शिक्षण में समस्या समाधान विधि क्यों महत्त्वपूर्ण है ?

शिक्षण में समस्या समाधान विधि क्यों महत्त्वपूर्ण है ?

उत्तर— समस्या समाधान विधि के गुण/लाभ–शिक्षण में समस्या समाधान विधि को अपनाने से निम्नलिखित लाभ हैं–

(1) वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास–इस विधि से छात्रों में ‘वैज्ञानिक दृष्टिकोण’ का विकास होता है। छात्र इसमें पुस्तकीय ज्ञान पर आश्रित नहीं रहते हैं। यह विधि रटने पर बल नहीं देती है।
(2) स्थायी ज्ञान–इस विधि में छात्र को जो ज्ञान प्राप्त होता है, वह स्थायी होता है। इससे छात्रों में स्वावलम्बन, आत्मविश्वास तथा आत्मनिर्भरता आदि गुणों का विकास होता है।
(3) पथ-प्रदर्शन–इस विधि में शिक्षक और छात्रों को एकदूसरे के निकट आने का अवसर मिलता है। समस्या समाधान विधि शिक्षक के लिए पथ-प्रदर्शन करने के लिए तैयार रहती है ।
(4) अनुशासन को बढ़ावा—इस विधि में छात्रों को अनुशासन में रखा जा सकता है, क्योंकि प्रत्येक छात्र समस्या का शान्तिपूर्वक हल निकालने में ही जुटा रहता है। अतः उसके पास अनुशासन भंग करने का अवसर ही नहीं होता है ।
(5) विभिन्न गुणों का विकास होता है—इस विधि से छात्रों में सहनशीलता, उत्तरदायित्व की भावना, क्रियाशीलता, व्यावहारिकता, व्यापकता, गंभीरता, दूरदर्शिता आदि अनेक गुणों का विकास होता है।
(6) तथ्यों का संग्रह और उनको व्यवस्थित करना–इस विधि में छात्र तथ्यों को इकट्ठा करना सीखता है और फिर उनको समस्या के अनुसार व्यवस्थित करना सीखता है। यह विधि शोध कार्यों के लिए महत्त्वपूर्ण देन है।
(7) जीवन की समस्याओं के सुलझाने में सहायक–इस विधि में छात्र जीवन में आने वाली प्रत्येक समस्याओं को सुलझाने के लिए हमेशा तैयार रहता है। प्रत्येक व्यक्ति को जीवन में अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। विद्यालय में इन समस्याओं के समाधान के लिए प्रशिक्षण प्राप्त करने से छात्रों में ऐसे कौशल और अनुभव आ जाते हैं, जिससे वे जीवन की समस्याओं का समाधान करना सीखते हैं।
(8) स्वाध्याय की आदत का निर्माण–इस विधि से छात्रों में स्वाध्याय करने की आदत पड़ती है, जो आगे चलकर जीवन में लाभकारी सिद्ध होती है। इससे अध्ययन के बारे में दूसरों पर निर्भर नहीं रहना पड़ता हैं।
(9) मानसिक विकास–समस्या समाधान विधि एक मनोवैज्ञानिक विधि है। इससे छात्रों की मानसिक शक्तियों ( चिन्तन, तर्क, कल्पना) का विकास होता है तथा इस वैज्ञानिक विधि में प्रशिक्षण के अवसर मिलते हैं ।
(10) व्यावहारिकता और सहयोग की भावना–इस विधि से छात्र अपने ज्ञान का उपयोग व्यावहारिक जीवन में आसानी से कर सकता है। इस विधि में समस्या का समाधान करते समय छात्र विचार-विमर्श करने और तर्क करने में बिल्कुल नहीं झिझकता एवं दोनों में आवश्यक सामंजस्य बनता है। इसमें व्यक्तिगत और कक्षागत दोनों प्रकार का शिक्षण संभव है ।
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