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(i) समुदाय (ii) संश्लेषण विधि
उत्तर— (i) समुदाय– समुदाय के लिए अंग्रेजी भाषा में ‘com – munity’ शब्द का प्रयोग होता है। अंग्रेजी का ‘Community (समुदाय) शब्द दो लेटिन शब्द- ‘Com’ एवं ‘Munis’ से बना है। ‘Com’ शब्द का अर्थ ‘Together’ अर्थात् एक साथ से और ‘Munis का अर्थ ‘Serving’ अर्थात् सेवा करने से है। इन शब्दों के आधार पर समुदाय शब्द का अर्थ साथ-साथ मिलकर सेवा करने से है। दूसरों शब्दों में, समुदाय का अर्थ व्यक्तियों के ऐसे समूह से है जो किसी निश्चित भू-भाग पर साथ-साथ रहते हैं और वे किसी एक उद्देश्य के लिए नहीं बल्कि सामान्य उद्देश्यों के लिए इकट्ठे रहते हैं तथा उनका सम्पूर्ण जीवन सामान्यतः यहीं व्यतीत होता है समुदाय के अर्थ को स्पष्ट करने के लिए विभिन्न समाजशास्त्रियों ने इसे अपने-अपने शब्दों में परिभाषित करने का प्रयास किया है। यहाँ हम कुछ प्रमुख समाजशास्त्रियों की परिभाषाओ का उल्लेख एवं वर्णन करेंगे—
मैकाइवर एवं पेज ने अपनी कृति ‘Society’ में लिखा है कि जब कभी किसी छोटे या बड़े समूह के सदस्य इस प्रकार साथ-साथ रहते हैं कि वे किसी खास हित में ही भागीदार नहीं होकर सामान्य जीवन की मूलभूत परिस्थितियों में भाग लेते हैं, तो ऐसे के समूह समुदाय कहा जाता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि इन विद्वान के अनुसार समुदाय एक ऐसा क्षेत्रीय समूह है जो एक सामान जीवन जीता है तथा केवल कुछ खास हितों के लिए नहीं गठि होता है।
प्रोफेसर किंग्सले डेविस ने अपनी पुस्तक ‘Human Society में लिखा है कि समुदाय सबसे लघु क्षेत्रीय समूह है जिसमें सामाजिक जीवन के सभी पहलू आ जाते हैं।
समुदाय के आवश्यक तत्त्व– किसी भी मानव-समूह को समुदाय का दर्जा तभी दिया जा सकता है जबकि उनमें इसके निर्माण के लिए आवश्यक तत्त्व या आधार मौजूद हॉ। समुदाय के निर्माण के लिए कम से कम तीन आवश्यक तत्त्व होने जरूरी हैं। ये हैं व्यक्तियों का समूह, निश्चित भौगोलिक क्षेत्र और हम की भावना या सामुदायिक भावना। इनका हम संक्षेप में वर्णन करते है—
(1) व्यक्तियों का समूह– समुदाय निर्माण के लिए पहला महत्त्वपूर्ण तत्त्व है व्यक्तियों के समूह का होना। बिना व्यक्तियों के न तो सामान्य जीवन की कल्पना की जा सकती है और न ही सामुदायिक भावना के विकास की। अतः किसी भी समुदाय के निर्माण के लिए व्यक्तियों के समूह का होना प्रथम अनिवार्य शर्त या आधार है।
(2) निश्चित भौगोलिक क्षेत्र– किसी भी समुदाय के लिए इसका एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में निवास करना दूसरी आवश्यक शर्त है। जब तक कोई मानव समूह किसी निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में निवास नहीं करता है तब तक उसे समुदाय का दर्जा नहीं दिया जा सकता है। इस दृष्टि से गाँव, कस्बा, शहर, महानगर, प्रान्त या राष्ट्र इत्यादि को समुदाय इसलिए कहा जाता है कि इनमें से प्रत्येक का एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र होता है।
(3) सामुदायिक भावना– इसे समुदाय निर्माण का तीसरा आवश्यक तत्त्व कह सकते हैं तथा जिसे हम ‘हम की भावना’ या ‘We Feeling’ के रूप में जानते हैं। सामान्य बोल-चाल की भाषा में हम लोगों को अक्सर कहते सुनते हैं- हम सब एक हैं। यह हमारा समुदाय है। हमारा समुदाय अन्य समुदायों से भिन्न है।
परिवार के पश्चात् समुदाय में बालक की शिक्षा होती है। समुदाय में बालक को अपने मित्रों के मध्य रहना पड़ता है। वे मित्र उसके लिए समाज का निर्माण करते हैं और जिस प्रकार का उसका समाज होगा, वैसी ही आदर्ते तथा व्यवहार बालक में हो जाएँगे। विलियम ईमर के अनुसार, “मनुष्य स्वभाव से सामाजिक प्राणी है, इसलिए उसने वर्षों से सीख लिया है कि व्यक्तित्व और सामूहिक क्रियाओं का विकास समुदाय द्वारा ही सर्वोत्तम रूप में किया जा सकता है।”
(ii) संश्लेषण विधि- यह विधि विश्लेषण विधि से बिल्कुल विपरीत है एवं संश्लेषण प्रक्रिया पर आधारित है। संश्लेषण शब्द का कोशीय अर्थ है, अलग-अलग वस्तुओं या भागों को इकट्ठा करने की प्रक्रिया । इस तरह से उस विधि को संश्लेषण विधि कह सकते हैं जिसमें किसी समस्या को हल करने के लिए उस समस्या से सम्बन्धित सभी पूर्व सूचनाओं को एक साथ मिलकर समस्या को हल करने का प्रयत्न करते हैं। इस विधि में ज्ञात से अज्ञात की ओर तथा अनुमान से निष्कर्ष की ओर पहुँचा जाता है। इसके द्वारा केवल तथ्यों की सत्यता की जाँच करने हेतु, खोजे गये तथ्यों को ही प्रस्तुत किया जाता है। संश्लेषण विधि द्वारा गणित के विषय वस्तु एवं संक्रियाओं की समझ सहज रूप में आ जाती है। इस विधि द्वारा किए गए हल छोटे, क्रमबद्धता लिए हुए एवं सरल रूप में होते हैं।
वास्तव में संश्लेषण विधि का कार्य, विश्लेषण विधि के पश्चात् ही होता है।
संश्लेषण विधि के गुण—
(1) यह एक मनोवैज्ञानिक विधि है।
(2) मंद बुद्धि छात्रों के लिए यह विधि उपयोगी है परन्तु प्रतिभाशाली छात्रों के लिए अनुपयोगी है।
(3) यह शिक्षण की एक सरल विधि है।
(4) रेखागणित में साध्यों के हल के लिए विशेष उपयोगी है।
संश्लेषण विधि के दोष—
(1) संश्लेषण विधि में छात्र स्वयं अपने प्रयास से ज्ञान प्राप्त नहीं करते इस कारण ज्ञान मस्तिष्क में स्थायी नहीं रहता है।
(2) प्रत्येक छात्र के लिए यह कठिन है कि वह एक बड़ी समस्या के छोटे तत्त्वों को एक कर दें ।
(3) इस विधि में छात्रों को विचार, तर्क और निर्णय शक्ति का विकास पूर्णरूपेण नहीं हो पाता।
(4) यह विधि सिद्ध तो करती है परन्तु स्पष्ट नहीं कर पाती।
संश्लेषण विधि की सीमाएँ—
(1) छात्रों की गणितीय संक्रियाएँ क्यों व कैसे की गई की जानकारी नहीं हो पाती।
(2) बालकों में रटने की प्रवृत्ति को बढ़ावा देती है।
(3) छात्रों के मानसिक क्रियाकलाप तर्क शक्ति के विकास सहायक नहीं है।
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