कक्षा कक्ष सम्प्रेषण की प्रक्रिया को स्पष्ट कीजिए।

कक्षा कक्ष सम्प्रेषण की प्रक्रिया को स्पष्ट कीजिए। 

उत्तर— कक्षा कक्ष में सम्प्रेषण– शिक्षण व्यवहार एक सामाजिक अंतःक्रिया है। शिक्षक और छात्रों के पारस्परिक अंतःक्रिया को शिक्षण कहते हैं। शिक्षण को प्रभावी बनाने के लिए सम्प्रेषण होना आवश्यक है । प्रशिक्षार्थियों को विभिन्न नियमों, सिद्धान्तों, पद्धतियों तथा निर्देशन आदि के बारे में बताया जाता है । इसके लिए पाठ्यवस्तु के विश्लेषण के साथ वह सम्प्रेषण प्रक्रिया का भी उपयोग करता है।
कक्षा-कक्ष आधारित शिक्षा का परिवेश धीरे-धीरे वेब आधारित, सी. डी. आधारित तथा स्वचालित गति से सीखने की प्रक्रिया में बदल जाएगा। नेट पर अभी से तरह-तरह के प्रशिक्षण पाठ्यक्रम उपलब्ध होने लगे हैं। अनेक संस्थान अपने प्रशिक्षण तथा विश्वविद्यालय शिक्षण की सामग्री नेट पर देने लगे हैं। इनकी यह सामग्री अनुदेशक द्वारा दी जाने वाली सामग्री का या तो पूरक होती है या फिर विकल्प होती है।
सम्प्रेषण तथा संग्राहक के बीच सम्प्रेषण प्रक्रिया के कारण
निम्नलिखित सम्बन्ध होते हैं—
(i) उन्मुखीकरण, (ii) तद्नुभूति का विकास, (iii) प्रतिपुष्टि, (iv) भौतिक निर्भरता, (v) विश्वसनीयता, (vi) अन्तः क्रिया।
कक्षा में शिक्षक तथा छात्र छात्र एवं छात्र के मध्य शाब्दिक एवं अशाब्दिक सम्प्रेषण होता है। कक्षा में शिक्षक व्यवहार का अध्ययन करने के लिए फ्लैण्डर ने अंतःक्रिया विश्लेषण प्रविधि का वर्णन किया ।
इस प्रविधि के द्वारा कक्षा के शाब्दिक सम्प्रेषण को गुणात्मक व परिमाणात्मक रूप से प्रस्तुत किया। यह प्रविधि शिक्षक प्रभाव का मापन करती है। इस प्रविधि के अन्तर्गत इसमें कक्षा व्यवहार को दस भागों में विभाजित किया जाता है। शिक्षक द्वारा कक्षा में स्वोपक्रम तथा अनुक्रिया के प्रभाव का निरीक्षण किया जाता है तथा इसमें शाब्दिक अंतःक्रिया पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
फ्लैण्डर्स ने इस प्रविधि में कक्षा में होने वाले सभी शाब्दिक व्यवहारों को तीन भागों में वर्गीकृत करने का प्रयास किया है–
(a) शिक्षक कथन, (b) छात्र कथन तथा (c) मौन।
शिक्षक कथन के अन्तर्गत उसके प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष व्यवहारों का अध्ययन किया जाता है।
(1) अप्रत्यक्ष शिक्षक व्यवहार—
(i) छात्रों की अनुभूति को स्वीकार करना।
(ii) प्रशंसा करना व छात्रों को प्रोत्साहित करना।
(iii) छात्रों के विचारों को स्वीकार करना ।
(iv) प्रश्न पूछना।
(2) प्रत्यक्ष शिक्षक व्यवहार—
(i) व्याख्यान देना ।
(ii) निर्देश देना ।
(iii) आलोचना करना तथा अधिकार ।
(3) छात्र व्यवहार—
(i) छात्र कथन अनुक्रिया ।
(ii) छात्र कथन स्वोपक्रम ।
(iii) मौन या विभ्रांति ।
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