण करता है, ऐसा करने के लिए वह पूर्वयोजना बनाता है। पाठ टीकाओं का सृजन करता है। अपने इन प्रयासों द्वारा वह समय की पाबन्दी रखने में सफल होता है जो एक शिक्षक के लिए नितान्त आवश्यक है ।
(16) बाल मनोविज्ञान का ज्ञान– वर्तमान शिक्षा बालकेन्द्रित है व शिक्षक एक सहायक व पथ प्रदर्शक के रूप में होता है। अतः शिक्षक को बाल मनोविज्ञान का ज्ञान एक सफल-अधिगम संचालन हेतु आवश्यक होता है। बाल मनोविज्ञान का ज्ञान होने पर शिक्षक, बालक के मानसिक, स्तर, रुचि, अधिगम- वातावरण, आयु, अभिरुचि, अभिप्रेरणा इत्यादि तथ्यों को ध्यान में रख कर पढ़ाई हेतु वातावरण निर्माण कर शिक्षक-कार्य को सम्पन्न करता है ।
(17) व्यावसायिक दक्षता– आदर्श व उत्तम शिक्षक में व्यावसायिक दक्षता का होना बहुत ही आवश्यक है क्योंकि व्यावसायिक रूप से दक्ष होने पर वह अपने विषय को प्रभावशाली ढंग से छात्रों तक पहुँचा सकता है, प्रशिक्षण द्वारा शिक्षण में व्यावसायिक दक्षता आत्मविश्वास, विभिन्न विधियों को व्यवहार में लाने की क्षमता का प्रादुर्भाव होता है शिक्षण के विभिन्न क्षेत्रों का ज्ञान भी सहजतापूर्वक हो जाता है।
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