जनजातीय नृत्य का वर्णन कीजिए।
जनजातीय नृत्य का वर्णन कीजिए।
उत्तर— जनजातीय नृत्य —
” वनवासियों के लोकनृत्य– भारत का विशाल प्रदेश ‘राजस्थान’ अनेक जातियों की सांस्कृतिक भिन्नता के लिए प्रसिद्ध है। किसी भी देश की आदिम जाति उस देश के अतीत काल की संस्कृति, कला, सामाजिक व्यवस्था तथा इतिहास पर तथा एक लम्बे समय तक चलते जा रहे संघर्षों पर प्रकाश डालने के लिए पर्याप्त माध्यम होती है। भील, सहरिया और गरासिया जाति के लोकनृत्य व लोकगीत उनके सांस्कृतिक व धार्मिक अवसरों को इंगित करने के साथ-साथ संघर्षपूर्ण जीवन व कलात्मक रुचि के सूचक है। नृत्य इनके जीवन का अभिन्न अंग हैं।
भीलों के लोकनृत्य– राजस्थान के दक्षिणी-पश्चिमी भाग में उदयपुर, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़ आदि में भीलों का निवास है । इनके नृत्य अधिकांशतः वृत्ताकार होते हैं। स्त्री-पुरुष के सम्मिलित नृत्यों में आधा वृत्त स्त्रियों का व आधा पुरुषों का होता है। कुछ नृत्यों में एक-दूसरे के कंधे पर हाथ रखकर विभिन्न प्रकार से करते पद-संचालन है।
भीलों के नृत्यों में एक और नृत्य प्रकार है— गवरी । यद्यपि यह नृत्य एक नृत्य नाटक के रूप में प्रस्तुत होता है, फिर भी उसका राई नृत्य अपना विशेष स्थान रखता है। सावन-भादों में यह नृत्य सारे भील प्रदेश में प्रदर्शित होता है। भगवान शिव इस नाट्य के प्रमुख पात्र होते हैं और शायद उन्हीं की अर्धांगिनी गौरी (पार्वती) के नाम के कारण इसका नाम ‘गवरी’ पड़ा।
इसके अतिरिक्त भीलों के प्रमुख नृत्यों, घूमर, घेर, युद्ध-नृत्य है । गरासियों के लोक नृत्य – राजस्थान में अरावली और विंध्य पर्वतमाला की हरीतिमा में सिरोही जिले की पहाड़ियों में गरासिया जाति रहती है। सघन वन, निर्मल झरने और बरसाती नदियों की स्वच्छन्दता और सरलता ने ही इन गरासियों के जीवन को अपने गुण दिये हैं। –
कठिन परिश्रम के बाद आनन्द और उल्लास के लिए ये नृत्य करते हैं। होली और गणगौर इनके प्रमुख त्यौहार हैं। स्त्री पुरुषों की टोलियाँ आनन्द – मग्न होकर साथ-साथ चलती हैं।
सासियों के नृत्य – इसमें स्त्री-पुरुष मिलकर आमने-सामने स्वच्छंद और भंगिमाएँ बनाते हुए नृत्य करते हैं।
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