सर्वोत्तम लेखन को समझाते हुए, इसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
सर्वोत्तम लेखन को समझाते हुए, इसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर— आज का छात्राध्यापक ही कल का भावी शिक्षक है। जब शिक्षक द्वारा छात्रों के समक्ष सर्वोत्तम लेखन को प्रदर्शित किया जायेगा तो सामान्य रूप से छात्रों में भी सर्वोत्तम लेखन कला का विकास होगा। सर्वोत्तम लेखन शैली के विकास के लिए निम्नलिखित उपायों को अपनाना चाहिये—
(1) अक्षरों की बनावट पर ध्यान–लेखन शैली के लिये अक्षरों की बनावट प्रामाणिक रूप में होनी चाहिये । यदि किसी अक्षर को विकृत स्वरूप में बनाया जाता है तो वह दो प्रकार की हानियाँ पहुँचाता है। प्रथम वह अर्थ का अनर्थ कर सकता है। पढ़ने वाला उसको गलत समझ सकता है। द्वितीय वह लेखन कला को त्रुटिपूर्ण बना सकता है। अत: छात्राध्यापकों द्वारा प्रत्येक अक्षर को उसके मूल स्वरूप में बनाना चाहिये ।
(2) भाषायी चिह्नों का उपयोग—लेखन शैली के लिये विराम चिह्नों का सार्थक उपयोग करना चाहिये क्योंकि जब लेखन शैली में विराम चिह्न का उपयोग होता है तो वाचन के समय भी उस स्थान पर रुका जाता है। जब प्रश्नवाचक चिह्न का उपयोग होता है तो उसको अलग रूप में पढ़ा जाता है। भाषायी चिह्नों के उचित एवं सार्थक उपयोग से लेखक जो भी तथ्य कहना चाहता है पठन करने वाला व्यक्ति वही समझता है । इस प्रकार की शैली से लेखन सर्वोत्तम बनता है।
(3) अंकों एवं चिह्नों की बनावट—छात्राध्यापक को अपने शैक्षिक जीवन में किसी भी विषय को पढ़ाने का अवसर मिल सकता है। इस तथ्य को ध्यान में रखकर छात्राध्यापकों की गणित एवं विज्ञान लेखन पर भी ध्यान देना चाहिये । भूगोल में मानचित्र निर्माण की कला पर तथा उसमें विविध स्थितियों के प्रदर्शन पर भी ध्यान देना चाहिये। अंकों की बनावट एवं गणित चिह्नों का प्रदर्शन भी लेखन में उचित प्रकार करना चाहिये।
(4) शब्दगत दूरी पर विशेष ध्यान—लेखन शैली में शब्दगत दूरी का भी विशेष ध्यान रखना चाहिये क्योंकि शब्दगत उचित दूरी से ही लेखन प्रभावी एवं उपयोगी रूप में सम्पन्न होता है ।
(5) सार्थक शब्दों का प्रयोग—लेखन शैली में सार्थक शब्दों का प्रयोग करना चाहिये जिससे लेखक के भाव तथा विचार स्पष्ट हो सकें। लेखन में निरर्थक शब्दों का प्रयोग करके उसको अनावश्यक रूप से नहीं बढ़ाना चाहिये।
(6) साहित्यिक शब्दों का उपयोग—लेखन शैली को प्रभावशाली तथा उपयोगी बनाने के लिये साहित्यिक शब्दों का उपयोग करना चाहिये । साहित्यिक शब्दों के उपयोग से वाक्यों में प्रभावशीलता उत्पन्न होती है जो लेखक की शैली एवं योग्यता को प्रकट करते हैं।
(7) रुचिपूर्ण प्रकरणों पर लेखन—लेखन शैली को उच्चकोटि का बनाने के लिये रुचिपूर्ण लेखन की व्यवस्था होनी चाहिये। दूसरे शब्दों में, छात्राध्यापकों का जिस विषय में लेखन कार्य करने की इच्छा हो उस विषय में ही उसको लेखन कार्य करने के अवसर दिये जायें; जैसे— एक विज्ञान विषय का छात्राध्यापक है। वह विज्ञान विषय से सम्बन्धित प्रकरणों के लेखन में रुचि रखेगा। सर्वप्रथम उसको विज्ञान एवं गणित विषय से सम्बन्धित प्रकरणों पर लेखन कार्य दिया जाय ।
(8) सरल एवं बोधगम्य भाषा—लेखन शैली को प्रभावी बनाने के लिये सरल एवं बोधगम्य भाषा का प्रयोग करना चाहिये । छात्राध्यापकों द्वारा जो भी टिप्पणी लेखन किया जाता उसकी भाषा का स्तर एक सामान्य मानक के अनुरूप होना चाहिये । मानक के अनुरूप न होने पर वह प्रस्तुतीकरण में समूह के किसी भी छात्राध्यापक की समझ में नहीं आयेगा। अतः भाषा का सरल एवं बोधगम्य होना अति आवश्यक है ।
सर्वोत्तम लेखन की विशेषताएँ–सर्वोत्तम लेखन की मुख्य विशेषताएँ निम्न प्रकार से हैं—
(1) सारगर्भित लेखन—सर्वोत्तम लेखन की प्रक्रिया के लिये छात्राध्यापकों को अपने प्रकरण के सम्बन्ध में जो भी टिप्पणी तैयार करनी है वह पूर्णत: सारगर्भित होनी चाहिये जैसे—किसी छात्राध्यापक को अर्थ के सम्बन्ध में टिप्पणी तैयार करनी है तो सर्वप्रथम प्रकरण के मूल भाव तथा मूल अर्थ को लिखना चाहिये । इसी प्रकार की स्थिति प्रकरण की सूचना सम्बन्धी तथा प्रकरण ज्ञान सम्बन्धी लेखन में भी होनी चाहिये । इससे एक ओर लेखन का स्वरूप सर्वोत्तम रूप में होता है तो दूसरी ओर संलग्नता के स्तर में व्यापक वृद्धि होती है।
(2) सहसम्बन्धात्मक लेखन—कोई भी प्रकरण प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से अपने विषय के अतिरिक्त अन्य विषयों से भी सम्बन्धित होता है। अतः छात्राध्यापकों को जो भी प्रकरण विषय से सम्बन्धित है उनका अन्य विषयों के सम्बन्ध में भी टिप्पणी लेखन में वर्णन करना चाहिये; जैसे—गणितीय संक्रियाओं का उपयोग भौतिक विज्ञान एवं रसायन विज्ञान के संख्यात्मक प्रश्नों को हल करने में होता है। इसी प्रकार इतिहास एवं भूगोल के प्रकरणों का उपयोग सामाजिक अध्ययन विषय में होता है। परिणामस्वरूप लेखन सर्वोत्तम रूप में सम्पन्न होता है तथा छात्राध्यापकों के संलग्नता के स्तर में वृद्धि होती है ।
(3) उपयोगी लेखन—टिप्पणी लेखन में उपयोगिता का समावेश होना चाहिये क्योंकि प्रत्येक प्रकरण में उपयोगिता छिपी होती है जिसको छात्राध्यापकों द्वारा निखारना होता है; जैसे—महात्मा गाँधी के जीवन से सम्बन्धित लेख छात्राध्यापकों की किसी जोड़ी को लेखन के लिये मिलता है तो लेखन में उसके सारतत्त्व, अर्थ, भाव तथा ज्ञान सम्बन्धी व्यवस्था को अपनाते हुए प्रमुख रूप से महात्मा गाँधी के कार्य एवं व्यवहार से जो भी शिक्षा मिलती है या उनका कार्य व्यवहार आज किस प्रकार उपयोगी है, इसकी व्याख्या अवश्य करनी चाहिये ।
(4) विश्लेषणात्मक लेखन—टिप्पणी लेखन में विश्लेषणात्मक प्रक्रिया का उपयोग भी आवश्यकता के अनुसार करना चाहिये । विश्लेषणात्मक लेखन की व्यवस्था का उपयोग महत्त्वपूर्ण तथा उपयोगी तथ्यों के लिये करना चाहिये, जैसे—ब्याज तथा प्रतिशत लेखन के समय छात्राध्यापकों को प्रतिशत तथा ब्याज के सूत्रों को प्रस्तुत करने में विश्लेषण का उपयोग करना चाहिये। सूत्रों के प्रत्येक संकेताक्षर का विश्लेषण व्यापक रूप से करना चाहिये। इस प्रकार प्रत्येक प्रकरण के महत्त्वपूर्ण तथ्य सरलता से समझे जा सकते हैं।
(5) क्रमबद्ध लेखन—सर्वोत्तम टिप्पणी लेखन में क्रमबद्धता पर छात्राध्यापकों द्वारा ध्यान दिया जाना चाहिये; जैसे—छात्राध्यापकों की एक जोड़ी को भिन्न प्रकरण का लेखन कार्य मिलता है। सर्वप्रथम छात्र की भिन्न का अर्थ प्रस्तुत करना चाहिये। इसके उपरान्त चित्रात्मक प्रदर्शन करते हुए यह बताना चाहिये कि भिन्न के द्वारा किसी पूर्ण वस्तु के विविध भागों को प्रस्तुत किया जाता है।
(6) संश्लेषणात्मक लेखन—छात्राध्यापकों को यह ध्यानपूर्वक देखना चाहिये कि लेखन का स्वरूप अनावश्यक रूप से व्यापक न हो जाय । इसलिये टिप्पणी लेखन में विस्तृत विषयों तथा तथ्यों का संश्लेषण करते हुए उनको संक्षिप्त कर देना चाहिये ।
(7) सरल एवं बोधगम्य भाषा—छात्राध्यापकों द्वारा टिप्पणी लेखन में प्रमुख रूप से सरल एवं बोधगम्य भाषा का प्रयोग करना चाहिए, उसमें प्रत्येक शब्द एवं वाक्य का चयन स्तरानुकूल एवं प्रकरण के अनुरूप होना चाहिये जिससे बड़े समूह के समक्ष प्रस्तुत करने में प्रत्येक छात्राध्यापक की समझ में सरलता से आ सके। सरल एवं बोधगम्य लेखन के द्वारा ही समूह परिचर्चा का स्वरूप प्रभावी रूप में सम्पन्न होता है।
(8) परिचर्चा की दृष्टि से लेखन—जब लेखन को छात्राध्यापकों के बड़े समूह के समक्ष प्रस्तुत करना हो तो उसमें उन सम्भावित प्रश्नों के उत्तर पहले से सम्मिलित कर देने चाहिये जो कि परिचर्चा के समय पूछे जा सकते हैं; जैसे—बिहारी के दोहे से सम्बन्धित प्रकरण के प्रस्तुतीकरण में टिप्पणी तैयार करते समय बिहारी के दोहों की विशेषता, रीतिकाल के कवि के रूप में बिहारी की विशेषता एवं भक्तिकाल के कवि के रूप में बिहारी की विशेषता आदि से सम्बन्धित वर्णन अवश्य होना चाहिये ।
(9) व्याकरण का आवश्यक उपयोग—टिप्पणी लेखन में छात्राध्यापकों को व्याकरण तथा विराम चिह्नों का उपयोग उचित रूप में करना चाहिये क्योंकि विराम चिह्नों का त्रुटिपूर्ण उपयोग अर्थ का अनर्थ कर देता है। इसी प्रकार अशुद्ध शब्दों का उपयोग भी लेखन को भ्रमपूर्ण बना देता है।
(10) भाषा शैली एवं शब्द शक्तियाँ—लेखन के समय छात्राध्यापकों को यह ध्यान रखना चाहिये कि आवश्यकता के अनुरूप लक्षणा, व्यंजना एवं अभिधा शब्द शक्ति का उपयोग करते हुए प्रवाहपूर्ण एवं वर्णनात्मक शैली का उपयोग किया जाय । प्रकरण की स्थिति एवं लेख की आवश्यकता को ध्यान में रखकर भाषा-शैली का प्रयोग किया जाय । साहित्यिक शब्द, साहित्यिक भाषा तथा बोधगम्यता से लेखन सर्वोत्तम बनता है।
(11) आत्मविश्वास का समावेश—छात्राध्यापकों द्वारा टिप्पणी लेखन में आत्मविश्वास का प्रदर्शन करना चाहिये। जिस प्रकरण या विषयवस्तु के सम्बन्ध में उनको लेखन कार्य करना है उसके सम्बन्ध में भाषा एवं वाक्यों का प्रयोग पूर्णतः आत्मविश्वास युक्त होना चाहिये; जैसे—महात्मा गाँधी अहिंसा एवं सत्य के पुजारी थे। यह कथन आत्मविश्वास से परिपूर्ण है। महात्मा गाँधी सामान्य रूप से सत्य एवं अहिंसा में विश्वास करते थे। इस कथन में पूर्ण आत्मविश्वास नहीं है। अत: जिस विषय के सम्बन्ध में भी लेखन किया जाय उसमें सभी वाक्य एवं शब्द प्रभावी होने चाहिये ।
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