पाठ्य सहगामी क्रियाओं का अध्ययन क्षेत्र से क्या सम्बन्ध है? बताइये।
पाठ्य सहगामी क्रियाओं का अध्ययन क्षेत्र से क्या सम्बन्ध है? बताइये।
उत्तर— शिक्षा का मुख्य कार्य है बालक का सर्वांगीण विकास करना । सर्वांगीण विकास का प्रमुख माध्यम है विद्यालय; जहाँ बालक को विभिन्न विषयों का शिक्षण कराया जाता है। लेकिन कक्षा शिक्षण से बालक का सर्वांगीण विकास संभव नहीं है। कक्षा शिक्षण के द्वारा बालक के केवल मानसिक पक्ष का ही विकास संभव है। प्रत्येक बालक व्यक्तिगत रूप से दूसरे बालकों से भिन्न होता है अर्थात् प्रत्येक बालक की क्षमता, योग्यता, रुचि और भिन्न-भिन्न होती है। अतः विद्यालय में छात्रों को उनके व्यक्तिगत गुणों के आधार पर ही विकसित होने पर अवसर दिया जाता है। इसके लिए विद्यालय में कक्षा शिक्षण के अतिरिक्त अन्य क्रियाओं पाठ्य-सहगामी क्रियाओं का आयोजन किया जाता है जिसससे बालक का उसकी योग्यता क्षमता एवं रुचि के अनुसार सर्वागीण विकास संभव हो सके, अर्थात् मानसिक पक्ष के साथ-साथ उसके अन्य पक्षों-शारीरिक, नैतिक, सामाजिक, आध्यात्मिक आदि का भी समुचित रूप में विकास हो सके।
विद्यालय में चलने वाली पाठ्य सहगामी क्रियाओं निबन्ध, वाद-विवाद, भाषण, साहित्य सभा, विद्यालय पत्रिका, चित्र प्रतियोगिता, अन्त्याक्षरी, कवि सम्मेलन आदि में भाग लेने पर’ बालक की मानसिक शक्तियों-तर्क शक्ति, कल्पना शक्ति, स्मरण शक्ति, निर्णय शक्ति, चिन्तन शक्ति आदि का विकास होता है। बालक इन कार्यक्रमों में अपनी रुचि के अनुसार भाग लेकर अपनी मानसिक शक्तियों को विकसित करता है।
पाठ्यसहगामी क्रियाओं के माध्यम से बालक में सामाजिक गुणों का विकास संभव है। स्काउटिंग, एन.सी.सीरु, राष्ट्रीय सेवा योजना, रेडक्रास, खेल-कूदों आदि में भाग लेने से छात्रों में परस्पर प्रेम, सहयोग, सद्भावना, एकता आदि गुणों का विकास होता है जिससे वह समाज में रहने के योग्य बनता है।
विभिन्न विषयों की विषय-वस्तु के शिक्षण अधिगमन को रुचिकर, सरल एवं आकर्षक बनाने के लिए पाठ्य-सहगामी क्रियाओं की सहायता ली जा सकती है। वाद-विवाद निबन्ध कहानी खेल-कूद आदि के माध्यम से विषय वस्तु को सरल और रुचिपूर्ण बनाया जा सकता है। इतिहास, भूगोल आदि विषयों को रुचिपूर्ण एवं सरल बनाने की दृष्टि से विभिन्न स्थानों का शैक्षिक भ्रमण कर छात्रों को प्रत्यक्ष ज्ञान दिया जा सकता है। नागरिक शास्त्र विषय के अन्तर्गत चुनाव प्रक्रिया को समझाने की दृष्टि से विद्यालय में छात्र सासंद आदि के चुनाव करवाकर प्रत्यक्ष एवं व्यवहारिक शिक्षण दिया जा सकता है।
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