‘वाचन कौशल’ में उच्चारण का क्या महत्त्व है ? स्पष्ट कीजिए ।

 ‘वाचन कौशल’ में उच्चारण का क्या महत्त्व है ? स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर— वाचन कौशल में उच्चारण का महत्त्व – ” भाषा के सर्वमान्य रूप की रक्षा के लिए सबसे पहली आवश्यकता होती है उसका शुद्ध उच्चारण।” इसके अभाव में किसी भी भाषा का कोई निश्चित रूप नहीं हो सकता। उसका कोई सर्वमान्य रूप नहीं हो सकता तथा वह अपने प्रयोजन में खरी नहीं उतर सकती। कभी-कभी तो शब्दों का अशुद्ध उच्चारण करने से उनका अर्थ ही बदल जाता है।
शुद्ध उच्चारण मौखिक भाषा के ‘बोलने’ कौशल का आवश्यक तत्त्व है। सामान्य वार्तालाप से लेकर बड़े-बड़े मंचों पर भाषण देने तक शुद्ध उच्चारण का अपना महत्त्व होता है। इसके अभाव में मौखिक भाषा प्रभावहीन होती है, उसका श्रोता पर अनुकूल प्रभाव नहीं पड़ता। अशुद्ध उच्चारण न कर्ण प्रिय होता है न अर्थ पूर्ण ।
शुद्ध उच्चारण शिक्षित व्यक्ति की पहली पहचान होती है। अशुद्ध उच्चारण करने वाले व्यक्तियों की योग्यता पर प्रश्न चिह्न लग जाता है तथा अशुद्ध उच्चारण करने वाले व्यक्ति शिक्षित समाज में उपहास के पात्र बनते हैं।
भाषा के लिखित रूप की रक्षा के लिए भी शुद्ध उच्चारण अति आवश्यक है। शुद्ध उच्चारण अति आवश्यक है। शुद्ध उच्चारण लिखित भाषा के पठन कौशल और लेखन कौशल दोनों का आवश्यक तत्त्व होता है। शुद्ध उच्चारण के अभाव में मौखिक पठन प्रभावहीन होता है, उसका न तो पाठक आनन्द ले पाता है न श्रोता।
लिखित भाषा मौखिक भाषा का प्रतिरूप होती है, हम मौखिक रूप से जैसा सोचते हैं व बोलते हैं वैसा ही लिखते हैं। हिन्दी भाषा में तो जैसा उच्चारण किया जाता है ठीक वैसा ही लिखा जाता है। अगर हम किसी शब्द का अशुद्ध उच्चारण करेंगे तो फिर उसे लिखेंगे भी अशुद्ध रूप में ही। उस स्थिति में लिखित भाषा का प्रभावहीन होना स्वाभाविक है। तब कहना न होगा कि भाषा के सर्वमान्य मौखिक एवं लिखित रूप की रक्षा के लिए शुद्ध उच्चारण का सर्वाधिक महत्त्व है और शुद्ध उच्चारण ही भाषा का प्राण है।
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