छात्राध्यापकों के विभिन्न क्षेत्रों से सम्बन्धित सार तत्त्वों की व्याख्या कीजिए।

छात्राध्यापकों के विभिन्न क्षेत्रों से सम्बन्धित सार तत्त्वों की व्याख्या कीजिए। 

उत्तर— छात्राध्यापकों के प्रमुख विषय सामान्य रूप से अनेक होते हैं। यहाँ पर कुछ ऐसे विषयों का वर्णन किया जा रहा है जो कि छात्राध्यापकों के लिये सामान्य रूप से अनिवार्य समझे जाते हैं। इन विषयों का सामान्य ज्ञान प्रत्येक छात्राध्यापक को होना चाहिये क्योंकि इन विषयों का सम्बन्ध अन्य विषयों से प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप में होता है। इन विषयों से सम्बन्धित सार तत्त्व लेखन की प्रक्रिया का वर्णन इस प्रकार है—

(1) गणित सम्बन्धित सार तत्त्व लेखन—गणित विषय में भी अनेक महत्त्वपूर्ण तथा लोकप्रिय तथ्य हैं जो कि गणित शिक्षक के लिये अनिवार्य माने जाते हैं। गणित की प्रमुख संक्रियाओं का उपयोग विज्ञान के संख्यात्मक प्रश्नों को हल करने में होता है। इस प्रकार गणित के सार तत्त्व लेखन में उन सार तत्त्वों का चयन किया जाता है जो कि सामान्य रूप से अन्य विषयों से सहसम्बन्ध रखते हैं। वर्गमूल लॉग तालिका का प्रयोग तथा गणित संक्रियाओं से सम्बन्धित सार तत्त्वों को इस श्रेणी में रखा जा सकता है। गणित के विशुद्ध सारभूत तत्त्वों में घातांक, प्रतिशत, लाभ-हानि, ब्याज, चक्रवृद्धि ब्याज एवं रुपये पैसे से सम्बन्धित सार तत्त्वों को शामिल किया जा सकता है। अतः छात्राध्यापक की चयनित विषयवस्तु में गणित के दोनों प्रकार को सार तत्त्वों को शामिल किया जाना चाहिये जिससे उसका पठन करके छात्राध्यापक उन विषयों के सम्बन्ध में सारभूत लेखन करना सीख सकें ।
(2) विज्ञान सम्बन्धित सार तत्त्व लेखन—छात्राध्यापकों का सम्बन्ध विभिन्न प्रकार के विज्ञान सम्बन्धी विषयों से होता है। ये विज्ञान सम्बन्धी विषय विशेष रूप से सम्बन्धित होने पर विशुद्ध विज्ञान के विषय बन जाते हैं। जब इनमें से कुछ ऐसे विषयों को प्रस्तुत किया जाता है जो सामान्य जीवन से सम्बन्धित होते हैं तो उनका सम्बन्ध सभी छात्राध्यापकों से होता है; जैसे— विविध संक्रामक रोग तथा बचाव, शरीर के अंग एवं उनके कार्य, शारीरिक स्वच्छता तथा परिवेशीय स्वच्छता का मानव जीवन से सम्बन्ध आदि सार तत्त्वों को विषयवस्तु में शामिल किया जा सकता है तथा छात्राध्यापकों से इन विषयों का सार तत्त्व लेखन कार्य कराया जा सकता है। ये सार तत्त्व सभी छात्राध्यापकों के लिये उपयोगी सिद्ध होते हैं तथा कुछ सार तत्त्व ऐसे होते हैं जो कि विशुद्ध रूप से विज्ञान विषय से सम्बन्धित होते हैं; जैसे— आर्किमिडीज का सिद्धान्त, न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण नियम आदि। इनका सम्बन्ध विज्ञान वर्ग के विद्यार्थी या छात्राध्यापकों से होता है। अतः विज्ञान के विविध रूपों से सम्बन्धित सार तत्त्वों के पठन के अवसर तथा लेखन के अवसर छात्राध्यापकों को प्राप्त होने चाहिये ।
(3) भूगोल सम्बन्धी सार तत्त्व लेखन—भूगोल सम्बन्धी सार तत्त्व लेखन में भी दो प्रकार के प्रकरण शामिल किये जा सकते हैं। प्रथम प्रकरण वे होते हैं जो कि भौगोलिक दशाओं तथा जलवायु का प्रभाव अन्य क्षेत्रों पर प्रदर्शित करते हैं; जैसे—किसी स्थान का तापक्रम 50° होता है उस स्थान पर अफ्रीका के सैनिक सफलता के साथ युद्ध नहीं कर सकते क्योंकि ये सैनिक ऐसे मौसम में रहने के आदी नहीं होते। दूसरे शब्दों में इन सार तत्त्वों को इस प्रकार प्रस्तुत किया जाता है कि भूगोल के प्रकरण का सम्बन्ध अन्य विषयों से हो । कुछ प्रकरण ऐसे होते हैं जो विशुद्ध भूगोल से सम्बन्धित होते हैं; जैसे— चट्टान, पर्वत, ज्वालामुखी, भूकम्प नदी एवं ग्लोब आदि से सम्बन्धित गतिविधियाँ | विषयवस्तु चयन करने वाले को दोनों ही प्रकार के सार तत्त्वों को विषयवस्तु में स्थान देना चाहिये। जिससे भूगोल सम्बन्धी सार तत्त्व सभी छात्राध्यापकों के लिये उपयोगी सिद्ध हो सकें ।
(4) इतिहास सम्बन्धी सार तत्त्व लेखन—इतिहास सम्बन्धी सार तत्त्वों के लेखन में भी दोनों प्रकार की गतिविधियों को शामिल किया जाना चाहिये । प्रथम वे सार तत्त्व होते हैं जो कि विभिन्न विषयों से सम्बन्धित होते हैं; जैसे—विविध गणितज्ञों तथा वैज्ञानिकों की खोज सम्बन्धी तत्त्व। एडीसन द्वारा बिजली की खोज किस प्रकार की उसकी विविध गतिविधियों को इतिहास के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है। प्रमुख गणितज्ञों द्वारा विविध नियमों तथा सिद्धान्तों की खोज सम्बन्धी इतिहास को प्रस्तुत किया जा सकता है । इस प्रकार के ऐतिहासिक सार तत्त्व प्रत्येक विषय से सम्बन्धित हो सकते हैं। ऐसे सार तत्त्वों को विषयवस्तु में स्थान प्रदान करना चाहिए।
(5) भाषा एवं साहित्य से सम्बन्धित लेखन—भाषा तथा साहित्य सम्बन्धित सार तत्त्वों का उपयोग भी दो प्रकार से किया जा सकता है। प्रथम स्थिति में भाषा के सार तत्त्वों की लेखन प्रक्रिया में वैज्ञानिकों के जीवन चरित्र तथा उनके महत्त्वपूर्ण कार्यों को शामिल किया जा सकता है। ठीक इसी क्रम में विविध गणितज्ञों, इतिहासकारों एवं सामाजिक व्यवस्थाओं में सुधार करने वालो से सम्बन्धित लेख एवं अनुच्छेदों को शामिल किया जा सकता है। ये सभी प्रकार के सार तत्त्व पूर्णत: रुचिपूर्ण होंगे। इससे एक ओर छात्राध्यापकों को अपने विषय से सम्बन्धित ज्ञान की प्राप्ति होगी तो दूसरी ओर भाषायी नियम एवं लेखन का भी ज्ञान होगा। द्वितीय स्थिति में भाषा साहित्य के विद्वानों एवं व्याकरण सम्बन्धी सार तत्त्वों को चयनित विषयवस्तु में शामिल किया जा सकता है। इससे छात्राध्यापकों को भाषा साहित्य तथा व्याकरण सम्बन्धी नियमों का ज्ञान प्राप्त होगा। इसमें विविध निबन्धकारों, कहानीकारों, नाटककारों एवं व्याकरणाचार्यों के जीवन चरित्रों को भी सम्मिलित किया जा सकता है। अतः स्पष्ट है कि छात्राध्यापकों के विषयों को ध्यान में रखकर सार तत्त्वों का चयन करना चाहिये। किसी भी विषय के सारतत्त्व लेखन की प्रक्रिया में शामिल होकर छात्राध्यापक को यह अनुभव नहीं होना चाहिये कि यह सारतत्त्व उसके लिये उपयोगी नहीं हैं। इसलिये प्रत्येक सारतत्त्व में सहसम्बन्ध का गुण भी होना चाहिये ।
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