श्रवण कौशल क्या है ? उन तकनीकों का उल्लेख कीजिए जिनका प्रयोग आप अपने विद्यार्थियों में श्रवण कौशल का विकास करने के लिए करेंगे ।

श्रवण कौशल क्या है ? उन तकनीकों का उल्लेख कीजिए जिनका प्रयोग आप अपने विद्यार्थियों में श्रवण कौशल का विकास करने के लिए करेंगे । 

उत्तर— श्रवण कौशल का अर्थ–श्रवण कौशल का सम्बन्ध कान से है। भाषा सीखने का यह प्रथम चरण है। छात्र कहानी, कविता, भाषण, वार्तालाप आदि का ज्ञान सुनकर ही प्राप्त करता है तथा उसका अर्थ भी ग्रहण करता है। वास्तव में श्रवण कौशल भाषा सीखने का प्रमुख एवं महत्त्वपूर्ण अंग है। इसके आधार पर ही अन्य कौशलों का विकास किया जा सकता है। श्रवण कौशल के पश्चात् ही पढ़ने-लिखने का कौशल विकसित किया जा सकता है। किसी व्यक्ति के द्वारा प्रयुक्त वाक्यों, शब्दों, ध्वनि एवं विचारों को कानों के द्वारा सुनकर उनका अर्थ ग्रहण करने की क्रिया श्रवण कही जाती है। दूसरे शब्दों में, सुनने के अभ्यास को श्रवण कौशल कहा जाता है।
श्रवण कौशल शिक्षण की विधियाँ (Methods of Teaching Listening Skill)—
श्रवण कौशल भाषा शिक्षण का महत्त्वपूर्ण सोपान है। श्रवण कौशल का शिक्षण किस प्रकार किया जाना चाहिए, यह एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण विषय हैं। छात्रों में श्रवण कौशल का विकास करने के लिए शिक्षक को निम्नलिखित विधियों, सामग्री एवं उपकरणों की सहायता लेनी चाहिए—
(1) प्रश्नोत्तर– प्रश्नोत्तर प्रणाली एक महत्त्वपूर्ण विधि है। शिक्षक को पढ़ाई गई सामग्री पर कक्षा में प्रश्न पूछने चाहिए । कक्षा में प्रश्न पूछने से यह पता चल जायेगा कि छात्र सुनकर विषय वस्तु को ग्रहण कर रहे हैं या नहीं। प्रश्न कक्षा के सभी छात्रों से पूछे जायें । प्रश्न पूछने से छात्र सावधान हो जाते हैं तथा शिक्षक की बात को ध्यानपूर्वक सुनते हैं।
(2) कहानी कहना तथा सुनना– बालकों को रोचक कथाएँ, कहानियाँ जैसे—परियों की, राजा-रानी की तथा पशु-पक्षियों आदि की कहानी सुनानी चाहिए। इसके पश्चात् उसी कहानी को बालकों से सुननी चाहिए। इससे यह पता लग जायेगा कि बालकों ने कहानी सुनी या नहीं।
(3) श्रुत लेख– श्रुत लेखन में शिक्षक किसी गद्यांश आदि को बोलता जाता है तथा छात्र सुनकर लिखते हैं। जो छात्र ध्यानपूर्वक सुनेगा वह सम्पूर्ण सामग्री को शुद्ध लिख लेगा तथा कोई अंश नहीं छूटेगा। जो छात्र ध्यानपूर्वक नहीं सुनेगा उसके बीच-बीच में कुछ शब्द या वाक्यांश छूट जायेंगे।
(4) सस्वर वाचन– शिक्षक द्वारा किये गये आदर्श वाचन से छात्र उच्चारण, गति, विराम चिह्नों आदि का ज्ञान प्राप्त करते हैं। शिक्षक को चाहिए कि वह छात्रों से अनुकरण वाचन कराये। इससे यह पता चल सकेगा कि छात्र ध्यान से पाठ्यवस्तु को सुन रहे हैं या नहीं, अतः छात्रों द्वारा सस्वर वाचन कराने से उनमें श्रवण कौशल का विकास किया जा सकता है।
(5) भाषण– भाषण द्वारा बालक में मौखिक भाषा का विकास किया जाता है। परन्तु इसके द्वारा श्रवण कौशल का भी विकास किया जा सकता है। भाषण द्वारा बालक की श्रवणेन्द्रियों का विकास किया जा सकता है। भाषण देने से पूर्व शिक्षक बालकों को यह बता दे कि वे उसके भाषण को ध्यानपूर्वक सुने और तत्पश्चात् उनसे भाषण पर प्रश्न पूछे जायेंगे। शिक्षक छात्रों से प्रश्न पूछकर यह पता लगा सकता है कि उन्होंने भाषण को ध्यानपूर्वक सुना या नहीं।
(6) वाद-विवाद– श्रवण कौशल का प्रशिक्षण देने के लिए वाद-विवाद भी एक महत्त्वपूर्ण क्रिया हैं। वाद-विवाद में छात्र को हर बात ध्यानपूर्वक सुननी होती है क्योंकि बिना सुने वे दूसरे पक्ष की बात का उत्तर न दे सकेंगे और न अपने तर्क को प्रस्तुत कर सकते हैं। शिक्षक को सभी छात्रों को वाद-विवाद के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए कि वे वाद-विवाद के तर्कों को ध्यानपूर्वक सुन रहे थे या नहीं।
(7) दृश्य-श्रव्य सहायक सामग्री– श्रवण कौशल को विकसित करने तथा उच्चारण सम्बन्धी दोषों को दूर करने के लिए ग्रामोफोन, टेपरिकार्डर, रेडियो, चलचित्र, दूरदर्शन तथा वीडियो आदि की सहायता ली जा सकती है। इन साधनों की सहायता से कहानी, कविता, महापुरुषों, के भाषण, नाटक तथा विभिन्न शैक्षिक व मनोरंजक कार्यक्रम सुने जा सकते हैं।
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