‘ सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी का नाटक एवं कला में प्रयोग’ पर एक निबन्ध लिखिये ।
‘ सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी का नाटक एवं कला में प्रयोग’ पर एक निबन्ध लिखिये ।
उत्तर— सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी, –सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी तीन शब्दों के सुमेल से बना है— सूचना सम्प्रेषण एवं तकनीकी । इसलिए इसका सम्पूर्ण अर्थ, समझने के लिए, इन तीनों शब्दों की व्याख्या तथा समझ आवश्यक हैं।
(1) सूचना–साधारण शब्दों में, सूचना का अर्थ एक विचार या संदेश है, जो एक व्यक्ति दूसरों तक पहुँचाना चाहता है। आँकड़े तथा सूचना, एक दूसरे से सम्बन्धित होते हैं । आँकड़ा वह शब्द है जो किसी कारोबार की क्रियाओं या व्यक्ति या किसी भी सजीव, निर्जीव वस्तु के किसी गुण का वर्णन करने के लिए प्रयोग किया जाता है। आँकड़े कोई भी तथ्य, अवलोकन, धारणा, नाम, समय, तिथियों, मूल्य, पुस्तक, अंक, प्रतिशत, ग्रेड आदि हो सकते हैं। आँकड़ों का संक्षिप्त रूप ही सूचना कहलाता है।
(2) सम्प्रेषण–सम्प्रेषण एक अंतरवैयक्तिक प्रक्रिया है, जिसमें मौखिक प्रतीकों (शब्दों, वाक्यों आदि) तथा अमौखिक प्रतीकों (शारीरिक मुद्राओं, चेहरे की अभिव्यक्ति आदि) के दो या दो से अधिक व्यक्तियों द्वारा विभाजित किया जा सकता है व समझा जा सकता है । यह दो पक्षीय प्रक्रिया है जो दूसरों के साथ विचारों, भावों, विश्वासों व सूचनाओं को साझा करने में सहायता करती है तथा प्रयोग में लाई जाती है। सूचना के स्रोत तथा प्राप्त कर्ता के मध्य आपसी सम्बन्ध, सूचना की प्रगति, समझ तथा प्रयोग में वृद्धि करती है, जिसके परिणामस्वरूप ज्ञान भण्डार के निर्माण में सहायता प्राप्त होती है।
(3) तकनीकी–साधारण शब्दों में, वैज्ञानिक ज्ञान के प्रायोगात्मक रूप को तकनीकी कहा जाता है। यह उत्पादन के निर्माण की कला है। यद्यपि (तकनीकी शब्दों का प्रयोग) साधारणतः मशीनों वं यंत्रों आदि के लिए किया जाता है, परन्तु यह शब्द किसी भी प्रायोगिक कार्य में प्रयुक्त होने वाले वैज्ञानिक ढंगों की ओर संकेत करता है।
इस प्रकार, सूचना तथा सम्प्रेषण तकनीकी तीन शब्दों-सूचना, सम्प्रेषण व तकनीकी को मिलकर बना है, जिसका प्रमुख उद्देश्य तकनीकी का प्रयोग करके, विचारों, भावनाओं व सूचना का सम्प्रेषण करना है। यदि हम सूचना व सम्प्रेषण के चयनित क्रियाओं में कुशलता प्रवीणता व प्रभावशीलता लाना चाहते हैं तो हमें सूचना व सम्प्रेषण तकनीकी की सहायता लेनी होगी।
परिभाषा–सूचना व सम्प्रेषण तकनीकी, उपकरणों (हार्डवेयर) का एक ऐसा संयोग है जो इलेक्ट्रोनिक माध्यमों का प्रयोग करते हुए, सूचना की रचना, सुधार, पुनः प्राप्ति, भण्डारण एवं सम्प्रेषण में सहायता करता है। इस प्रकार, सूचना तकनीकी में कम्प्यूटर एवं सम्प्रेषण तकनीकी को शामिल किया जाता है।
सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी के विभिन्न पक्ष हैं- हार्डवेयर, सॉफ्टवेयर, सम्बद्धता, दूर-संचार विज्ञान व मानव-कम्प्यूटर इंटरफेस।
यूनेस्को के अनुसार, “वैज्ञानिक, तकनीकी एवं इंजीनियरिंग अनुशासन तथा प्रबंधकीय तकनीकें जो सूचना को सम्भालने, संशोधित व प्रयोग के लिए इस्तेमाल की जाती हैं, कम्प्यूटर व उनका मानव व मशीनों के साथ अंतरक्रिया तथा सम्बन्धित सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक मुद्दों का आपसी मेल ही सूचना सम्प्रेषण तकनीकी है।”
स्मिथ व कॉमबैल के अनुसार, “यह तकनीकी, उत्पादों तथा तकनीकों का एक ऐसा समूह है जो सूचना प्रबंध को नए इलेक्ट्रानिक आयाम प्रदान करता है। “
इस प्रकार, सूचना सम्प्रेषण तकनीकी, सूचना का निर्माण, एकत्रता संसाधित भण्डारण, प्रस्तुतीकरण व प्रसार के साथ तथा उन सभी प्रक्रियाओं व उपकरणों के साथ जुड़ी हुई है जो यह सभी कुछ संपन्न करते हैं। यह कम्प्यूटर के हार्डवेयर, सॉफ्टवेयर तथा दूर – संचार की आधुनिक संरचना पर दृढ़तापूर्वक निर्भर है। सर्वप्रथम इसे सूचना तकनीकी का नाम दिया गया था। इंटरनैट तथा ब्रॉडबैंड सम्पर्कों की उत्पत्ति के कारण, इसे अब एक नया नाम, सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी प्रदान किया गया है।
सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी का प्रयोग, आरंभ से ही कला शिक्षा प्रक्रिया में किया जाता रहा है परन्तु 1980 के लगभग बड़े स्तर पर इसका प्रयोग विद्यालयों में भी होना आरम्भ हो गया। आधुनिक सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी विशेषत: इंटरनेट व मल्टीमिडिया ने हमारे व्यक्तिगत स्तरों के साथ-साथ हमारे सामाजिक व व्यावसायिक वातावरण पर अधिकार प्राप्त कर लिया है। यह हमारे सोचने के तरीके, बातचीत करने के ढंग तथा संसार के प्रति दृष्टिकोण को परिवर्तित कर रहे हैं।
सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी मुख्यतः दो ढंगों से शिक्षा व प्रशिक्षण में परिवर्तन ला सकती है—
(i) किसी सम्प्रत्यय के बारे में सूचना का सम्पूर्ण प्रस्तुतीकरण, शिक्षार्थी के बौद्धिक क्षमता को परिवर्तित कर सकती है।
(ii) सूचना का व्यापक स्तर पर सरल उपागम, विद्यार्थी तथा विद्यार्थी शिक्षकों के मध्य संबंधों को परिवर्तित कर सकता है।
कला शिक्षा के क्षेत्र में, सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी के प्रयोग के, निम्नलिखित कारण है—
(1) एक नए समाज को एक कौशलों की आवश्यकता होती है–सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी ने हमारे जीवन के प्रत्येक पक्ष जैसे कि कारोबार, शिक्षा, अवकाश समय व स्वास्थ्य आदि को बहुत प्रभावित किया है तथा आधुनिक जीवन का एक अनिवार्य अंग बन चुकी है। इसलिए, नयी पीढ़ी को इसके प्रयोग में निपुणता प्राप्त करनी आवश्यक है। आधुनिक समाज को इसकी अधिक आवश्यकता है। बच्चों को विद्यालयी जीवन के दौरान, कम्प्यूटर व नेटवर्कों के बारे में जानकारी तथा उचित प्रयोग के बारे में पता लग जाना चाहिए, क्योंकि यह समय की आवश्यकता है।
(2) उत्पादन में वृद्धि के लिए–सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी के प्रयोग के साथ काम-काज में वृद्धि होती है। प्रबंधकीय ढाँचे में निपुणता लाने से कार्य करने की शक्ति में वृद्धि होती है। इसके साथ शिक्षक व विद्यार्थियों के समय व शक्ति का उचित प्रयोग होता है।
(3) अधिगम में गुणवत्ता लाने के लिए–इसके प्रयोग द्वारा प्रभावशाली अधिगम वातावरण का निर्माण किया जा सकता है, जिसके तहत द्वारा विद्यार्थियों के जीवन से सम्बन्धित अधिगम कौशलों व आदतों में सुधार होता है।
इस प्रकार, सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी, उपलब्ध शिक्षण के अभ्यास व स्रोतों में बड़े स्तर पर परिवर्तन ला सकती है। यह कार्य की सम्पूर्णता के लिए एक योग्य साधन है।
नाटक एवं कला शिक्षा में सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी का उपयोग–तकनीकी विकास के कारण, समूचे विश्व में काफी तीव्रता से परिवर्तन हो रहे हैं। इसका प्रयोग प्रत्येक क्षेत्र में सफलतापूर्वक हो रहा है। आधुनिक मानव के जीवन का प्रत्येक पक्ष इससे अछूता हुआ है। शिक्षा का क्षेत्र इससे वंचित नहीं है। आज; शिक्षा प्रक्रिया का प्रत्येक पक्ष, तकनीकी से प्रभावित हो रहा है। इसने शिक्षा के क्षेत्र में एक क्रांति ला दी है।
आज हम एक ऐसे ज्ञान आधारित विश्वव्यापी संसार में रह रहे हैं जहाँ, ज्ञान व्यक्ति की एक बहुत बड़ी शक्ति, आर्थिकता व योग्यता है तथा एक राष्ट्र का निर्माता है। चारों ओर ज्ञान का विस्फोट हो रहा है नए अनुसंधान, आविष्कार तथा तकनीकी का विकास, ज्ञान – भण्डार में वृद्धि एवं विकास कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में, हमें नवीन तकनीकों की आवश्यकता है जो हमें इस तीव्रता से विकास कर रहे ज्ञान तक पहुँचा सकें तथा हम इसका उचित ढंग से प्रयोग कर सकें। केवल ज्ञान प्राप्त करना ही काफी नहीं, हमारा ज्ञान प्राप्ति प्रक्रिया पर संपूर्ण अधिकार व पहुँच का होना भी आवश्यक है। यह सब-कुछ सूचना तकनीकी तथा सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी द्वारा ही सम्भव है।
वर्तमान में नाटक एवं कला शिक्षा में सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी का प्रयोग काफी पैमाने पर किया जा रहा है। सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी के सही प्रयोग से नाटक तथा कला शिक्षा की विषय-वस्तु और तकनीकी दोनों में बुनियादी बदलाव आए हैं, जिससे इसके विद्यार्थियों में दक्षता में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है, जो कि छात्रों को प्रेरित करने में काफी सहायक सिद्ध हुई है।
सूचना एवं सम्प्रेषण तकनीकी की अन्य तकनीकें–ब्लॉग्स आदि से विद्यार्थी विभिन्न समूहों का निर्माण कर ड्रामा एवं कला शिक्षण से सम्बन्धित विभिन्न परिचर्चाएँ करते हुए विचारों का आदान-प्रदान करते हैं एवं इसके साथ-साथ विशेषज्ञों के सुझाव भी प्राप्त कर सकते हैं, जो उनकी कलात्मक क्षमता में वृद्धि करता है । रेडियो और टेलीविजन हालांकि अब इतने महत्त्वपूर्ण नहीं रह गए हैं, फिर भी भारत जैसे विकासशील देशों में इसकी महत्ता को इस क्षेत्र में नकारा नहीं जा सकता है। इसके अतिरिक्त टेलीविजन पर प्रसारित होने वाले विभिन्न ड्रामों से विद्यार्थियों को अभिनय के दौरान प्रदर्शित किए जाने वाले विभिन्न हाव-भावों का ज्ञान प्राप्त होता है। कला शिक्षा के अन्तर्गत विभिन्न कलाओं के प्रदर्शनों के आयोजन का प्रसारण भी टीवी द्वारा किया जाता है, जो कला के विभिन्न रूपों के सम्बन्ध में ज्ञान प्रदान करता है।
कम्प्यूटर ग्राफिक्स–कम्प्यूटर के द्वारा बनाए जाने वाले ग्राफिक्स कम्प्यूटर ग्राफिक्स कहलाते हैं। इसे इस प्रकार से भी कहा जा सकता है कि कम्प्यूटर द्वारा इमेज डाटा को जब रिप्रजेंट और मैनिपुलेट किया जाए तो उसे ग्राफिक्स कहते हैं । एनिमेशन, मूवीज, गेम्स इंडस्ट्रीज आदि में इसका खूब प्रभाव पड़ा है। कम्प्यूटर द्वारा जब डाटा का पिक्टोरियल रिप्रेजेंटेशन और मैनिपुलेशन किया जाता है तो उसे हम ग्राफिक्स कह सकते हैं।
एनिमेशन भी कम्प्यूटर ग्राफिक्स के अन्तर्गत ही आता है। एनिमेशन वास्तव में कम्प्यूटर की सहायता से मूविंग इमेज (चलती-फिरती पिक्चर ) बनाने की कला है ।
सिनेमा–प्रारम्भ में फिल्मों का उपयोग दूसरे माध्यमों की कलाकृतियों को किसी स्थायी माध्यम से परिवर्तित करने का प्रयास था। फिर ऐतिहासिक आयाम और संतों के जीवन – चित्र सम्बन्धी फिल्मों का निर्माण शुरू हुआ। आधुनिक काल में सिनेमा अभिव्यक्ति का ही नहीं अन्वेषण का भी माध्यम है।
सिनेमा में जहाँ एक ओर विभिन्न पेंटिंग्स, पीछे मूर्तियों का प्रयोग सजावट के लिए किया जाता है वहीं संवादों को प्रभावी बनाने के लिए विभिन्न वाद्ययंत्रों को भी प्रयोग पर्दे के पीछे किया जाता है। साथ ही सिनेमा को मनोरंजनात्मक बनाने के लिए विभिन्न गीतों एवं नृत्यों का भी प्रयोग फिल्मकार द्वारा किया जाता है। जहाँ नाटक को विभिन्न गीतों एवं नृत्यों का भी प्रयोग फिल्मकार द्वारा किया जाता है और दोबारा तैयार करके सिर्फ एक बार ही उसका प्रस्तुतीकरण किया जाता है और दोबारा प्रस्तुतीकरण के लिए पुनः सारी तैयारी करनी पड़ती है। वहीं सिनेमा को एक बार तैयार करने के पश्चात् उसे बार-बार उसी रूप में सुगमता से प्रस्तुत किया जा सकता है। आज सिनेमा किसी भी तथ्य को प्रस्तुत करने का प्रभावी माध्यम बन गया है।
कार्टून–कार्टून, चित्रकार, चित्र बनाते समय विचार को संवेदना के साथ संप्रेषित करने के लिए कार्टून चित्रों के हाव-भाव एवं गति को दर्शाते हैं, पात्रों की विशेष पहचान को प्रमुखता से दिखाते हैं जिससे पाठक एवं दर्शक को विषय-वस्तु पहचानने में मदद मिलती है ।
कार्टून चित्रों का प्रयोग कालांतर में कई तरीके से किया जाता रहा है। चित्रकथाओं, बाल फिल्मों में एवं पिछले कुछ दशकों से तो व्यावसायिक रूप में अपने उत्पाद को बाजार में बेचने के लिए विज्ञापनों को त्रिआयामी रूप में एवं गतिशील दिखाते हुए एनीमेशन फिल्में बनने लगी हैं और समाज ने उन्हें पसंद भी किया है कई चित्र कथाओं पर एनिमेशन फिल्म बनाई गई। यहाँ तक कि धार्मिक-कथाओं (रामायण, महाभारत, वीर हनुमान, बाल गणेश, छोटा भीम) आदि को भी एनिमेशन फिल्म के रूप में बनाया गया जिसमें चित्र आकृति को कार्टून शैली में ही दिखाया गया और आम दर्शक ने बहुत पसंद किया आमतौर पर बच्चों के लिए तो दूरदर्शन पर कार्टून फिल्में प्रचलित हुई हैं, जैसे-टॉम एंड जैरी, ऑसवोल्ड, आते-जाते, जंगल बुक, डॉरीमॉन, निंज्जा हथौड़ी, फाइटिंग निमो, आइस एज आवॅर दी हेज, लिटिल स्टुअर्ट, गॉर फिल्ड आदि। इनमें अधिकांश विदेशी फिल्में हैं जिनकी भाषा अंग्रेजी है जिन्हें भारत देश में दिखाने के लिए हिन्दी भाषा में रूपान्तरित किया गया ।
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