दक्षता के क्षेत्र समझाइये ।
दक्षता के क्षेत्र समझाइये ।
उत्तर— दक्षता के क्षेत्र—
(1) शिक्षण-अधिगम सामग्री निर्माण में दक्षताएँ– अधिगम के सम्प्रेषण के लिए आवश्यक है कि छात्राध्यापक/छात्राध्यापिकाएँ ऐसे उपकरण बनाने में दक्ष हों, जिससे बालक विषय-वस्तु को शीघ्रता से सीखें।
एक दक्ष अध्यापक अपने छात्रों को हाथ से बनाये गये अनेक उपकरण बनाने की प्रेरणा दे सकता है। घरेलू सामग्री से मोटर आदि के मॉडल बनाये जा सकते हैं। जल विश्लेषण या जल-अपघटन का उपकरण आसानी से बन सकता है।
ग्रामीण क्षेत्रों में सब्जियों, फलों एवं खाद्य सामग्री को सुरक्षित रखने के लिए देशी कूलर बनाये गये हैं जो बिना बिजली के आवश्यक ठण्डक देकर खाद्य पदार्थों को सुरक्षित रखते हैं।
अध्यापन के समय बाजार निर्मित उपकरणों की जगह पर अध्यापक या छात्रों द्वारा स्वनिर्मित उपकरण अधिक प्रभावी रहते हैं।
लेन्स पर आधारित दूरबीन, सौर ऊर्जा के उपयोग सम्बन्धी उपकरण, गुरुत्वाकर्षण सम्बन्धी खिलौने छात्रों को प्रेरणा द्वारा बनवाये जा सकते हैं। छात्र निर्मित विज्ञान कॉर्नर में छात्र निर्मित उपकरणों, चार्टी एवं संगृहीत वस्तुओं को रख सकते हैं।
विद्यालय में विज्ञान मेले का आयोजन, विज्ञान प्रदर्शनी एवं संग्रहालयों का अवलोकनार्थ भ्रमण वैज्ञानिक सोच उत्पन्न करने हेतु लाभदायक होता है।
(2) सम्प्रेषण सम्बन्धी दक्षता– शिक्षण कार्य के लिए सबसे मुख्य कार्य जो अध्यापक को करना होता है वह है विषय-वस्तु (ज्ञान) का सम्प्रेषण करना अर्थात् ज्ञान को छात्रों तक पहुँचाना, जिससे वे ज्ञान को आत्मसात् कर सकें। तभी अधिगम (सीखना) का स्तर भी बढ़ता है । ज्ञान स्मृति पटल से चिन्तन-पटल तक ले जाता है, जहाँ सम्प्रेषण विधियों को लगाने पर अध्यापक को मनोवैज्ञानिक विधियों का भी ज्ञान होना जरूरी है। उसे अपनी योग्यता, क्षमता के अलावा छात्र की रुचि, योग्यता, पूर्वज्ञान एवं उन परिस्थितियों का जानना भी आवश्यक होता है, जो सम्प्रेषण को बढ़ाती हैं ।
(3) समुदाय एवं अन्य संगठन सह-कार्य दक्षताएँ– लोकतन्त्रीय शासन में शिक्षा का कार्य समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति करना भी है। समाज को जिस वस्तु की आवश्यकता है, शिक्षा उसकी पूर्ति करती है। इसी प्रकार समाज भी विद्यालय की आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। संसाधन समाज ही जुटाता है। विद्यालयों को लघु समाज का रूप दिया जाता है। विद्यालय समाज में होने वाली क्रियाओं का प्रतिमान है। अध्यापक-पालक संघ, विद्यालयों में आयोजित राष्ट्रीय एवं सामाजिक पर्व, शाला विकास समिति, समाज एवं विद्यालय में रिश्तों को उद्घाटित करता है।
विद्यालय को भवन चाहिए, लाइब्रेरी, जल व्यवस्था, समुचित कार्यकर्ता एवं अध्यापक चाहिए। इन्हें समाज उपलब्ध कराता है। समाज को चरित्रवान, पढ़े-लिखे संस्कारित व्यक्ति चाहिए जो समाज का विकास कर सकें, चेतना दे सकें तथा सामाजिक परिवर्तन प्रदान कर सकें ।
(4) विषय-वस्तु सम्बन्धी दक्षताएँ– किसी भी अध्यापक को अपने पढ़ाये जाने वाले विषय में पूरा अधिकार हो । यही नहीं, उसे सम्बन्धित विषयों का भी ज्ञान हो । सामान्य ज्ञान तो होना ही चाहिए।
अध्यापक जितना ही विषय पर अधिकार रखता होगा वह छात्रों के लिए उतना ही प्रिय बन जाता है। विषय में मास्टरी रखने वाला व्यक्ति ही अधिगम कराने में सक्षम होगा।
(5) अन्य शैक्षिक क्रियात्मक दक्षताएँ– विषयवस्तु का सम्प्रेषण करने के लिए पाठ्येतर क्रियाओं की आवश्यकता होती है। हाथों द्वारा बनाये गये उपकरण, इधर-उधर फैले संसाधनों का उपयोग, वैज्ञानिक विधियों का उपयोग, सामाजिक पर्वों का आयोजन, जिससे हम भ्रमण, श्रमदान, सहयोग, विचार-चिन्तन, आपसी भाईचारा सीखते हैं, वहीं छात्राध्यापक/छात्राध्यापिकाएँ अन्य गुणों को भी सीखते हैं जो भावात्मक प्रशिक्षण के रूप में उपयोगी होता है।
(6) सन्दर्भगत दक्षताएँ– सभी विषय, परन्तु विशेष रूप से विज्ञान जैसे विषयों को पढ़ाते समय मूलभूत या आधारभूत प्रत्यय स्पष्ट करने हेतु सन्दर्भगत दक्षता प्राप्त करना आवश्यक है।
यह दक्षता इस बात पर जोर देती है कि हम जब तक पाठ्यवस्तु के सन्दर्भ बिन्दुओं को समझ नहीं लेते, तब तक विषय-वस्तु भी समझ में नहीं आती। किसी घटना को तब ही हम भली-भाँति समझ सकते हैं जब हम उस सन्दर्भ की परिस्थितियों (आर्थिक, सामाजिक या सांस्कृतिक) को समझ लेते हैं, जैसे वैदिक काल में अध्यापक ब्राह्मण ही हुआ करते थे । अब हर जाति और धर्म के व्यक्ति अध्यापकीय कार्य में लगे हुए हैं। लोकतन्त्र में सभी को अध्यापकीय व्यवसाय में आने का हक है। देश,काल, पात्र आदि के परिवर्तन से तथ्य एवं अर्थ भी बदल सकते हैं।
इसीलिए सन्दर्भगत दक्षता प्राप्त करना प्रत्येक अच्छे एवं सफल अध्यापक/अध्यापिका को जानना जरूरी है। वैश्वीकरण, उदारीकरण, ज्ञान के प्रसंग तथा परिवर्तन सम्बन्धी चुनौतियों के बारे में अध्यापक को जानना जरूरी है।
सफल अध्यापक वही है जो लगातार अध्ययनरत रहता है और अपने ज्ञान की क्षुधा को शान्त करने में लग जाता है।
(7) संकल्पना को स्पष्ट करने की दक्षता– अध्यापक के लिए आवश्यक है कि उसमें जटिल संकल्पनाओं को सरल ढंग से स्पष्ट करने की दक्षता होनी चाहिए।
अध्यापन कार्य प्रारम्भ करने से पहले हमें छात्र की आवश्यकताओं को समझ लेना चाहिए और यह भी कि उसको पूर्व ज्ञान कितना है, तभी प्रभावकारी ढंग से अध्यापन प्रारम्भ हो सकेगा। केवल विषयवस्तु की संकल्पनाओं में दक्षता प्राप्त कर लेने से काम नहीं चल पाता, बल्कि शिक्षण विधियों की संकल्पनाओं में भी दक्षता होनी चाहिए। कभी-कभी केवल व्याख्यान विधि उबाऊ साबित हो सकती है, जबकि अवलोकन एवं प्रायोगिक विधियाँ अधिक शीघ्रता से सीखने को प्रेरित करती हैं। व्याख्यान विधि को ही प्रश्नों द्वारा, प्रभावी भाषा द्वारा प्रायोगिक विधि द्वारा तथा स्वयं करके सीखने की विधि से प्रभावकारी अधिगमन का काम करता है।
किसी बालक को यदि गणित के आधारभूत सिद्धान्त ही स्पष्ट न हों तो वह आगे चलकर जटिल गणितीय संक्रियाओं को हल नहीं कर सकेगा।
अतः एक अध्यापक को संकल्पनाओं में दक्ष प्राप्ति आवश्यक है, बिना इसके वह सफल अध्यापक नहीं हो सकेगा।
(8) प्रबन्ध सम्बन्धी दक्षताएँ– विद्यालयों में अच्छे ढंग की पढ़ाई अच्छे अध्यापक, अनुशासन एवं व्यवस्थित प्रबन्धन के कारण ही सम्भव है। अध्यापन कार्य के साथ-साथ अध्यापक सामाजिक मूल्यों को बालकों में प्रेषित कर देता है। राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय, सामाजिक गुण उसे विभिन्न कक्षा–अध्यापन एवं सामूहिक आयोजन द्वारा बताये जाते हैं। राष्ट्रीय पर्वों में राष्ट्रीय ध्वज की मर्यादा, सम्मान तथा राष्ट्रगान के प्रति सम्मान, इन्हीं आयोजनों से बालक सीखता है। विद्यालय में आयोजित पर्वों में अतिथियों का स्वागत, उनके प्रति उचित व्यवहार करने की ट्रेनिंग अध्यापकों द्वारा ही सिखायी जाती है ।
खेलकूद में स्वस्थ प्रतियोगिता, कैप्टन के प्रति आदर्शों का सम्मान, समानता, भाईचारे की भावना, लोकतन्त्रीय मूल्यों का ग्रहण करना विद्यालय में ही सीखे जाते हैं। साफ-सफाई, समाज-सेवा, सामूहिक क्रियाकलाप में स्वयं एवं पात्रों की भागीदारी तथा उनमें उत्तरदायित्व की भावना उत्पन्न करना अध्यापकों का ही कर्त्तव्य है ।
(9) मूल्यांकन आधारित दक्षताएँ– शिक्षण में मूल्यांकन का अति महत्त्व है। बिना इसमें दक्षता प्राप्त किये अध्यापकीय दक्षता प्राप्त नहीं कर सकता । मूल्यांकन परिमाणात्मक भी होता है और गुणात्मक भी । गुणात्मक मूल्यांकन को परिमाणात्मक रूप देना बिना दक्षता प्राप्त किये नहीं हो सकता। अधिगम की सीमा का उल्लेख किया जाना चाहिए। बालक होशियार है, वह कमजोर है, इसका कोई अर्थ नहीं बनता जब तक कि उसकी सीमा दर्शायी न गयी हो ।
एक सफल अध्यापक/अध्यापिका को मूल्यांकन की आधुनिक विधियों का पता होना चाहिए । वह उनकी सांख्यिकीय गणना से परिचित हो । मूल्यांकन करते समय मूल्यांकन किये गये प्रश्न, उनके प्रकार व मापन के उद्देश्य से भी अध्यापक को अवगत होना चाहिए। दीर्घ उत्तरीय प्रश्न, लघु उत्तरीय प्रश्न, वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के अलावा ज्ञानात्मक, बोधात्मक प्रश्न, इण्टरव्यू, प्रश्नावली, सर्वे, अनुसंधान विधियों की तकनीक का ज्ञान होना भी आवश्यक है। निश्चित ही केवल बुद्धि परीक्षण (I.Q.) से व्यक्तित्व का मापन नहीं हो सकता ।
(10) अभिभावक सहकार्य दक्षताएँ– प्राथमिक विद्यालयों और माध्यमिक विद्यालयों में बीच में ही स्कूल छोड़ देने की समस्या रहती है। अध्यापकगण इस समस्या को सुलझान में सहायक हो सकते हैं। यह केवल बालक/बालिकाओं के पालकों से मिलकर हल किया जा सकता है। छात्र कक्षा में रुचि नहीं लेता या प्राय: अनुपस्थित रहता है तो बालकों के पालकों को मामले की सूचना देकर बालक को नियमित रूप से विद्यालय भेजने के लिए प्रेरित कर सकते हैं।
विभिन्न राष्ट्रीय कार्यक्रमों, सांस्कृतिक कार्यक्रमों, वार्षिक कार्यक्रमों में पालकों को भागीदारी हेतु निमन्त्रित किया जाने से वे विद्यालय की समस्याओं एवं आवश्यकताओं से अवगत होंगे तथा विद्यालय एवं समाज के प्रति भाईचारा बढ़ेगा।
पालकों से विद्यालय का सीधा सम्बन्ध होने से उनके बालक विद्यालयों में अनुशासित रहते हैं। बालक का अधिक समय अपने मातापिता के साथ व्यतीत होता है। यदि पालकों का अध्यापकों से निर्भरता होगी तो बालक अनुशासित ही होगा, वे विद्यालयों के लिए भी निकटता बनाये रखेंगे।
पालकों से निकटता होने पर पालक अपने कक्षा अध्यापकों एवं विषय- अध्यापकों एवं अपने बालकों के सम्बन्ध में विद्यालयीन रिपोर्ट प्राप्त होती रहेगी। अध्यापक भी बालक की गतिविधियों पर नजर रखेंगे। बालक की पढ़ाई, स्वास्थ्य, खेलकूद सम्बन्धी पालकों को सलाह देते रहेंगे।
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
- Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
- Facebook पर फॉलो करे – Click Here
- Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
- Google News ज्वाइन करे – Click Here