व्यक्तित्व के मापन की कौन-कौनसी प्रक्षेपण तकनीकें हैं ? किसी एक प्रक्षेपण परीक्षण का विवरण दीजिए ।

व्यक्तित्व के मापन की कौन-कौनसी प्रक्षेपण तकनीकें हैं ? किसी एक प्रक्षेपण परीक्षण का विवरण दीजिए ।

                                     अथवा
संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए— रोश का स्याही का धब्बा परीक्षण ।
उत्तर— प्रक्षेपण विधियाँ (Projective Methods)— प्रक्षेपण विधि व्यक्तित्व मापन की सर्वश्रेष्ठ, विश्वसनीय तथा नवीनतम विधि है । प्रक्षेप का अर्थ है कि अतृप्त इच्छाओं, अवांछनीय विचारों तथा दमित आशाओं को किसी बाह्य पदार्थ के साथ जोड़ना। इसका अभिप्राय यह हुआ कि इस विधि के द्वारा व्यक्ति अपनी इच्छाओं, विचारों, भावनाओं तथा मानसिक दशा को आरोपित किसी वस्तु अथवा चित्र का अर्थ लगाने में करता है। इस विधि को परीक्षक चित्रों द्वारा ऐसी उत्तेजक परिस्थितियों को प्रस्तुत करता है कि उसे अपनी आवश्यकताओं, इच्छाओं तथा विचारों को उस पर आरोपित करने का अवसर मिल जाता है। अतः इस विधि का उद्देश्य यह है कि यह व्यक्तित्व की तह में स्थित उसकी विशेषताओं को प्रकाश में लाए । उदाहरण— रामायण में राम अपनी विरह दशा का (रावण द्वारा सीता ले जाने पर) पुष्पों, पेड़ों तथा हिरण आदि पर प्रक्षेपण करके करते रहते हैं। प्रक्षेपण विधि की मुख्य विशेषता यह है कि यह व्यक्ति के अचेतन मन से सम्बन्धित है तथा उसके द्वारा प्रक्षिप्त तथ्यों का विश्लेषण करके उसके व्यक्तित्व को ज्ञात किया जाता है।
कुछ प्रमुख प्रक्षेपण विधियाँ निम्न हैं—
(1) स्याही धब्बा परीक्षण (Ink Blot Test)–स्याही धब्बा परीक्षण के प्रवर्तक स्विस मनोवैज्ञानिक हरमैन रोर्शा हैं। इस परीक्षण में दस स्याही के धब्बों जैसी आकृतियाँ कार्ड पर बनी होती हैं उन्हें एकएक करके विषयी के सम्मुख रखा जाता है। ये धब्बे की आकृतियाँ पाँच कार्डों पर काली, दो कार्डों पर लाल और काली तथा शेष तीन कार्डों पर काले भूरे रंग की होती हैं। प्रत्येकं कार्ड को बारी-बारी से विषयी के सम्मुख रखे जाने पर उससे यह पूछा जाता है कि चित्र में क्या देख रहे हैं? विषयी अपनी प्रतिक्रियाओं को बताता है तथा परीक्षक उसे लिखना जाता हैं। इसके साथ-साथ परीक्षक, प्रतिक्रिया का समय, प्रत्येक कार्ड के
लिए कितना समय लगा, कार्ड देखते समय कैसे पकड़ा तथा अन्य महत्त्वपूर्ण व्यवहार आदि नोट करता है। इन तथ्यों के आधार पर वह विश्लेषण करता है तथा निष्कर्ष निकालता है। वह इनकी व्याख्या करते समय निम्न बातों का ध्यान रखता है—
(i) स्थिति (Location)– विषयी की प्रतिक्रिया सम्पूर्ण धब्बों पर आधारित है अथवा किसी एक भाग पर ।
(ii) निर्धारक (Determinatiors) – निर्धारक में प्रतिक्रिया को निश्चित करने वाले गुण सम्मिलित किये जाते हैं । जैसे-धब्बे के रंग, गति, रूप अथवा बनावट के प्रति ।
(iii) विषयवस्तु (Content)– इसके अन्तर्गत धब्बे में किस वस्तु की आकृति देखता है जैसे पशु की, मानव की, पक्षी की, किसी स्थान की प्राकृतिक दृश्य की, शरीर के अंग की, काम सम्बन्धी क्रियाएँ अथवा मानव निर्मित वस्तुएँ ।
मौलिकता(Originality)– इसके अन्तर्गत यह देखा जाता है कि उसकी प्रतिक्रियाएँ मौलिक हैं अथवा परम्परागत । “
उपर्युक्त तथ्यों की व्याख्या प्रशिक्षित, योग्य तथा अनुभवी मनोवैज्ञानिक ही कर सकता है। लेकिन इनमें से कुछ का अर्थ दिया जा रहा है। स्थिति सम्बन्धी अनुक्रियाएँ विषयी की बौद्धिक योग्यता को स्पष्ट करती हैं जबकि आकार सम्बन्धी अनुक्रियाएँ यह स्पष्ट करती हैं कि विषयी अपने व्यवहार तथा बौद्धिक क्रियाओं पर कितना नियंत्रण रखता है। रंग उसके संवेगात्मक सम्बन्ध को स्पष्ट करते हैं तथा गतिशीलता की अनुक्रियाएँ बताने पर उसकी कल्पनाशीलता की जानकारी मिलती । है। विषयवस्तु से सम्बन्धित प्रतिक्रियाओं से विषयी की रुचि, परिपक्वता, बाध्यता तथा मनोग्रन्थि का ज्ञान होता है। इस प्रकार इस परीक्षण से विषयी की बुद्धि, संवेगात्मक सन्तुलन, सामाजिकता तथा कल्पनाशीलता आदि के बारे में पूर्ण जानकारी मिलती है।
दोष—इस परीक्षण के दोष निम्न हैं—
(i) इस परीक्षण में प्रमुख दोष यह है कि इसमें मनोवैज्ञानिक निष्कर्ष निकालने के असीमित अवसर प्राप्त हो जाते हैं । मनोवैज्ञानिक तथ्यों के अर्थ निकालने की स्वतंत्रता से कभीकभी उसके निष्कर्ष गलत भी हो जाते हैं ।
(ii) इस परीक्षण के भारत में मानक उपलब्ध न होने पर परीक्षक को अनुभवों का सहारा लेना पड़ता है।
(iii) इस परीक्षण की प्रामाणिकता तथा विश्वसनीयता का निर्धारण करना कठिन है।
(2) टी. ए. टी. (Thematic Apperception Test or T.A.T.)– इसे हिन्दी में प्रासंगित अन्तर्बोधि परीक्षण भी कहते हैं । इस परीक्षण का निर्माण 1935 में मारगन तथा मरे ने किया था। इसमें 30 चित्र होते हैं जिसमें 10 केवल पुरुषों के, 10 केवल स्त्रियों के लिए और 10 दोनों के लिए होते हैं। इसका यह अर्थ हुआ कि प्रत्येक पुरुष अथवा महिला को बीस चित्र दिखाए जाते हैं। विषयी को प्रत्येक चित्र बारीबारी से करके दिखाकर निश्चित समय में (5-10 मिनट) पूरी कहानी लिखने के लिए कहा जाता है।
कहानी निम्नलिखित आधारों पर बनाने के लिए कहा जाता है—
(i) चित्र में क्या घटना घट रही है ?
(ii) चित्र के पात्र क्या सोच रहे हैं ?
(iii) पात्रों की भावनाएँ क्या हैं ?
(iv) चित्र में दृश्य किस कारण हैं ?.
(v) इसका परिणाम क्या होगा ?
मनोवैज्ञानिक उपर्युक्त तथ्यों का विश्लेषण करते समय यह ध्यान रखेगा कि विषयी की कहानी का अभिनेता कौन है तथा उसकी आवश्यकताएँ क्या हैं ? इसके अतिरिक्त उसे यह भी ध्यान रखना होगा कि इस अभिनेता पर क्या दबाव है अथवा किन परिस्थितियों का प्रभाव है । वह कहानी लिखने में अपनी दमित इच्छाओं, भय, निराशाओं तथा अवांछनीय भावनाओं की अभिव्यक्ति करता है क्योंकि कहानी लिखने में सोचने का समय नहीं रहता। अतः इसके द्वारा सरलता से विषयी के अन्तर्द्वन्द्व, संवेगात्मक स्थिति, उसके मानसिक संघर्ष तथा आवश्यकताओं का पता लग जाता है ।
(3) सी. ए. टी. ( Children Apperception Test or C.A.T.)– इसको हिन्दी में बालकों का अन्तर्बोधि परीक्षण कहा जाता है। इस परीक्षण का आधार वही है जो मरे के (T.A.T.) परीक्षण का है। केवल अन्तर यह है कि यह केवल बच्चों के लिए बनाया गया है। इसमें चित्रों की संख्या दस होती है तथा ये चित्र पशुओं की आकृति के होते हैं । कुत्ता, बिल्ली, बन्दर, शेर, खरंगोश आदि को लेकर दस चित्र इस परीक्षण में बनाये गए हैं जो एक-एक करके बालक को दिखाये जाते हैं ।
(4) खेल और नाटक विधि (Play and Drama Method)– खेल के द्वारा भी बालकों के व्यवहार का पता लग जाता है। खेल में बालक अपने संवेग, तनाव, उग्रता तथा निराशा अथवा आशाप्रद भावनाएँ अभिव्यक्त करता है। इसके अलावा बालकों को यदि स्वतंत्रतापूर्वक खिलौने से भी खेलने दिया जाए तो वे किस प्रकार खेलते हैं, उनकी इस समय क्या योजनाएँ हैं तथा किन-किन गुणों को वे इसमें प्रदर्शित करते हैं आदि तथ्यों से उनके व्यक्तित्व के बारे में पता लगता है।
इस प्रकार मोरेनो (Moreno) महोदय ने रोगग्रस्त व्यक्तियों के लिए नाटक विधि का निर्माण किया। इसमें रोगग्रस्त व्यक्ति को प्रमुख अभिनेता की भूमिका दी जाती है। दूसरे व्यक्ति उसे नाटक में सहायता देने हेतु भाग लेते हैं। जब विषयी प्रमुख अभिनेता के रूप में अभिनय करता है तो उस समय अपनी भावनाएँ, विचार तथा इच्छाएँ प्रकट करता।
(5) वाक्य पूर्ति परीक्षण (Sentence Completion Test)– इसका निर्माण एबिगहास, पाइने तथा टेण्डलर ने किया। इस विधि द्वारा कुछ अधूरे वाक्य पूछे जाते हैं जिन्हें शीघ्रता से पूर्ति करने के लिए कहा जाता है। इस प्रकार के उदाहरण निम्नलिखित हैं—
(i) मैं दुःख अनुभव करता हूँ क्योंकि……..।
(ii) मैं तुम्हें पसन्द नहीं करता हूँ क्योंकि…….।
(iii) मेरी इच्छा है कि……… ।
उपर्युक्त वाक्य पूर्ति से विषयी की अचेतन मन में छिपी भावनाएँ, संवेग तथा रुचि आदि अभिव्यक्त हो जाती हैं क्योंकि उन्हें इसकी पूर्ति शीघ्रता से कराई जाती है। इस परीक्षण की विश्वसनीयता तथा विभेदीकरण शक्ति उपयुक्त है लेकिन इस परीक्षण का उपयोग अशिक्षित व्यक्तियों पर नहीं हो सकता है।
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