गणित शिक्षण की कोई दो शिक्षण विधियों को समझाइये ।

गणित शिक्षण की कोई दो शिक्षण विधियों को समझाइये ।

उत्तर— गणित शिक्षण की दो शिक्षण विधियाँ-गणित शिक्षण की दो शिक्षण विधियों का वर्णन निम्नलिखित प्रकार हैं—

विश्लेषण विधि—विश्लेषण विधि में जटिल समस्या को सरल समस्याओं में विभक्त करते हैं । अतः इससे स्पष्ट है कि विश्लेषण विधि में किसी तथ्य का या समस्या का छोटे-छोटे टुकड़ों में विभाजन करना पड़ता है। ये टुकड़े या खण्ड इस प्रकार किये जाते हैं कि उनको मिलाने पर वही विषय अपने स्वरूप में वापस आ जाता है।
अंकगणित, बीजगणित एवं रेखागणित की समस्याओं का हल खोजने के लिए विश्लेषण विधि का प्रयोग किया जाता है अर्थात् इस विधि का प्रयोग मुख्यतः उस समय किया जाता है, जबकि—
(1) जब किसी प्रमेय को हल करना होता है ।
(2) जब रेखागणित में कोई रचना करनी होती है ।
(3) अंकगणित में किसी नवीन समस्या को हल करना होता है । इस विधि का मुख्य उद्देश्य है ‘अज्ञात से ज्ञात की ओर चलना ।’
विश्लेषण विधि की परिभाषाएँ–निम्नलिखित प्रकार हैं—
प्रो. यंग महोदय के अनुसार, “विश्लेषण वह विधि है, जिसके द्वारा विद्यार्थी समस्या का हल ज्ञात करते हैं तथा इस बात की खोज करते हैं कि किसी विशेष पद को वे भूल गये हैं। “
एस. के. मंगल के अनुसार, “विश्लेषण विधि उसको कह सकते हैं जिसमें हर किसी भी समस्या की तह तक पहुँचने और सुविधापूर्वक हल करने के दृष्टिकोण से छोटे-छोटे भागों में विभक्त करते जाते हैं और इस तरह से अज्ञात का रहस्य खोजते-खोजते ज्ञात तक पहुँचने का प्रयत्न करते हैं तथा ज्ञात करने के लिए हमें पहले क्या ज्ञात या सिद्ध कर लेना चाहिए और इस तरह खोज करते-करते जो कुछ दिया होता है उस तक पहुँच जाते हैं।”
विश्लेषण विधि के पद— विश्लेषण विधि के निम्नलिखित पद हैं—
(1) अज्ञात से ज्ञात की ओर, (2) निष्कर्ष से अनुमान की ओर । उदाहरण–एक वर्ग का क्षेत्रफल 169 वर्ग मीटर है उसके चारों ओर तार लगवाने का 1 रु. प्रति मीटर की दर से व्यय ज्ञात कीजिए।
                                                         विश्लेषण प्रक्रिया का स्वरूप
विश्लेषण विधि के गुण–विश्लेषण विधि के निम्नलिखित गुण है—
(1) यह शिक्षण की एक क्रियाशील विधि है।
(2) इसमें छात्रों को विचार करने का अवसर सही ढंग से मिलता है।
(3) यह विधि खोज करने की एक प्रभावशाली विधि है। अतः छात्र एक अन्वेषक के रूप में कार्य करता है।
(4) इस विधि में छात्र जो ज्ञान प्राप्त करता है, वह धीरे-धीरे प्राप्त करता है, परन्तु उसमें स्पष्टता होती है।
(5) इस विधि का प्रत्येक पद अपना स्वयं का अभिप्राय रखताहै।
विश्लेषण विधि के दोष–विश्लेषण विधि के निम्नलिखित दोष है—
(1) इस विधि में अध्यापक को पर्याप्त समय देना पड़ता है।
(2) यह एक कठिन विधि है, अतः नीरसता उत्पन्न करती है, क्योंकि तर्क अधिक करने पड़ते हैं।
(3) प्राथमिक स्तर पर इसका उपयोग प्रभावशाली ढंग से नहीं किया जा सकता है।
(4) इसमें सम्पूर्ण तथ्य के खण्ड-खण्ड कर दिये जाते हैं। अत: सम्पूर्ण ज्ञान ठीक प्रकार से नहीं कर पाते।
(5) प्रत्येक विषय का शिक्षण इस विधि द्वारा असंभव है।
संश्लेषण विधि–संश्लेषण विधि विश्लेषण विधि की पूर्णतया विपरीत होती है। इस विधि में हम ज्ञात से अज्ञात की ओर अग्रसर होते हैं अर्थात् खण्डों में प्राप्त ज्ञान को जब जोड़कर समझाया जाता है तो उसे संश्लेषण विधि कहते हैं। रेखागणित में प्रमेयों का हल इसी रूप में होता है। यंग के अनुसार, सूखी घास से तिनका निकाला जाता है परन्तु विश्लेषण में स्वयं तिनका घास से बाहर निकलना चाहता है।
समस्या → विच्छेदन→ विश्लेषण→ छोटे-छोटे भागों एवं तथ्यों को मिलाकर रखना।
संश्लेषण का कार्य विश्लेषण के बाद ही करना चाहिए। सर्वप्रथम दी गयी समस्या का मौखिक रूप से विश्लेषण करना चाहिए। इसके बाद प्रत्येक पदों का संश्लेषण करना चाहिए। इस प्रकार तुम देखते हो कि दोनों विधियाँ एक-दूसरे की पूरक एवं एक-दूसरे पर आश्रित हैं।
संश्लेषण विधि का सिद्धान्त—
(1) विश्लेषण के बाद प्रारम्भ–अतः इस विधि में छोटे-छोटे भागों को मिलाकर रखा जाता है।
(2) ज्ञात से अज्ञात की ओर–तथ्य की जाँच खोजें, तथ्यों को प्राप्त कर छात्र समस्या की जाँचकर नये सूत्र या नियम निकालते हैं।
संश्लेषण विधि के गुण–संश्लेषण विधि के निम्नलिखित गुण हैं—
(1) यह एक मनोवैज्ञानिक विधि है ।
(2) मन्द बुद्धि छात्रों के लिए यह विधि उपयोगी है, परन्तु प्रतिभाशाली छात्रों के लिए अनुपयोगी है ।
(3) यह शिक्षण की एक सरल विधि है तथा प्रमाण संक्षिप्त और सुन्दर ढंग से दिये जाते हैं ।
(4) इसमें विश्लेषण विधि की अपेक्षा कम समय लगता है।
(5) रेखागणित में साध्यों के हल के लिए विशेष उपयोगी है।
संश्लेषण विधि के दोष–संश्लेषण विधि के निम्नलिखित दोष है—
(1) संश्लेषण विधि में छात्र स्वयं अपने प्रयास से ज्ञान प्राप्त नहीं करते, इस कारण ज्ञान मस्तिष्क में स्थायी नहीं रहता।
(2) प्रो. यंग के अनुसार, “संश्लेषण विधि में सूखी घास से एक तिनका निकाला या ढूँढ़ा जाता है, परन्तु विश्लेषण विधि में स्वयं तिनका निकलना चाहता है। “
(3) प्रत्येक छात्र के लिए यह कठिन है कि वह एक बड़ी समस्या के छोटे तत्त्वों को एक कर दे ।
(4) इस विधि में छात्रों की विचार, तर्क और निर्णय शक्ति का विकास पूर्णरूपेण नहीं हो पाता।
(5) यह विधि सिद्ध तो करती है, परन्तु स्पष्ट नहीं कर पाती।
विश्लेषण-संश्लेषण का प्रयोग–प्रत्येक समस्या संश्लेषणात्मक रूप में पायी जाती है। पहले विश्लेषण विधि से समझा जाता है-
(1) सरल ब्याज के प्रश्नों में, समय, निकालकर मूलधन ज्ञान करवाना
(2) दरवाजे और खिड़कियों के क्षेत्रफल को चारों दीवारों के क्षेत्रफल में से घटाकर रंग अथवा ईंटों का खर्चा ज्ञात करना।
(3) बीजगणित की समस्याओं में उदाहरण लेकर उसका हल करना।
(4) ज्यामिति में त्रिभुज, चतुर्भुज आदि की रचनाओं में इस विधि का प्रयोग किया जाता है।
उदाहरण—रामू ने 33 मीटर लम्बी तथा 27 मीटर चौड़ी एक आयताकार भूमि खरीदी। इस भूमि के चारों ओर कोनों पर खम्भे गाड़कर वह तार के तीन चक्करों द्वारा बाड़ लगाना चाहता है। तो बताओ रामू को कितने लम्बे तार की आवश्यकता होगी ?
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