आप कक्षा-कक्ष में पठन-कौशल का विकास किस प्रकार करेंगे ?

आप कक्षा-कक्ष में पठन-कौशल का विकास किस प्रकार करेंगे ? 

                              अथवा
पठन-कौशल के विकास की कौन-कौनसी विधियाँ हैं ?
उत्तर— पठन-कौशल के विकास की विधियाँ-हम कक्षाकक्ष में पठन-कौशल के विकास के लिए निम्न विधियाँ काम में लेंगे?
(1) वर्णबोध विधि– इस विधि के अनुसार सबसे पहले बालकों को वर्णमाला के वर्णों का ज्ञान कराया जाता है। पहले स्वरों का बाद में व्यंजनों का ज्ञान कराया जाता है। जब बालक वर्गों का भली-भाँति ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं तो उन्हें शब्द बनाने सिखाये जाते हैं। उदाहरण के लिए क, म, ल कमल, न, ट, ख, ट= नटखट आदि। इस विधि में वर्णों का क्रम-बद्ध ज्ञान होता है। मात्राओं का पूर्ण, शुद्ध उच्चारण तथा वर्णों को मिलाकर शब्द पढ़ने का अभ्यास होता है।
(2) देखो और कहो विधि– यह शब्द विधि भी कहलाती है। इस विधि में शब्द से सम्बन्धित वस्तु या चित्र दिखाकर पहले शब्द का ज्ञान कराया जाता है। जैसे-आम का चित्र दिखाकर बालक से पूछा जाता है कि यह क्या है ? बालक चित्र को देखकर तथा उससे साहचर्य स्थापित कर शब्द को बोलने का अभ्यास कर लेते हैं। इस प्रकार बालक वाचन कला में निपुण हो जाते हैं ।
(3) ध्वनि साम्य विधि– इस विधि में समान ध्वनि में उच्चारित शब्दों को एक साथ सिखाया जाता है। जैसे-राम, काम, साम, दाम, नाम, जाम, गर्म, नर्म, कर्म, धर्म, चर्म आदि । इस विधि में सभी वर्गों का सिखाना मुश्किल होता है।
(4) अनुकरण विधि– भाषा सीखने की अनुकरण विधि बड़ी महत्त्वपूर्ण है। अध्यापक एक- एक वाक्य, शब्द तथा वर्ण का उच्चारण करता है। बालक उसका अनुकरण करते हुए शब्द की ध्वनि का उच्चारण करते हैं। इस विधि में छात्र शब्द ध्वनि का उच्चारण एवं वाचन सीखते हैं । वास्तव में यह विधि हिन्दी भाषा के लिए इतनी उपयोगी नहीं है। जितनी अंग्रेजी भाषा सीखने के लिए उपयोगी है।
(5) कहानी विधि– वाचन शिक्षण की कहानी विधि एक महत्त्वपूर्ण विधि है। बालक कहानी में रुचि लेते हैं । इस विधि में वाक्यों को इस प्रकार सजाते हैं कि एक कहानी बन जाये। छोटे-छोटे वाक्यों की एक कहानी चार्ट व चित्रों के माध्यम से बच्चों के सामने प्रस्तुत की जाती है। शिक्षक कहानी के वाक्यों को श्यामपट्ट पर लिखता है। शिक्षक उन्हें पढ़ाता फिर छात्र इसका वाचन करते हैं। इस प्रकार वाक्य के विश्लेषण द्वारा शब्दों व वर्णों का ज्ञान होता जाता है। इस प्रकार बालक वाचन कला में निपुण हो जाते हैं।
(6) वाक्य विधि– यह एक मनोवैज्ञानिक विधि है। इस विधि में पहले बच्चों के सम्मुख वाक्य प्रस्तुत किया जाता है। बालकों को पहले वाक्य का अभ्यास कराया जाता है फिर शब्द तथा बाद में वर्ण का । इस विधि में बालक स्वाभाविक क्रम में पढ़ना सीखता है। अतः इस विधि में पढ़ना सिखाने के लिए वाक्य शिक्षण विधि को ही आधार बनाना चाहिए ।
(7) साहचर्य/सम्पर्क विधि– इस विधि का प्रतिपादन मेरिया मान्टेसरी ने किया था। बालकों के परिचित चित्र तथा बोलने वाली वस्तुओं के चित्र एक कमरे में टांग दिये जाते हैं। इन चित्रों में शब्द व वर्ण भी लिखे होते हैं। वैसे ही शब्द व कार्ड कमरे में रखे होते हैं। सभी कार्डों को एक साथ मिला देते हैं। बालकों से कहा जाता है कि जो कार्ड जिस चित्र या वस्तु से सम्बन्ध रखते हैं उन्हें निकाल कर उनके सामने पुनः रख दें। धीरे-धीरे चित्र, कार्ड एवं उच्चारण में साहचर्य स्थापित हो जाता है। इस प्रकार बालक को शब्दों व वर्गों का ज्ञान हो जाता है। इस प्रकार बालक खेल-खेल में वाचन करना सीख जाते हैं। इस विधि का प्रयोग केवल प्राथमिक कक्षाओं में ही किया जा सकता है।
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