निर्माणात्मक अधिगम क्या है ? विस्तार से समझाइये ।

निर्माणात्मक अधिगम क्या है ? विस्तार से समझाइये ।

उत्तर— निर्माणात्मक अधिगम–रचनात्मक परिप्रेक्ष्य में, सीखना (अधिगम) ज्ञान के निर्माण की एक प्रक्रिया है और सिखाने (अध्यापन) का उद्देश्य ज्ञान का सृजन करना है। विद्यार्थी सक्रिय रूप से पूर्व प्रचलित विचारों में उपलब्ध सामग्री अथवा गतिविधियों के आधार पर अपने लिए ज्ञान की रचना करते हैं, जिसे अनुभव की श्रेणी में रखा जा सकता है।

विद्यार्थियों के ज्ञान-सृजन में अध्यापकों की भूमिका भी बढ़ सकती है, यदि वे ज्ञान निर्माण की उस प्रक्रिया में ज्यादा सक्रिय रूप से शामिल हो जाएँ, जिसमें बच्चे व्यस्त हैं। सीखने की प्रक्रिया में व्यस्त विद्यार्थी अपने ज्ञान का सृजन स्वयं करता है । इस दृष्टि से शिक्षक को रचनात्मक होना चाहिए और विद्यार्थियों को अन्तःक्रिया के अवसर प्रदान करने चाहिए।
विद्यालय शिक्षा में अध्यापकों को उन अनुभवों का आयोजक समझा जाता है जो बच्चों के सीखने में सहायक होता है । इस दृष्टि से शिक्षक रचनात्मक अधिगम की पृष्ठभूमि में पारस्परिक अन्त:क्रिया के माध्यम से ज्ञान सृजन की परिस्थितियाँ तैयार कर उत्प्रेरक का कार्य कर सकता है।
रचनात्मक अधिगम की परिस्थिति निर्माण हेतु प्रक्रिया– रचनात्मक अधिगम की परिस्थिति निर्माण हेतु निम्न प्रक्रिया हो सकती हैं—
(1) परिस्थिति निर्माण–अध्यापन से पूर्व विद्यार्थियों के समक्ष प्रकरण की पृष्ठभूमि में रेखाचित्र, चित्र, दृश्य संकेत, कहानी, घटना वर्णन आदि के माध्यम से प्रस्तुत कर रचनात्मक अधिगम की परिस्थिति निर्मित की जा सकती है।
(2) अवलोकन–विद्यार्थी को प्रकरण से सम्बन्धित दृश्यावली अथवा चित्रावली को अवलोकन का पर्याप्त अवसर प्रदान कर टिप्पणी लेखन अथवा प्रस्तुति हेतु प्रोत्साहित किया जा सकता है।
(3) संदर्भीकरण–विद्यार्थी प्रकरण आधारित विषय-वस्तु का अवलोकन कर लेते हैं तब वे स्वयं के विश्लेषण को पाठ से सम्बन्ध कर सकते हैं यह संदर्भीकरण की श्रेणी में आता है।
(4) संज्ञानात्मक शिक्षार्थन–अवलोकन व संदर्भीकरण में विद्यार्थी की सक्रियता पश्चात् शिक्षक अधिगम बिन्दु की व्याख्या एवं विश्लेषण कर समेकित रूप से संज्ञानात्मक शिक्षार्थन कर सकता है ।
(5) सहयोग–इस प्रक्रिया के अंतर्गत विद्यार्थी समूह बनाकर अधिगम बिन्दु की व्याख्या करते हैं व अभ्यास द्वारा निपुणता प्राप्त करते हैं। शिक्षक विद्यार्थियों के इस कार्य में सहयोग देकर मार्गदर्शन करता है।
(6) निर्वाचन सृजन–अधिगम बिन्दु के बारे में विद्यार्थी विश्लेषण, अभ्यास उपरान्त अपनी परिकल्पना को प्रमाणित करते हुए स्वयं का निर्वचन उत्पन्न करता है अथवा प्रमाण तर्क सहित प्रस्तुत करता है।
(7) बहुविध व्याख्या–निर्वचन सृजन पश्चात् विद्यार्थी अपने विश्लेषण एवं पाठ की मदद से समूह / कक्षा के अंदर और बाहर अपने तर्क की रक्षा करते हैं। इस प्रकार अलग-अलग प्रतिक्रियाओं के मध्य वे अपनी व्याख्या तक पहुँचने का उत्तर पाते हैं।
(8) बहुविध अभिव्यक्तियाँ–उपर्युक्त वर्णित प्रक्रियाओं से गुजरने के पश्चात् विद्यार्थी प्रस्तुत अधिगम बिन्दु अथवा प्रकरण के आगे-पीछे जाकर हर संदर्भ को विविध घटनाओं से जोड़ने के प्रयास करते हैं और देखते हैं कि एक ही प्रकार का विषय विविध ढंग से दिखाया जा सकता है अथवा अभिव्यक्त किया जा सकता है ।
शिक्षक की भूमिका–रचनात्मक अधिगम की परिस्थिति के संदर्भ में शिक्षक एक उत्प्रेरक हैं, जो विद्यार्थियों को अभिव्यक्ति के लिए और ज्ञान-सृजन के क्रम में व्याख्या और विश्लेषण के लिए प्रोत्साहित करता है तथा आवश्यकता पड़ने पर मार्गदर्शन करता है।
अधिगम गतिविधि एवं रचनावाद–अध्ययन अध्यापन संस्थितियों में रचनात्मक अधिगम हेतु एक शिक्षक अपने उद्देश्य को तब ही प्राप्त कर पायेगा, जब उसे इनके मध्य सह-सम्बन्ध का ज्ञान हो । अधिगम गतिविधि एवं रचनावाद सह-सम्बन्ध इस प्रकार हैं-
                                              अधिगम गतिविधि एवं रचनावाद : सहसम्बन्ध
अनुभव / पूर्वज्ञान           —    परिस्थिति निर्माण
चिन्तन विचार                —     अवलोकन
अनुप्रयोग/सहसम्बन्ध     —     संदर्भीकरण
विश्लेषण-संश्लेषण / वर्गीकरण )— संज्ञानात्मक शिक्षार्थन सहयोग
निष्कर्षतः – एन.सी.एफ. 2005 में उल्लिखित रचनात्मक अधिगम की अवधारणा और ज्ञान-सृजन की परिस्थितियों हेतु प्रोत्साहित किया जा सकता है, बशर्ते शिक्षक उत्प्रेरक के रूप में अपनी भूमिका अदा करें।
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