सकारात्मकता का विकास कैसे होता है ?
सकारात्मकता का विकास कैसे होता है ?
अथवा
सकारात्मकता का विकास किस प्रकार किया जाता है ?
उत्तर— सकारात्मकता का विकास– सकारात्मकता से बढ़कर कोई पुण्य नहीं और नकारात्मकता से बढ़कर कोई पाप नहीं, सकारात्मकता से बढ़कर कोई धर्म नहीं और नकारात्मकता से बढ़कर कोई अधर्म नहीं। मानसिक शान्ति और तनाव मुक्ति की दवा है— सकारात्मक सोच । सकारात्मक सोच का अभाव ही मनुष्य को निष्फलता का मूल कारण है। अतः इसका विकास आवश्यक है। सकारात्मकता के विकास के लिए विशेष रूप से निम्नलिखित उपाय करने चाहिए ।
(1) ध्यान – सकारात्मकता के विकास के लिए किसी कार्य स्थिति तथा किसी वस्तु पर ध्यान केन्द्रित करना आवश्यक है। सकारात्मकता ही व्यक्ति को नकारात्मक विचारों से दूर करती है। सामान्यतः व्यक्ति समाधान की अपेक्षा समस्याओं पर अधिक ध्यान केन्द्रित करता है। जिसके कारण व्यक्ति में नकारात्मक पक्षों की वृद्धि तथा सकारात्मक पक्षों की हानि होती है। नकारात्मक पक्षों की वृद्धि से व्यक्ति में तनाव उत्पन्न हो जाता है। अत: इससे बचने के लिए व्यक्ति को सकारात्मक पक्षों पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए अर्थात् समस्याओं की अपेक्षा समाधान पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए।
(2) पठन – सकारात्मकता के विकास के लिए व्यक्ति को उत्तम साहित्य तथा सकारात्मक लेखों को पढ़ना चाहिए। पठन, व्यक्ति के जीवन का एक महत्त्वपूर्ण घटक है जो कि व्यक्ति को अभिप्रेरित कर प्रोत्साहित करता है। पठन एक प्रकार से मस्तिष्क एवं विचारों का पोषण है जो व्यक्ति को सकारात्मक बनाता है तथा प्रसन्नता देता है।
(3) श्रवण – सकारात्मकता का एक महत्त्वपूर्ण घटक श्रवण भी है। हमारे मनोवैज्ञानिकों ने भी सुनने के महत्त्व को स्वीकार किया है और कहा है कि प्रतिदिन 30 से 60 मिनट तक सुनना व्यक्ति के जीवन को सकारात्मक बनाने में विशेष रूप से उपयोगी होता है।
(4) लक्ष्य – अधिकतर व्यक्तियों का अपने जीवन में किसी प्रकार का कोई लक्ष्य नहीं होता है। उन्हें नहीं पता होता कि उन्हें क्या करना है, कहाँ जाना है आदि। ऐसे लोगों का जीवन बिना नाविक के समान होता है जिसकी निश्चित दिशा नहीं होती है। ऐसे लोगों के जीवन में सकारात्मकता का कोई स्थान नहीं होता है अतः सकारात्मकता के विकास के लिए व्यक्ति को अपने जीवन में लक्ष्य निर्धारित करने चाहिए। इन लक्ष्यों का निर्धारण सदैव वास्तविकताओं के परिप्रेक्ष्य में ही करना चाहिए तथा लक्ष्यों के लिए निश्चित समय भी निर्धारित होना चाहिए। इससे व्यक्ति के जीवन को एक सकारात्मक दिशा भी प्राप्त होती है जो कि सकारात्मकता की वृद्धि में विशेष रूप से सहायक होती है।
(5) आदत – हमारे जीवन में सकारात्मक पक्षों के विकास में आदतें भी महत्त्वपूर्ण होती है। इसीलिए कहा जाता है कि स्वयं के भीतर सदैव अच्छी आदतें ही विकसित करनी चाहिए क्योंकि तभी हम अपने जीवन में सकारात्मक पक्ष को मजबूत कर सकते हैं।
(6) धैर्य – हमारे जीवन में धैर्य का भी अत्यधिक महत्त्व है धैर्य व्यक्ति के जीवन ‘स्वप्नों तथा लक्ष्यों की ओर केन्द्रित कर हमारे जीवन की सकारात्मकता में अद्भुत वृद्धि करता है। अधिकतम व्यक्ति प्रत्येक कार्य को बगैर सोचे-समझे शीघ्रता में करते हैं एवं उसके परिणामों का आंकलन नहीं करते हैं, फलस्वरूप उनके काम बिगड़ जाते हैं। अतः व्यक्ति को अपने प्रत्येक कार्य धैयपूर्वक विचार-विमर्श करके, पूर्ण नियोजन के साथ करने चाहिए ताकि उसके जीवन में सकारात्मक पक्षों में वृद्धि हो सके।
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