ज्ञान के उद्देश्य क्या हैं? ज्ञान प्राप्ति की एक विधि का वर्णन कीजिए।
ज्ञान के उद्देश्य क्या हैं? ज्ञान प्राप्ति की एक विधि का वर्णन कीजिए।
उत्तर— ज्ञान के उद्देश्यः ज्ञान के निम्नलिखित उद्देश्य हैं—
(1) समस्याओं के समाधान की युक्ति प्रदान करना– ज्ञान, जीवन से संबंधित समस्याओं के समाधान के लिए युक्ति प्रदान करता है। बिना ज्ञान के न तो मनुष्य समस्याओं को पहचान सकता है और न ही इन समस्याओं का समाधान ही प्रस्तुत कर सकता है। ज्ञान के कारण, समस्याओं के समाधान में लगने वाले समय या अवधि में भी कमी आ जाती है, उदाहरण के लिए शिक्षण संबंधित समस्याओं का समाधान शिक्षा से संबंधित ज्ञान से प्राप्त होता है। भाप की शक्ति के ज्ञान से भाप के रेल इंजन बनाने और यातायात संबंधी समस्याओं का समाधान मिला।
(2) किसी घटना और परिस्थिति को समझने में सहायक– ज्ञान का एक यह भी उद्देश्य होता है कि किसी घटना और
को समझना। किसी भी वस्तु, स्थिति का ज्ञान उन्हें समझने में सहायक हो सकता है ।
(3) सूचनाओं को निश्चित आकार देना– ज्ञान का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य यह है कि सूचनाओं को एक निश्चित रूप दिया जाए। सूचनाएँ यहाँ-वहाँ बिखरी पड़ी हुई हैं पर उनको सही एवं निश्चित रूप प्रदान करना ज्ञान का उद्देश्य हैं।
(4) व्याख्या करना– ज्ञान व्याख्या करता है। ज्ञान के प्रमुख उद्देश्यों में से एक उद्देश्य यह भी है कि किसी भी प्रक्रिया, घटना या अवलोकन की व्याख्या कर सकता है। ज्ञान के ही माध्यम से जटिलता की व्याख्या की जाती है।
(5) व्यक्तिगत अनुभवों को सुदृढ़ करना– ज्ञान, व्यक्तिगत अनुभवों को सुदृढ़ीकरण का कार्य करता है। हमारे व्यक्तिगत अनुभव जब तक किसी ज्ञान के सम्पर्क में नहीं आते तब तक व्यक्तिगत अनुभवों के ठोस रूप में नहीं कहा जा सकता ।
(6) सिद्धान्त व नियमों का निर्माण– प्रत्येक क्षेत्र में सूचनाओं के माध्यम से सिद्धान्तों का निर्माण किया जाता है, जो सामान्यीकरण की प्रक्रिया के माध्यम से निर्मित होते हैं। इन सिद्धान्तों व नियमों का निर्माण करना ज्ञान के महत्वपूर्ण कार्यों में से एक है।
(7) क्रिया के लिए उपयुक्त क्षमता का विकास करना– किसी भी क्रिया को (स्वैच्छिक क्रिया को छोड़कर) उचित तरीके से करने के लिए उपयुक्त क्षमता का विकास करना ज्ञान का एक उद्देश्य होता है।
(8) व्यक्तिगत विकास– ज्ञान का एक उद्देश्य यह होता है कि मनुष्य का व्यक्तिगत विकास किया जा सके। व्यक्तिगत विकास के सभी आयामों जैसे- भाषा, कौशल, संचार, व्यक्तित्व, व्यवहार, अभिवृत्ति आदि को विकसित करना ज्ञान का महत्वपूर्ण उद्देश्य है।
(9) मानसिक विकास के लिए अवसर उत्पन्न करना– ज्ञान मानसिक विकास के लिए उपयुक्त अवसर प्रदान करता हैं ज्ञान हमारे मस्तिष्क के सामने ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न करता है जिससे हमारी बुद्धि की सहायता से मानसिक क्षमताओं का विकास होता है; जैसे- तर्क (Resaon), अंकगणित (Arithematic), प्रश्न (Questions) एवं विश्लेषण आदि के कारण हमारा मानसिक क्षमताओं में लगातार वृद्धि होती रहती है।
(10) प्रत्ययों का निर्माण– कोई भी प्रत्यय हमारे समक्ष ज्ञान की वजह से ही आता है। प्रत्यय ही हमारी समझ को विकसित करते हैं। ये प्रत्यय ही सम्पूर्ण समाज में सीखने के लिए उद्देश्य के रूप में रखे जाते हैं। ज्ञान का यह प्रमुख उद्देश्य है कि सभी महत्वपूर्ण अवलोकनों (Observations), तथ्यों (Facts) और वस्तुओं (Objects) से संबंधित प्रत्ययों का निर्माण करें ।
(11) शब्दों का निर्माण– ज्ञान का एक उद्देश्य यह है कि व्याख्या एवं पहचान के लिए उपयुक्त शब्दों का निर्माण करना बिना शब्द के ज्ञान का हस्तांतरण सम्भव नहीं हो सकेंगा ।
(12) समाज का विकास– ज्ञान का उद्देश्य होता है समाज का समुचित विकास। कोई भी समाज अपने विकास के लिए समाज द्वारा संचित ज्ञान पर ही निर्भर करता है। जितना उन्नत ज्ञान होगा, जितना ज्ञान की विभिन्नता होगी, वह समाज ज्यादा विकसित होगा। ज्ञान का संचय और उसका प्रयोग समाज के विकास के लिए अनिवार्य शर्तों में से है।
ज्ञान प्राप्ति की विधिः निम्नलिखित हैं—
(1) अवलोकन विधि (Observation)– इस प्रकृति के बाहरी रूप का अनेक रूपों में अवलोकन करते हैं और हमें अनेक बातों का ज्ञान होता है। रूसो प्रकृति को बालक सबसे बड़ी की शिक्षिका मानते थे। उनका कहना था कि प्रारम्भ के वर्षों में बालक को प्रकृति की गोद में रखकर शिक्षा देनी चाहिये । अवलोकन के साथ-साथ हमें निरीक्षण का भी अवसर मिलता है। बालक व व्यक्ति अपने आसपास के वातावरण का निरीक्षण करता है। निरीक्षण के आधार पर ही अनुभव होता है और फिर उन अनुभवों को हम अपने जीवन, समाज और देश के साथ जोड़ने का प्रयास करते हैं। अपने ही अनुभवों में हम समानता भी देखते हैं और भिन्नता भी देखते हैं। दूसरों के अनुभवों को भी हम सुनते हैं और इन अनुभवों के आधार पर हम कोई मत बनाते हैं और फिर और अधिक अनुभवों की सहायता से अपने बनाये हुए मत की परख भी करते हैं ।
अनुभवों द्वारा प्राप्त किये हुए ज्ञान की व्याख्या करते हैं और उस ज्ञान को तर्कपूर्ण ढंग और सुव्यवस्थित रूप से संगठित करते हैं और उस ज्ञान को स्वीकार करते हैं ।
(2) करके सीखना ( Learning by Doing)– इन्द्रियों का प्रयोग करते हुए हम किसी कार्य को करते हैं और फिर उस कार्य से संबंधित ज्ञान प्राप्त करते हैं । इस विधि से ज्ञान प्राप्त करना रुचिकर और सहज होता है। हम इस विधि से स्वयं प्रयास करके ज्ञान प्राप्त करते हैं और इससे हमारा आत्मविश्वास बढ़ता है।
(3) अनुभव से सीखना (Learning by Experience)– करके सीखने की तरह ही व्यक्ति स्वयं अनुभव करके ज्ञान प्राप्त करता है। जैसे कि हम दूसरों को किसी कार्य को करता हुआ देखकर पूरी तरह उस कार्य को नहीं कर सकते। इस तरह हम सत्य का ज्ञान दूसरों द्वारा किये अनुभवों पर निर्भर करके प्राप्त नहीं कर सकते हैं। मनुष्य को उसके स्वयं के अनुभव खोजी बनाते हैं। इसलिये कहा भी गया है कि, “अनुभव मनुष्य का सबसे बड़ा शिक्षक है।” (Experience is the greatest teacher of man).
(4) दृश्य-श्रव्य सामग्री ( Audio – Visual Aids)– दृश्य-श्रव्य सामग्री आज के वैज्ञानिक युग की देन है। यह ठीक है कि दृश्य – श्रव्य सामग्री अपने आप में ज्ञान प्राप्ति की विधि नहीं है। लेकिन ज्ञान प्राप्ति की विधियों के लिये यह सामग्री बहुत उपयोगी है। ज्ञान प्रदान करने के लिए इस सामग्री का प्रयोग करके बालक की एक से अधिक इन्द्रियों को सक्रिय करके ज्ञान सहज ढंग से दिया जा सकता है। ज्ञान प्राप्त करने वाले को किसी प्रकार की कठिनाई का अनुभव नहीं होता। सरलता के साथ ज्ञान की प्राप्ति हो जाती है।
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