आधुनिकीकरण में शिक्षा के योगदान पर विस्तार से लिखिए।

आधुनिकीकरण में शिक्षा के योगदान पर विस्तार से लिखिए। 

उत्तर— आधुनिकीकरण में शिक्षा का योगदान– आधुनिकीकरण में शिक्षा के योगदान को निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर व्यक्त कर सकते हैं–

(1) संस्कृति की सुरक्षा, विकास व शोधन–आधुनिकता का यह अर्थ नहीं है कि हम अपनी प्राचीन संस्कृति को पूरी तरह छोड़ दें। प्राचीन संस्कृति हमारे समाज की आत्मा है। उसकी सुरक्षा व विकास बहुत आवश्यक है। परन्तु आधुनिकीकरण के लिए यह भी आवश्यक है कि प्राचीन संस्कृति की अनुपयोगी बातों को छोड़कर उसमें कुछ नवीन जोड़कर उसका शोधन कर लें। शिक्षा ही यह कार्य कर सकती है ।
(2) प्रशिक्षित तथा कुशल नागरिक तैयार करना– आधुनिकीकरण के लिए यह आवश्यक है कि हमारे पास विभिन्न क्षेत्रों में कार्यकुशल तथा दक्ष नागरिक हों। शिक्षा ही इस प्रकार के योग्य व कुशल नागरिकों को तैयार करने का कार्य करती है।
(3) शिक्षा आधुनिकीकरण में आने वाली बाधाओं को दूर करती है–भारतीय समाज में अनेक ऐसी बाधाएँ हैं जैसे जातीयता, प्रान्तीयता, साम्प्रदायिकता, निरक्षरता, रूढ़िवादिता, अंधविश्वास तथा गरीबी आदि । भारतीय लोग पुराने तरीकों को छोड़कर नये तरीकों को अपनाने में डरते हैं व संकुचित होने के कारण राष्ट्र हित की बात सोच नहीं पाते। शिक्षा के माध्यम से गरीबी व अज्ञानता को दूर किया जा सकता है।
(4) तार्किक चिन्तन व वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास– आधुनिकीकरण के लिए यह आवश्यक है कि व्यक्ति में तर्कपूर्ण ढंग से चिन्तन करने की योग्यता हो तथा उसका दृष्टिकोण वैज्ञानिक हो । शिक्षा ही व्यक्ति में इन योग्यताओं का विकास करती है, जिससे वह तर्क के आधार पर उचित व अनुचित में विवेक कर सके तथा प्राचीन तथा व्यर्थ मान्यताओं का खण्डन करके नवीन विचारों को अपना सके।
(5) रूढ़ियों व अन्धविश्वासों को दूर करना–शिक्षा व्यक्ति को पुरानी रूढ़ियों तथा अन्धविश्वासों के दायरे से निकालती है। उन्हें गली सड़ी पुरानी परम्पराओं को छोड़ कर नवीन विचारों को ग्रहण करने के लिए प्रेरित करती है, जिससे समाज में आधुनिकीकरण में सहायता मिलती है ।
(6) राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना का विकास करना–आधुनिकता में जातीयता, प्रान्तीयता, साम्प्रदायिकता तथा संकुचित राष्ट्रीयता बाधक है। आपसी सहयोग, भाईचारा व सद्भावना से युक्त समाज में ही लोग अपनी क्षमताओं, कुशलताओं का उपयोग, नया सोचने व करने में कर सकते हैं । अतः शिक्षा का उद्देश्य राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना का विकास होना चाहिए ।
(7) परम्पराओं के विकल्प प्रस्तुत करती है–व्यक्ति अपनी प्राचीन परम्पराओं को इसलिए भी नहीं छोड़ना चाहता, क्योंकि उनका कोई विकल्प उसके पास नहीं होता। शिक्षा उसके समक्ष परम्परा के नये विकल्प प्रस्तुत करती है तथा उसे इन विकल्पों को अपनाने के लाभों से भी अवगत कराती है जिससे आधुनिकीकरण में मदद मिलती है।
(8) ज्ञान में वृद्धि करना–आज विश्व में लोग ज्ञान के पीछे भाग रहे हैं। इसलिए आज शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति को ज्ञान-विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में सम्बन्ध स्थापित करके नवीनतम जानकारी प्राप्त करनी चाहिए, जिसके आधार पर वह पुरानी सोच को छोड़कर नवीन दिशा में अग्रसर हो सके ।
(9) अच्छे मूल्यों का विकास करना–शिक्षा व्यक्ति को प्राचीन एवं नवीन दोनों प्रकार के मूल्यों की जानकारी प्रदान कर इन दोनों के बीच समन्वय बनाए रखने के लिए प्रेरित करती है। यह उसे बताती है कि अत्यधिक भौतिकता से मूल्यों में गिरावट आती है। अतः हमें तकनीकी ज्ञान व नैतिक मूल्यों के बीच समन्वय बनाए रखना होगा ।
(10) शिक्षा दृष्टिकोण को व्यापक बनाती है–शिक्षा व्यक्ति के दृष्टिकोण को व्यापक बनाती है, जिससे वे प्राचीन रूढ़ियों, अंधविश्वासों तथा पूर्वाग्रहों को छोड़कर नवीन एवं उपयोगी विचारों व मूल्यों को सीख सकें ।
(11) शिक्षा सक्रिय बनाती है–निष्क्रियता आधुनिकीकरण के मार्ग पर रुकावट है। शिक्षा मानव की सक्रियता को बढ़ाती है और गतिशील मस्तिष्क का निर्माण करती है ।
(12) नवीनतम जानकारी प्रदान करना–शिक्षा व्यक्ति को ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में जो भी नया हो रहा है, उन सबकी जानकारी प्रदान करती है जिससे समाज को आधुनिक बनाने में सहायता मिलती है।
(13) प्रजातांत्रिक एवं धर्म निरपेक्ष दृष्टिकोण का विकास– शिक्षा व्यक्ति में प्रजातांत्रिक मूल्यों व धर्म निरपेक्ष दृष्टिकोण का विकास करती है। उसमें धार्मिक सहिष्णुता उत्पन्न होती है।
(14) प्राचीनतम व आधुनिकता में समन्वय स्थापित करती है — जो पुराना है, सब बुरा व जो नया है, सब अच्छा है, यह सोचना गलत है, बल्कि परम्परा व आधुनिकता दोनों में कुछ अच्छा है तो कुछ बुरा । आधुनिकीकरण के लिए आवश्यक माना जाता है कि दोनों में समन्वय हो ।
(15) नेतृत्व के गुणों का विकास–आधुनिकीकरण दृष्टि से शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति में नेतृतव के गुणों का विकास करना होना चाहिए। प्रत्येक बच्चे में उसकी क्षमताओं के अनुसार बहुत कुछ करने की इच्छा होती है, लेकिन व्यक्ति इन क्षमताओं को नहीं पहचानता । लेकिन कुशल नेतृत्व मिलने पर उसे इसका बोध होता है। इसलिए नेतृत्व के गुणों का विकास अध्यापक द्वारा अपने बच्चों में पैदा करना चाहिए ।
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