निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये—

निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये— 

(i) कागज शिल्प
(ii) कठपुतली
उत्तर— (i) कागज शिल्प–कागज शिल्प से आशय कागज के माध्यम से शिल्पाकृति बनाना है। कागज शिल्प के द्वारा बालक सहज ढंग से आकृति निर्माण कर, सीखने की ओर अभिप्रेरित होते हैं। कागज शिल्प में मुख्यत: कागज काटना, चिपकाना तथा उन पर पेंटिंग कर आकर्षक स्वरूप प्रदान करना शामिल है। इसके लिए आवश्यक सामग्री- कागज पदार्थ; जैसेपत्रिका, पुरानी अखबार, साधारण कागज, साधारण अबरी पेपर, रंग-बिरंगे साधारण पेपर, क्रेप पेपर, फ्लोरे सेट पेपर इत्यादि हो सकते हैं।
कागज शिल्प का महत्त्व–कागज शिल्प का प्रयोग शिक्षा को रुचिकर बनाने में विशेष महत्त्व रखता है। इसके माध्यम से बालक में हस्त कुशलता एवं ज्ञान इंद्रियों के समन्वय रूप में कार्य करने में दक्षता की वृद्धि होती है। कागज साधारण रूप से बालकों को सुगमता से सुलभ हो जाते हैं इसलिए वे इस शिल्प को बार-बार अभ्यास कर कुशल शिल्पकार बन जाते हैं।
कागज शिल्प से परिचित हो जाने पर छात्र एवं छात्राएँ विद्यालय एवं घर को सजाने एवं संवारने में उत्साहपूर्वक प्रतिभागिता का निर्वाह करते हैं। विद्यालय के डिस्प्ले बोर्ड, चार्ट, पोस्टर, कैलेंडर इत्यादि लगाकर विद्यालय की सजावट कर सकते हैं। राष्ट्रीय पर्वों व अन्य तीज-त्योहारों पर अपने घर, विद्यालय एवं सामुदायिक भवन पर, बेल बूटे कागज के फूल गुलाब, चमेली एवं कमल इत्यादि शिल्पाकृति लगाकर सजावट कर सकते हैं।
कागज काटकर बनी आकृति–सर्वप्रथम कागज के धरातल पर पेंसिल के माध्यम से इच्छित आकृति बनाकर किनारों की ओर से काटना चाहिए, कागज काटते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि कैंची स्वच्छतापूर्वक चलाई जाए, जिसके द्वारा इच्छित आकृति ही निकलकर आए । रंगों के द्वारा कागज शिल्प अधिक स्वच्छ तथा आकर्षक नजर आने लगता है।
कागज मोड़ना और काटकर शिल्पाकृति बनाना–कागज मोड़कर काटकर शिल्पाकृति बनाने के लिए विभिन्न रंगीन कागजों का प्रयोग किया जाता है। इसके लिए सबसे पहले आयाताकार लम्बे कागज को बेलनाकार में मोड़ेंगे। उसके पश्चात् कागज के आधे से अधिक भाग को पत्ते के आकार में काटेंगे व धीरे-धीरे घुमाते हुए बाहर की ओर उभारेंगे । यदि उसे इसी प्रकार रखा जाए तो पेड़ की आकृति प्राप्त होगी और यदि दबा दिया जाए तब फूल बन जाएगा। इसी प्रकार सीढ़ी, चिनार का वृक्ष, बड़ा गुलाब इत्यादि का सृजन किया जा सकता हैं।
(ii) कठपुतली–कठपुतली नृत्य कला में सबसे अधिक प्राचीन है। शायद जब नाटक का प्रारम्भ हुआ था उस समय से ही कठपुतली नृत्य व्यवहार में प्रचलित था । कठपुतली कला न केवल भारत की ही कला है अपितु विदेशों में भी विभिन्न प्रकार की कठपुतलियों का प्रदर्शन किया जाता रहा और वर्तमान में भी किया जा रहा है। कनाडा, कोरिया, ताशकंद, जर्मन, इण्डोनेशिया आदि देशों में कठपुतलियों के नृत्य करवाये जाते हैं।
कठपुतलियों के निर्माण की विधि–कठपुतलियों जैसा कि शब्द से मालूम होता है कि ये काठ की लकड़ी की बनी हुई मानव आकृति की पुतलियाँ हैं जिन्हें पात्र के अनुसार विभिन्न प्रकार की वेशभूषाओं से सजाया जाता है। राजस्थान में आज भी कठपुतलियों के खेलों को निम्न स्तर में गिना जाता है। ये कलाकर कठपुतलियाँ बनाते हैं तथा उनके खेल दिखाते है आर्थिक दृष्टि से यह पिछड़े हुए हैं लेकिन अपनी परम्पराओं को रिझा रहे हैं। कठपुतली नृत्य में कलाकार सूत के धागे से इनको नचाता है और इसी आधार पर नाट्य शास्त्र में सूत्रधार का प्रयोग किया जाता है।
कठपुतलियों के प्रकार—
(1) दस्ताना कठपुतली–उँगलियों एवं हाथ से संचालित दस्ताना कठपुतली से विभिन्न प्रकार के खेल एवं नाटक किये जाते हैं। इसके लिए एक तीन तरफ से बन्द छोटा-सा मंच बनाया जाता है। आगे से बैठे हुए आदमी एवं हाथ के बराबर पर्दा लगा दिया जाता है और वहाँ बैठकर इन्हें हाथ में पहनकर अभिनय कराया जाता है।
(2) रूमाल कठपुतली–रूमाल को एक विशेष प्रकार से बल द्वारा गठन लगाकर या तह करके बनायी जाती है और इन्हें भी हाथ से संचालित किया जा सकता है। इनका प्रचलन कम होता है।
(3) छड़ी कठपुतली–यह दस्ताना कठपुतली के अनुसार ही है। यह कठपुतली इसमें हाथ की जगह छड़ी से काम लिया जाता है। यह कपड़े की बनी होती है। इसके साथ-साथ कुट्टी (कागज की लुगदी) का प्रयोग चेहरे बनाने के लिए किया जाता है। जगह-जगह रंग भी लगे होते हैं।
कठपुतली कला का महत्त्व–राजस्थान में कठपुतली कला का बड़ा महत्त्व है। कठपुतली के माध्यम से कठपुतली कलाकार केवल मनोरंजन ही नहीं करते बल्कि वे इसके माध्यम से लोक कथाओं को प्रकट करते है। पौराणिक कथाओं के, जैसे— रामायण, महाभारत, बाबा रामदेव, तेजाजी आदि की कथाओं का चित्रण करते है। कठपुतली के माध्यम से प्राचीन समय की लोक कथायें तथा वेशभूषा का भी ज्ञान होता है।
कठपुतली के माध्यम से बालकों को उचित हाव-भाव एवं अभिनय करने की कला सिखाई जाती है। कठपुतली के खेलों एवं नाटिकाओं के अभ्यास एवं प्रदर्शन से बालकों की मौखिक अभिव्यक्ति का विकास किया जा सकता है। इसके माध्यम से हकलाना, शरमाना, तुतलाना आदि दोषों को किया जा सकता है। इससे छात्रों को अच्छा आचरण, सामाजिक गुण एवं अच्छी आदतों के बारे में सफलतापूर्वक एवं प्रभावशाली ढंग से समझाया जा सकता है।
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