पाठ्यक्रम में एक विषय क्षेत्र को शामिल करने के मापदण्ड क्या हैं ?
पाठ्यक्रम में एक विषय क्षेत्र को शामिल करने के मापदण्ड क्या हैं ?
उत्तर— विषय-वस्तु के चयन के मापदंड–विषय वस्तु और उद्देश्य एक-दूसरे पर निर्भर हैं और पाठ्यक्रम विकास का प्रमुख आयाम है | विषय-वस्तु से तात्पर्य — संकल्पनाओं तथ्यों का सार, अवधारणाएँ, सामान्यीकरण, सिद्धान्त और सिद्धान्तवादों से है । विषय-वस्तु से हमारा अभिप्राय विषय के साथ-साथ अधिगम अनुभवों से भी है । पाठ्यक्रम की विषय-वस्तु ऐसी होनी चाहिए कि छात्र ज्ञानार्जन करके दैनिक जीवन में उसका प्रयोग कर सकें। चयनित विषय-वस्तु ऐसी होनी चाहिए कि उससे छात्रों को ज्ञान प्राप्त हो सके और वे मानव जीवन की वास्तविकताओं को समझ सकें। नीचे दिया गया आरेख इसे स्पष्ट करता है ।
हम सब विस्तार से विषय-वस्तु के चयन के मापदंडों की चर्चा करते हैं। बृहद स्तर पर विषय-वस्तु के चयन के मापदंड का आधार किसी राष्ट्र या समाज का सामाजिक, राजनैतिक तथा शिक्षा दर्शन होना चाहिए। सूक्ष्म स्तर पर मापदंड ऐसा होना चाहिए कि वह छात्रों की आवश्यकताओं के लिए निर्धारित उद्देश्यों के अनुरूप हो । विषय-वस्तु के चयन के कुछ मापदंडों की चर्चा नीचे की जा रही है—
(1) आत्मनिर्भरता–यह मापदंड छात्रों को अधिक से अधिक आत्मनिर्भर बनाने में अत्यन्त मितव्ययी ढंग से सहायता करता है; जैसेशिक्षण प्रयास में किफायत, छात्र प्रयास में किफायत और विषय-वस्तु के सामान्यीकरण का प्रसार (Economy of Teaching efforts, students efforts and extent of availability of Subject matter). दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि विषय-वस्तु छात्रों को स्वावलम्बी एवं आत्मनिर्भर बनने में सहायक हो।
(2) महत्त्व–सीखी जाने वाली विषय-वस्तु छात्रों के मूल विचारों संकल्पनाओं वाली (अवधारणाओं) और विशेषतः अधिगम योग्यताओं में महत्त्वपूर्ण योगदान देने वाली होनी चाहिए।
(3) वैधता–वैधता का सम्बन्ध चयनित प्रामाणिकता की विश्वसनीयता से है। चयनित विषय-वस्तु उस सीमा तक वैध होनी चाहिए कि वह पाठ्यक्रम के उद्देश्यों और लक्ष्यों से जुड़ी हुई हो और परिपुष्ट करने वाली हो । वह दैनिक जीवन के लिए उपयोगी भी होनी चाहिए।
(4) रुचि–विषय-वस्तु के चयन का एक अन्य निर्णायक आधार यह है कि चयनित विषय-वस्तु छात्रों के व्यक्तित्व (जैसे—दृष्टिकोण, रुचि आदि) व बौद्धिक क्षमताओं यथा मानसिक स्तर और अभिरुचि आदि के अनुरूप हो । यह सम्भव है कि छात्रों की रुचियाँ अल्पकालिक हों परन्तु रुचि के मापदंड को इस तरह से समायोजित किया जाए कि वह छात्रों की परिपक्वता, पूर्वज्ञान, अनुभव आदि को समृद्ध कर सके ।
(5) उपयोगिता–उपयोगिता का मापदंड विषय-वस्तु की उपयोगिता से सम्बन्धित है। उपयोगिता की अलग-अलग दृष्टिकोणों से व्याख्या की जा सकती है; जैसे अधिगम की विषय-वस्तु छात्रों के व्यावसायिक परिस्थितियों में उपयोगी सिद्ध होनी चाहिए ।
(6) अधिगमता–इस मापदंड का सम्बन्ध विषय-वस्तु की उपयुक्त क्रमबद्धता, उचित संगठन और उच्चतम स्थापन से है। चयनित विषय-वस्तु छात्रों के अनुभवों और बौद्धिक योग्यताओं आदि के बाहर नहीं होनी चाहिए। विषय-वस्तु ऐसी होनी चाहिए कि छात्र इसे अनुभव कर सकें, समझ सकें और आत्मसात् कर सकें ।
(7) साध्यता–विषय-वस्तु के चयन का यह मापदंड पाठ्यक्रम नियोजकों को इस बात के लिए बाध्य करता है कि वे उपलब्ध समय, साधन, लागत और तत्कालीन सामाजिक, राजनैतिक वातावरण को ध्यान में रखकर विषय-वस्तु का विश्लेषण और परीक्षण करें। अधिगम सम्बन्धी कई विकल्पों के बावजूद छात्रों की अधिगम गति सम्बन्धी सीमाएँ होती ही हैं ।
हमसे जुड़ें, हमें फॉलो करे ..
- Telegram ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
- Facebook पर फॉलो करे – Click Here
- Facebook ग्रुप ज्वाइन करे – Click Here
- Google News ज्वाइन करे – Click Here