बल तथा गति के नियम (Force and Laws of Motion)
बल तथा गति के नियम (Force and Laws of Motion)
बल तथा गति के नियम (Force and Laws of Motion)
बल (Force)
वह बाह्य कारक ( धक्का / खिंचाव) जो किसी पिण्ड के रूप व आकार या स्थिति में परिवर्तन कर सकता है या किसी पिण्ड की विरामावस्था या एकसमान गति की अवस्था में परिवर्तन कर सकता है या परिवर्तन करने की प्रवृत्ति रखता है, बल कहलाता है। दैनिक जीवन में बलों का उपयोग वस्तुओं को एक स्थान से उठाकर दूसरे स्थान तक ले जाने, खींचने, धकेलने, मोड़ने तथा दबाने में किया जाता है।
बल के द्वारा निम्नलिखित परिवर्तन हो सकते हैं
(i) बल रुकी हुई वस्तु को गति में ला देता है।
(ii) बल विराम या गति की अवस्था में परिवर्तन कर सकता है।
(iii) बल गतिशील वस्तु को रोक सकता है।
(iv) बल गतिमान वस्तु की गति धीमी या तेज कर देता है।
(v) बल वस्तु के रूप व आकार में परिवर्तन कर देता है।
(vi) बल वस्तु की गति की दिशा भी बदल देता है।
बल एक सदिश राशि है। इसका SI मात्रक न्यूटन तथा CGS मात्रक डाइन होता है।
अतः 1 न्यूटन = 1 किग्रा-मी / से2
1 न्यूटन = 105 डाइन
उदाहरण बल के द्वारा खेल के मैदान में स्थिर रखी फुटबॉल को किक मारकर गतिशील बनाया जा सकता है, एक बक्से को फर्श से उठाया जा सकता है, रबर बैंड को खींचा जा सकता है, आदि ।
प्रकृति में उपस्थित मूलभूत बल (Basic Forces in Nature)
मुख्यतः प्रकृति में चार प्रकार के मूलभूत बल उपस्थित होते हैं
(i) गुरुत्वाकर्षण बल (Gravitational Forces) प्रत्येक कण दूसरे कण को स्वयं के द्रव्यमान के कारण आकर्षित करते हैं। इस प्रकार दो कणों के बीच लगे आकर्षण बल को गुरुत्वाकर्षण बल कहते हैं। यह सभी मौजूदा बलों के बीच सबसे कमजोर बल है। यह सभी हल्की और छोटी वस्तुओं के लिए नगण्य होता है, परन्तु यह सभी खगोलीय पिण्डों के लिए महत्वपूर्ण होता है।
गुरुत्वाकर्षण बल दो वस्तुओं के बीच की दूरी पर भी निर्भर करता है।
(ii) दुर्बल नाभिकीय बल (Weak Nuclear Forces) ये बल, रेडियोसक्रियता के दौरान निकलने वाले B+ -कण के उत्सर्जन के फलस्वरूप अस्तित्व में आता है।
यह लघु जीवनकाल वाले प्राथमिक कणों के बीच लगने वाला बल है। दुर्बल नाभिकीय बल, गुरुत्वाकर्षण बल से 1025 गुना अधिक शक्तिशाली होता है।
(iii) विद्युतचुम्बकीय बल (Electromagnetic Forces) विद्युतीय तथा चुम्बकीय बलों को सम्मिलित रूप से विद्युतचुम्बकीय बल कहते हैं। दो स्थिर बिन्दु आवेशों के बीच लगने वाले बल को स्थिरवैद्युत बल कहते हैं। इस प्रकार के बल में सजातीय (like) आवेश एक-दूसरे को विकर्षित करते हैं तथा विजातीय (unlike) आवेश एक-दूसरे को आकर्षित करते हैं। यह कूलॉम का नियम कहलाता है। इलेक्ट्रॉन तथा प्रोटॉन सजातीय तथा आवेशित कण होते हैं। जबकि चुम्बकीय क्षेत्र में गतिशील आवेशित कण पर लगने वाला बल चुम्बकीय बल है। विद्युतचुम्बकीय बल, गुरुत्वाकर्षण बल से अधिक शक्तिशाली होता है तथा यह परमाणु और आणविक पैमाने पर होने वाली सभी घटनाओं में श्रेष्ठ होता है।
(iv) प्रबल नाभिकीय बल (Strong Nuclear Forces) यह नाभिक के अन्दर दो प्रोटॉन या प्रोटॉन एवं न्यूट्रॉन के बीच लगने वाला आकर्षण बल है। यह बल अतिलघु परास बल है तथा इसका परास 10-15 मी की कोटि का होता है। यह बल कण के आवेश पर निर्भर नहीं करता है। बल का आवेग, सन्तुलित, असन्तुलित बल, घर्षण बल, अभिकेन्द्र बल तथा अपकेन्द्र बल प्रबल बल के अन्तर्गत आते हैं।
यह बल प्रकृति में उपस्थित सभी बलों में से सबसे शक्तिशाली बल है। यह गुरुत्वाकर्षण बल से 1038 गुना, स्थिर वैद्युत बल से 102 गुना तथा दुर्बल नाभिकीय बल से 1013 गुना अधिक शक्तिशाली बल हैं।
बलों के प्रकार (Types of Forces)
बल दो प्रकार के होते हैं
(i) सन्तुलित बल (Balanced Force) जब किसी वस्तु पर एक साथ कई बल कार्य कर रहे हों और उनका परिणामी बल शून्य हो, तो उन बलों को सन्तुलित बल कहते हैं। सन्तुलित बलों से वस्तु की आकृति बदल जाती है। उदाहरण यदि एक गुटके को दोनों तरफ समान बल लगाकर परस्पर विपरीत दिशा में खींचा जाता है, तब गुटके में कोई गति नहीं होती है। अतः गुटके पर लगे बल सन्तुलित बल कहलाते हैं।
(ii) असन्तुलित बल (Unbalanced Force) जब किसी वस्तु पर लगे अनेक बलों का परिणामी बल शून्य न हो, तो उन बलों को असन्तुलित बल कहते हैं। उदाहरण रस्साकशी में यदि एक टीम दूसरी टीम से अधिक शक्तिशाली है, तो वह रस्से तथा कमजोर टीम दोनों को अपनी ओर खींच लेती है। इस दशा में रस्से पर लगने वाला बल असन्तुलित बल है।
◆ यदि एक वस्तु एकसमान वेग से चल रही है, तब वस्तु पर लगने वाला बल सन्तुलित होगा, जबकि वस्तु पर कोई बाह्य बल न लगा हो।
◆ यदि किसी वस्तु पर असन्तुलित बल लगा हो, तो वह वस्तु के वेग तथा गति की दिशा में परिवर्तन कर देता है। इस प्रकार वस्तु को त्वरित गति के लिए असन्तुलित बल की आवश्यकता होती है।
सम्पर्क बल तथा क्षेत्र बल (Contact Forces and Field Forces)
सम्पर्क में आई दो वस्तुएँ, एक दूसरे पर समान तथा विपरीत दिशा में बल लगाती हैं, ऐसे बलों को सम्पर्क बल कहते हैं। जबकि ऐसे बल, जिन्हें वस्तुओं के बीच किसी प्रकार के सम्पर्क की आवश्यकता नहीं होती है, उन्हें क्षेत्र बल कहते हैं। गुरुत्वाकर्षण बल, वैद्युत स्थैतिक बल, चुम्बकीय बल इत्यादि क्षेत्र बल के उदाहरण हैं।
जड़त्व (Inertia)
किसी वस्तु का वह गुण जिसके कारण वह अपनी विराम अवस्था अथवा एकसमान गति की अवस्था में परिवर्तन का विरोध करती है, जड़त्व कहलाता है।
जड़त्व तीन प्रकार का होता है
(i) विराम का जड़त्व (Inertia of Rest) वस्तु का वह गुण जिसके कारण वह अपनी विराम अवस्था में होने वाले परिवर्तन का विरोध करती है, विराम का जड़त्व कहलाता है।
(ii) गति का जड़त्व (Inertia of Motion) वस्तु का वह गुण जिसके कारण वह अपनी एकसमान गति में होने वाले परिवर्तन का विरोध करती है, गति का जड़त्व कहलाता है।
(iii) दिशा का जड़त्व (Inertia of Direction) वस्तु का वह गुण जिसके कारण वह अपनी गति की दिशा में होने वाले परिवर्तन का विरोध करती है, दिशा का जड़त्व कहलाता है।
न्यूटन के गति के नियम (Newton’s Laws of Motion)
सबसे पहले महान वैज्ञानिक सर इसैक न्यूटन (Isaac Newton) ने 1687 ई० में गतिविषयक तीन नियमों का प्रतिपादन अपनी पुस्तक, ‘प्रिंसिपिया’ (Principia) में किया था। न्यूटन के गति विषयक तीन नियम निम्नवत् हैं
न्यूटन का गति विषयक प्रथम नियम (Newton’s First Law of Motion)
इस नियम के अनुसार, यदि कोई वस्तु विरामावस्था में है, तो वह विराम की अवस्था में ही रहेगी व यदि कोई वस्तु गति की अवस्था में है, तो वह गति की अवस्था में ही रहेगी जब तक कि उस पर कोई बाह्य बल न लगाया जाए। इस नियम को जड़त्व का नियम अथवा गैलीलियों का नियम भी कहते हैं ।
न्यूटन के गति विषयक प्रथम नियम पर आधारित कुछ व्यावहारिक उदाहरण (Some Common Phenomena based on Newton’s First Law of Motion)
◆ पेड़ को हिलाने पर उसके फल टूटकर गिरने लगते हैं। इसका कारण यह है कि पेड़ को हिलाने से उसकी टहनियाँ तो गति में आ जाती हैं परन्तु उस पर लटके फल विराम जड़त्व के कारण विरामावस्था में बने रहते हैं। अतः फल टहनियों से अलग हो जाते हैं तथा गुरुत्वाकर्षण के कारण नीचे जमीन पर गिर जाते हैं।
◆ यदि मेज के कपड़े के ऊपर बर्तन रखे हैं और यदि हम मेज के कपड़े को अचानक खींचते हैं, तो बर्तन तो मेज पर रह जाते हैं तथा कपड़ा मेज से अलग हो जाता है। इसका कारण यह है कि कपड़े पर रखे बर्तन जड़त्व के कारण विराम में बने रहते हैं। अतः मेज के कपड़े पर रखे बर्तन कपड़े को अचानक खींचने पर नहीं गिरते हैं।
◆ गोली मारने से काँच में गोल छेद हो जाता है, परन्तु पत्थर मारने पर काँच टुकड़े-टुकड़े हो जाता है, क्योंकि जब गोली अत्यधिक तीव्र वेग से काँच से टकराती है, तो काँच का केवल वही भाग गति में आ पाता है जिसके सम्पर्क में गोली आती है तथा शेष भाग विराम जड़त्व के कारण अपने स्थान पर ही रह जाता है। अतः इससे पहले कि काँच का शेष भाग गति में जाए, गोली एक साफ छेद बनाती हुई निकल जाती है। इसके विपरीत यदि एक पत्थर का टुकड़ा काँच पर मारा जाता है तो उसका वेग इतना अधिक नहीं होता कि काँच का केवल वही भाग गति में जाए जो पत्थर के सम्पर्क में आता है, वरन् उसके आस-पास का काँच भी गतिमान हो जाता है जिससे काँच के टुकड़े-टुकड़े हो जाते हैं।
◆ गतिमान ट्रेन से कूदने वाला यात्री आगे की ओर गिर पड़ता है। गतिमान ट्रेन से कूदने पर यात्री के पैर पृथ्वी को छूते ही विरामावस्था में आ जाते हैं, परन्तु शरीर का ऊपरी भाग उसी वेग से चलते रहने का प्रयत्न करता है। अतः वह ट्रेन के चलने की दिशा में ही गिर पड़ता है। इसलिए गतिमान ट्रेन से उतरने पर यात्री को थोड़ी दूर गाड़ी के साथ-साथ दौड़ना चाहिए। ऐसा करके यात्री अपनी माँसपेशियों द्वारा उपयुक्त बल लगाकर पूरे शरीर को एक साथ रोक लेता है।
रेखीय संवेग (Linear Momentum)
किसी वस्तु के द्रव्यमान तथा रेखीय वेग के गुणनफल को उस वस्तु का संवेग कहते हैं। यह एक सदिश राशि है तथा इसका मात्रक किग्रा-मी / से होता है। इसे p से प्रदर्शित करते हैं। यदि एक वस्तु का द्रव्यमान (m) तथा वेग u है, तब
संवेग p = द्रव्यमान x वेग : = mu
रेखीय संवेग संरक्षण का सिद्धान्त (Law of Conservation of Linear Momentum)
संवेग संरक्षण के नियम के अनुसार, यदि दो या अधिक पिण्डों के निकाय पर कोई बाह्य बल कार्य न करे तो निकाय का रेखीय संवेग नियत रहता है। इससे स्पष्ट है कि एक पिण्ड में जितना संवेग परिवर्तन होता है, दूसरे में भी उतना ही संवेग-परिवर्तन विपरीत दिशा में हो जाता है। इसे ही रेखीय संवेग संरक्षण का सिद्धान्त कहते हैं।
रेखीय संवेग संरक्षण पर आधारित कुछ व्यावहारिक उदाहरण (Some Common Practical Examples based on Law of Conservation of Linear Momentum)
◆ नाव से किनारे पर कूदना जब हम नाव से नदी के किनारे पर कूदते हैं, तो नाव को अपने पैरों से पीछे की ओर दबाते हैं। इससे नाव झटके से पीछे की ओर हट जाती है तथा उसकी प्रतिक्रिया हमें आगे की ओर फेंक देती है। इसी प्रकार, ऊँची कूद लेने से पहले खिलाड़ी अपने पैरों से भूमि को नीचे की ओर दबाता है और भूमि उसे ऊपर की ओर उछाल देती है।
◆ रॉकेट का प्रक्षेपण रॉकेट का प्रक्षेपण रेखीय संवेग संरक्षण के सिद्धान्त पर आधारित है। रॉकेट में एक दहन कोष्ठ होता है, यह नली के द्वारा एक-दूसरे कोष्ठ से भी सम्बन्धित होता है जिसमें ईंधन भरा रहता है। ईंधन ठोस अथवा द्रव किसी भी प्रकार का हो सकता है।
जब दहन कोष्ठ में ईंधन तथा किसी ऑक्सीकारक पदार्थ को मिलाकर विस्फोट कराया जाता है, तो इससे उत्पन्न ऊष्मा के कारण दहन कोष्ठ में दाब बहुत ऊँचा हो जाता है तथा कोष्ठ से गर्म गैसें जेट के रूप में बहुत तीव्र वेग से बाहर निकलती हैं। ये गैसें रॉकेट पर प्रतिक्रिया बल आरोपित करती हैं, अतः रॉकेट त्वरित गति से आगे की ओर बढ़ता है। जेट हवाई जहाज के इंजन भी संवेग संरक्षण सिद्धान्त पर ही कार्य करते हैं।
न्यूटन के गति विषयक द्वितीय नियम के कुछ व्यावहारिक उदाहरण (Some Common Phenomena based on Newton’s Second Law of Motion)
◆ टेबिल टेनिस के खेल में जब एक खिलाड़ी गेंद को मारता (हिट) करता है, तो उसे चोट का अनुभव नहीं होता तथा दूसरे शब्दों में, जब तेज गति से चलती क्रिकेट गेंद दर्शक को लगती है तो उसे चोट लगती है, क्योंकि क्रिकेट की गेंद का वेग अधिक होने के कारण उसका त्वरण भी अधिक होता है।
◆ ऊँची के खेल में जब एथिलीट गद्दों से बने बिस्तर या रेत के बिस्तर पर गिरता है, तब एथिलीट के कूटने के बाद उसे गिरने में लगे समय के परिवर्तन में भी वृद्धि हो जाती है। अतः उसके संवेग परिवर्तन की दर घट जाती है जिससे उसे चोट कम लगती है।
◆ एक क्रिकेट खिलाड़ी गेंद को कैच करते समय अपना हाथ पीछे खींचता है. क्योंकि जब खिलाड़ी गेंद को रोक लेता है तो गेंद का संवेग शून्य हो जाता है। संवेग-परिवर्तन के लिए खिलाड़ी गेंद को जितने अधिक समय में रोकेगा. आवेग देने के लिए उसे उतना ही कम बल लगाना पड़ेगा। इसलिए वह गेंद को अँगुलियों के बीच में आते ही अपना हाथ पीछे की ओर खींचता है जिससे कि वह गेंद पर अधिक समय तक बल लगा सके। यदि वह अपने हाथ को पीछे न खींचे तो गेंद हथेली से टकराकर तुरन्त ही ठहर जाएगी अर्थात् उसका संवेग यकायक शून्य हो जाएगा। अतः खिलाड़ी को बहुत अधिक बल लगाना पड़ेगा, जिससे उसके हाथ में चोट आने का भय रहेगा।
न्यूटन का गति विषयक तृतीय नियम (Newton’s Third Law of Motion)
दो वस्तुओं की पारस्परिक क्रिया में एक वस्तु जितना बल दूसरी वस्तु पर लगाती है, तो दूसरी वस्तु भी विपरीत दिशा में उतना ही बल पहली वस्तु पर लगाती है अर्थात् प्रत्येक क्रिया के बराबर परन्तु विपरीत दिशा में प्रतिक्रिया होती है, इस नियम को प्रतिक्रिया का बल नियम’ भी कहते हैं।
न्यूटन के गति विषयक तृतीय नियम पर आधारित कुछ व्यावहारिक उदाहरण (Some common Phenomena based on Newton’s Third Law of Motion)
◆ जब हम ठोस भूमि पर चलते हैं तो हम पैरों के द्वारा भूमि को पीछे की ओर धकेलते हैं तथा भूमि भी प्रतिक्रिया के रूप में हमारे पैरों पर आगे की ओर उतना ही बल लगाती है, जिसके कारण हम आगे की ओर बढ़ते हैं।
◆ जब एक तैराक अपने हाथों द्वारा पानी को पीछे की ओर धकेलता है, तब पानी भी तैराक को उतने ही बल से आगे की ओर धकेलता है, जिससे तैराक पानी में आसानी से तैरने लगता है।
◆ रेत पर चलना कठिन होता है, क्योंकि जब पैरों द्वारा रेत पर बल लगाया जाता है, तो रेत पीछे की ओर विस्थापित हो जाता है, जिससे वह प्रतिक्रिया स्वरूप उतना ही बल प्रदान नहीं कर पाता है।
आवेग (Impulse)
यदि कोई बल किसी वस्तु पर कम समय तक कार्यरत् रहे, तो बल और समय-अन्तराल के गुणनफल को उस वस्तु का आवेग कहते हैं या किसी वस्तु के संवेग में उत्पन्न परिवर्तन को आवेग कहा जाता है। आवेग को सूत्र द्वारा इस प्रकार व्यक्त कर सकते हैं
(आवेग = संवेग-परिवर्तन = बल x समय-अन्तराल)
यह एक सदिश राशि है। इसका SI मात्रक न्यूटन-सेकण्ड या किग्रा-मी / से होता है।
आवेग पर आधारित कुछ व्यावहारिक उदाहरण (Some Common Phenomena based on Impulse)
◆ चीनी मिट्टी के बर्तनों को कागज या घास-फूस के टुकड़ों में पैक (pack) करते हैं, क्योंकि गिरने की स्थिति में, घास-फूस या कागज के कारण आवेग, चीनी मिट्टी के बर्तनों तक पहुँचने में अधिक समय लेता है। जिससे बर्तनों पर लगने वाला बल कम हो जाता है, अतः इनके टूटने की सम्भावना कम हो जाती है।
◆ रेलगाड़ी के डिब्बों की शंटिंग (shunting) के दौरान गंभीर झटकों से बचाने के लिए प्रतिरोधों (buffers) का उपयोग किया जाता है, क्योंकि प्रतिरोधी की उपस्थिति के कारण समय के प्रभाव (impact) में वृद्धि हो जाती है। जिससे झटकों के दौरान बल कम हो जाता है, अतः नुकसान में कमी हो जाती है।
◆ एक तीव्र धावक को सुझाव दिया जाता है कि वह रेस खत्म करने के बाद अपनी गति को धीरे-धीरे कम करे जिससे उसके समय में वृद्धि होगी तथा उसके द्वारा लगाया गया बल कम होता जायेगा।
लिफ्ट में व्यक्ति का आभासी भार (Apparent Weight of Body in a Lift)
माना m द्रव्यमान का एक व्यक्ति लिफ्ट में है, तब उसका वास्तविक भार mg होता है। जब यह भार (बल) लिफ्ट पर नीचे की दिशा में कार्य करता है, जिसके फलस्वरूप लिफ्ट प्रतिक्रिया बल (ऊपर की ओर) R लगाती है। अतः सम्पर्क सतह द्वारा व्यक्ति पर लगाई गई प्रतिक्रिया को वस्तु का आभासी भार कहते हैं। किसी लिफ्ट में व्यक्ति के भार में परिवर्तन निम्नलिखित स्थितियों में होता है
स्थिति I जब लिफ्ट विराम अवस्था में है।
जब लिफ्ट या एलीवेटर (elevator) विराम अवस्था में है, तब व्यक्ति का आभासी भार व्यक्ति के वास्तविक भार के बराबर होता है।
स्थिति II जब लिफ्ट एकसमान वेग से ऊपर या नीचे जाती है, तो इस दशा में व्यक्ति का आभासी भार इसके वास्तविक भार के बराबर होता है, अर्थात् व्यक्ति को अपने भार में कोई परिवर्तन प्रतीत नहीं होता है।
स्थिति III जब लिफ्ट त्वरण से ऊपर जाती है, तो लिफ्ट में स्थित व्यक्ति का भार बढ़ा हुआ प्रतीत होता है अर्थात् व्यक्ति का आभासी भार इसके (व्यक्ति) के वास्तविक भार से अधिक होता है।
स्थिति IV जब लिफ्ट त्वरण से नीचे आती है, तो इस दशा में व्यक्ति का आभासी भार घटा प्रतीत होता है अर्थात् व्यक्ति का आभासी भार व्यक्ति के वास्तविक भार से कम होता है।
स्थिति V यदि नीचे आते समय लिफ्ट की डोरी टूट जाए, तो वह मुक्त वस्तु की भाँति नीचे गिरेगी, तब व्यक्ति को आभासी भार शून्य प्रतीत होगा अर्थात् व्यक्ति को भारहीनता का अनुभव होगा।
स्थिति VI यदि लिफ्ट के नीचे उतरते समय लिफ्ट का त्वरण गुरुत्वीय त्वरण से अधिक हो, तो लिफ्ट में खड़ा व्यक्ति लिफ्ट के फर्श से उठकर उसकी छत पर जा लगेगा, इसलिए आभासी बल व्यक्ति पर ऊपर की ओर लगेगा, जिससे वह उठकर छत से जा लगेगा।
घर्षण (Friction)
कोई वस्तु जब किसी दूसरी वस्तु की सतह पर फिसलती या लुढ़कती है अथवा ऐसा करने का प्रयास करती है, तो उनके मध्य होने वाली आपेक्षिक गति का विरोध करने वाले बल को घर्षण कहते हैं। इसकी दिशा सदैव वस्तु की आपेक्षिक गति की दिशा के विपरीत होती है। वास्तव में, जब एक वस्तु का तल किसी अन्य वस्तु के तल पर फिसलता है, तो प्रत्येक वस्तु दूसरी वस्तु पर घर्षण बल लगाती है। जोकि वस्तुओं के सम्पर्क-तलों के समान्तर होता है जैसे- धरातल पर लुढ़कती गेंद
सीमान्त घर्षण बल की दिशा सदैव उस दिशा के विपरीत होती है, जिसमें वस्तु में गति करने की प्रवृत्ति होती है। यदि वस्तुओं के मध्य अभिलम्ब प्रतिक्रिया अपरिवर्तित रहे तो सीमान्त घर्षण सम्पर्क तल के क्षेत्रफल पर निर्भर नहीं करता है। सीमान्त घर्षण बल, सम्पर्क तलों की प्रकृति अर्थात् उनके खुरदरेपन तथा पदार्थ पर निर्भर करता है।
घर्षण एक आवश्यक दोष है (Friction is a Necessary Evil)
घर्षण को आवश्यक बुराई कहा जाता है। इसकी उपस्थिति भी आवश्यक है क्योंकि हम इसके बिना नहीं चल सकते हैं तथा किसी वस्तु को पकड़ नहीं सकते हैं। यह एक बुराई है, क्योंकि इसमें ऊर्जा की अनावश्यक क्षति होती है।
घर्षण की आवश्यकता (Necessity of Friction)
(i) पैरों तथा भूमि के बीच घर्षण न होने पर हम चल नहीं सकते हैं। बर्फ पर अथवा चिकनी सतह पर घर्षण कम होने के कारण चलना बहुत कठिन होता है।
(ii) भीगी अथवा कीचड़ वाली अथवा तेलीय सड़क (wet or muddy or oily road) पर घर्षण कम हो जाने के कारण साइकिल तथा कार आदि के फिसलने की सम्भावना अधिक होती है। इसलिए घर्षण बढ़ाने के लिए इन वाहनों के टायरों को खुरदरा (rough) बनाते हैं।
(iii) घर्षण की अनुपस्थिति में वाहनों के ब्रेक प्रभावकारी नहीं रहते हैं।
(iv) घर्षण की अनुपस्थिति में मशीनें कार्य नहीं करती हैं।
(v) घर्षण की उपस्थिति के कारण ही ब्लैक बोर्ड या पेपर पर लिखना सम्भव है।
(vi) ईंटों को एक-दूसरे के ऊपर रखकर दीवार बनाना भी घर्षण के कारण ही सम्भव है।
(vii) घर्षण के कारण वस्तु को आवेशित भी किया जा सकता है।
घर्षण, एक दोष (Friction is an Evil)
(i) घर्षण के कारण ऊर्जा का एक बड़ा भाग व्यर्थ हो जाता है, इसलिए मशीन की दक्षता (efficiency) कम हो जाती है।
(ii) अत्यधिक घर्षण के कारण मशीन में टूट-फूट (wear and tear) होती है।
(iii) घर्षण के कारण मशीन के गतिशील भागों में ऊष्मा उत्पन्न होती है तथा ये भाग गर्म हो जाते हैं।
(iv) घर्षण के कारण मशीनों के आवेशित हो जाने के कारण दुर्घटना की सम्भावना बढ़ जाती है।
घर्षण को कम करने की विधियाँ (Methods to Reduce Friction)
घर्षण हानिकारक होने के कारण एक दोष है, अतः निम्न वर्णित विधियों द्वारा इसको कम किया जाता है
(i) पॉलिश द्वारा (By polishing) किसी वस्तु की सतह पर एक विशेष पदार्थ की पतली परत (fine layer) लगाने को पॉलिश करना कहते हैं। यह पदार्थ सतह के प्रक्षेपणों के बीच के स्थान में भर जाता है तथा सतह चिकनी हो जाती है और घर्षण कम हो जाता है। किसी सतह को रगड़ कर (इसके चिकना होने पर) भी घर्षण कम किया जा सकता है।
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