अर्द्धचालक (Semiconductors)

अर्द्धचालक (Semiconductors)

अर्द्धचालक (Semiconductors)

विद्युतिकी, इन्जीनियरिंग तथा प्रायोगिक भौतिकी का क्षेत्र है। इनका उपयोग विद्युत परिपथ तथा उपकरणों की आकृति बनाने में किया जाता है। विद्युत परिपथ में किया गया कार्य धातु में इलेक्ट्रॉन के प्रवाह पर निर्भर करता है। विद्युत प्रकृति के आधार पर धातु को तीन भागों में वर्गीकृत किया जाता है
(i) चालक (Conductor) वे पदार्थ जिनमें विद्युत आवेश आसानी से प्रवाहित हो सके तथा जिनमें मुक्त इलेक्ट्रॉन बड़ी संख्या में उपस्थित रहते हों, चालक कहलाते हैं। सभी प्रकार की धातुएँ विद्युत की अच्छी चालक होती हैं तथा मुक्त इलेक्ट्रॉन विद्युत चालक भी कहलाते हैं।
(ii) अचालक (Insulator) वे पदार्थ जिनमें आवेश कठिनता से प्रवाहित हो तथा जिनमें मुक्त इलेक्ट्रॉन नहीं होते अथवा कम संख्या में होते हैं, अचालक कहलाते हैं। इन पदार्थों की बाहरी कक्षा में इलेक्ट्रॉन दृढ़तापूर्वक नाभिक से बँधे होते हैं। इसलिए विद्युत क्षेत्र लगाने पर इनमें विद्युत आवेश का प्रवाह कठिनता से होता है। लकड़ी, प्लास्टिक, ऐबोनाइट, रबर, काँच, अभ्रक, आदि अचालक होते हैं।
(iii) अर्द्धचालक (Semiconductor) कुछ ठोस पदार्थ ऐसे भी होते हैं जिनकी विद्युत चालकता, चालकों से कम परन्तु अचालकों से अधिक होती है, ये पदार्थ अर्द्धचालक कहलाते हैं। इस प्रकार के पदार्थ में सामान्य ताप पर मुक्त इलेक्ट्रॉन नहीं होते हैं, इसलिए इस स्थिति में अचालक की भाँति व्यवहार करते हैं। इसमें धारा का प्रवाह कोटर या इलेक्ट्रॉन के माध्यम से होता है, परन्तु जब अर्द्धचालक के ताप में वृद्धि की जाती है, तब इसमें मुक्त इलेक्ट्रॉन होते हैं, तथा ये एक चालक की भाँति व्यवहार करते हैं। सिलिकॉन, जर्मेनियम, कार्बन, आर्सेनिक, आदि अर्द्धचालक होते हैं।
अर्द्धचालकों के प्रकार (Types of Semiconductors)
अर्द्धचालक निम्न दो प्रकार के होते हैं
(i) निज अर्द्धचालक (Intrinsic Semiconductor)
एक शुद्ध अर्द्धचालक, जिसमें कोई अपद्रव्य न मिला हो, निज अर्द्धचालक कहलाता है। इस प्रकार, शुद्ध जर्मेनियम तथा सिलिकॉन अपनी प्राकृतिक अवस्था में निज अर्द्धचालक हैं।
(ii) बाह्य अर्द्धचालक ( Extrinsic Semiconductor)
निज (शुद्ध) अर्द्धचालकों की विद्युत चालकता अति अल्प होती है, परन्तु यदि किसी ऐसे पदार्थ की बहुत थोड़ी-सी मात्रा को, जिसकी संयोजकता (valency) 5 अथवा 3 हो, शुद्ध जर्मेनियम (अथवा सिलिकॉन) क्रिस्टल में अपद्रव्य (impurity) के रूप में मिश्रित कर दें तो क्रिस्टल की चालकता काफी बढ़ जाती है। इस प्रकार के अशुद्ध अर्द्धचालकों को बाह्य अर्द्धचालक कहते हैं।
◆ किसी धातु के अर्द्धचालक में अपद्रव्य मिलाने की क्रिया को डोपिंग कहते हैं। इस क्रिया में अर्द्धचालक की चालकता बढ़ जाती है। शुद्ध या निज अर्द्धचालक को अपमिश्रण (dopants) कहते हैं।
बाह्य अर्द्धचालकों के प्रकार (Types of Extunsic Semiconductors) 
मिश्रित अपदब्धी (impurities) के आधार पर, बाह्य अर्द्धचालकों को दो भागों में बाँटा गया है
(i) n- प्रकार के अर्द्धचालक (n-Type Semiconductors) इस प्रकार के अर्द्धचालकों में विद्युत धारा का प्रवाह इलेक्ट्रॉनों के कारण होता है। जब शुद्ध अर्द्धचालक में पंचसंयोजी अपद्रव्य (जैसे आर्मेनिक, सिलिकॉन), मित्रा दिया जाता है, तो इस प्रकार के अर्द्धचालक प्राप्त होते हैं। इसमें आवेश वाहक (मुक्त इलेक्ट्रॉन) ऋणात्मक होते हैं। अतः अपद्रव्य परमाणुओं को दाता (donor) परमाणु कहते हैं क्योंकि ये क्रिस्टल को चालक इलेक्ट्रान प्रदान करते हैं।
(ii) p-प्रकार के अर्द्धचालक (p-Type Semiconductors) इस प्रकार के अर्द्धचालकों में विद्युत का प्रवाह कोटर (hole) के कारण होता है। शुद्ध अर्द्धचालक (जर्मेनियम) में त्रिसंयोजी अपद्रव्य (जैसे एलुमिनियम, वेरियम) मिलाने से ऐसे अर्द्धचालक प्राप्त होते हैं। इसमें आवेश वाहक (कोटर) धनात्मक होते हैं। अतः अपद्रव्य परमाणुओं को ग्राही (acceptor) परमाणु कहते हैं। p-टाइप अर्द्धचालक में अपद्रव्य परमाणु के एक ओर जो रिक्त स्थान होता है, वह कोटर (hole) कहलाता है।
p-n सन्धि डायोड (p-n Junction Diode)
जब एक p-टाइप अर्द्धचालक क्रिस्टल को एक विशेष विधि द्वारा n-टाइप अर्द्धचालक क्रिस्टल के साथ जोड़ा जाता है, तो इस संयोजन को जहाँ पर क्रिस्टल जुड़ते हैं उसे p-n. सन्धि कहते हैं | p-टाइप क्षेत्र में कोटर बहुसंख्यक आवेश वाहक होते हैं तथा इतने ही स्थिर ऋणात्मक ग्राही आयन होते हैं। जबकि 12 टाइप क्षेत्र में इलेक्ट्रॉन बहुसंख्यक आवेश वाहक होते हैं तथा इतने ही स्थिर धनात्मक दाता आयन होते हैं। इस प्रकार दोनों क्षेत्र विद्युत उदासीन होते हैं।
p-n सन्धि से सम्बन्धित पद (Terms Related to p-n. Junction)
(i) अवक्षय पर्त (Depletion Layer) p-n सन्धि के दोनों ओर की उस पर्त को जिसमें आवेश वाहक नहीं होते हैं. अवक्षय पर्त कहलाती है। इसकी मोटाई 10-7 मी कोटि की होती है।
(ii) विभव प्राचीर (Potential Barrier) p-n सन्धि के दोनों ओर बनी अवक्षय परत के सिरों के बीच उत्पन्न विभवान्तर को विभव प्राचीर या सम्पर्क विभव कहते हैं। इसका मान 0.1 से लेकर 0.5 वोल्ट तक होता है। इसका मान सन्धि के ताप पर निर्भर करता है। इसका मान जर्मेनियम p-n सन्धि के लिए 0.3 वोल्ट तथा सिलिकॉन p-n सन्धि के लिए 0.7 वोल्ट होता है।
(iii) अग्र अभिनत (Forward Biasing) जब सन्धि डायोड के p-टाइप क्रिस्टल को बैटरी के धन सिरे से तथा n-टाइप क्रिस्टल को ऋण सिरे से जोड़ा जाता है, तो सन्धि अग्र अभिनत कही जाती है।
इसमें सन्धि डायोड का प्रतिरोध धारा प्रवाह के लिए कम होने के कारण अवक्षय परत की चौड़ाई घट जाती है।
(iv) उत्क्रम अभिनत (Reverse Biasing) जब सन्धि डायोड के p-टाइप क्रिस्टल को बैटरी के ऋण सिरे से तथा n-टाइप क्रिस्टल को धन सिरे से जोड़ते हैं, तो सन्धि उत्क्रम अभिनत कहलाती है। इस प्रकार, p-n सन्धि डायोड में बहुसंख्यक आवेश वाहकों की गति के कारण उच्च विद्युत धारा बहने लगती है।
इसमें सन्धि डायोड का धारा प्रवाह के लिए प्रतिरोध अधिक होने के कारण अवक्षय परत की चौड़ाई बढ़ जाती है।
◆ डायोड में दो प्रकार की धारा जैसे अग्रधारा (बहुसंख्यक आवेश वाहक के कारण) तथा पश्च धारा (अल्पसंख्यक आवेश के कारण) होती है।
सन्धि डायोड के कुछ प्रकार (Some Types of Junction Diode)
1. प्रकाश उत्सर्जक डायोड (Light Emitting Diode )
यह एक ऐसा अतिमिश्रित डायोड होता है, जोकि दृश्य एवं अदृश्य प्रकाश उत्सर्जित करता है। इन डायोडों में अलग-अलग अर्द्धचालक पदार्थ प्रयुक्त होते हैं, जिसके अनुसार ही ये विभिन्न रंग के प्रकाश उत्सर्जित करते हैं, जैसे गैलियम फॉस्फाइड (GaP), हरे रंग का, सिलिकॉन कार्बाइड (SiC), नीले रंग का, गैलियम आर्सेनाइड (GaAs), अवरक्त (अदृश्य) प्रकाश उत्सर्जित करते हैं।
इनका उपयोग कैलकुलेटर एवं कम्प्यूटर में अंक एवं शब्दों के प्रदर्शन में होता है। अवरक्त विकिरण का उत्सर्जन करने वाले प्रकाश उत्सर्जक डायोड का उपयोग TV, DVD, आदि के रिमोट कन्ट्रोल में होता है। इसका उपयोग दिष्टकारी में भी किया जाता है, जिसके द्वारा प्रत्यावर्ती धारा को दिष्ट धारा में बदला जाता है।
2. जेनर डायोड (Zener Diode) 
यह उच्च डोपिंग का p-n सन्धि डायोड है, इसे उच्च उत्क्रम अभिनत द्वारा खत्म नहीं किया जा सकता है। इसका उपयोग सदैव भंजक वोल्टेज क्षेत्र (breakdown voltage region) में उत्क्रम अभिनत तथा विद्युत परिपथों में वोल्टेज स्थिरिकरण (voltage stabiliser) के लिए होता है, क्योंकि अधिकांश इलेक्ट्रॉनिक युक्तियों (electronic devices) में स्थिर वोल्टेज की आवश्यकता होती है।
3. टनल डायोड (Tunnel Diode)
टनल डायोड p-n सन्धि डायोड होता है। इसे यान्त्रिक घटना में उत्पन्न विभव अवरोध के अतिक्रमण में प्रयोग किया जाता है। इसकी pn सन्धि भारी वर्निश वाले अर्द्धचालकों की बनी होती है। अतः भारी डोपिंग अर्द्धचालकों से p-n सन्धि को बनाया जाता है।
4. फोटो डायोड (Photo Diode)
यह प्रकाश विद्युत प्रभाव पर आधारित ऐसा डायोड होता है, जोकि प्रकाशीय संकेतों के संसूचन में प्रयुक्त होता है। जब फोटो डायोड की सन्धि पर प्रकाश डाला जाता है, तो परिपथ में प्रवाहित विद्युत धारा का मान उसी अनुपात में बढ़ता जाता है। इस प्रकार डायोड प्रकाश संसूचक की भाँति व्यवहार करता है। इस डायोड का उपयोग प्रकाश संचालित कुंजियों, कम्प्यूटर पंच कार्डों, आदि को पढ़ने में किया जाता है।
5. सोलर सेल (Solar Cell)
सन्धि डायोड बहुत पतले भागों p व n से मिलकर बना है। जब डायोड पर प्रकाश ऊर्जा को डाला जाता है तो यह प्रकाश को सन्धि तक पहुँचने से पहले इसे पूर्ण रूप से अवशोषित नहीं कर पाता है। इसका उपयोग प्रकाश ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलने में किया जाता है। अतः सन्धि डायोड को सोलर सेल कहते हैं। सोलर सेल का अत्यधिक अनुप्रयोग सोलर सेलों में किया जाता है। सोलर सेलों द्वारा दिन के समय वैटरी को आवेशित किया जाता है। जिन्हें रात्रि के समय उपयोग में लाया जाता है।
ट्रांजिस्टर (Transistor)
ट्रांजिस्टर p तथा n प्रकार के अर्द्धचालकों से बनी एक इलेक्ट्रॉनिक युक्ति है। इसमें तीन टर्मिनल अर्द्धचालक होते हैं तथा इसमें डोपिंग अर्द्धचालक की एक पतली पर्त को दो पतली पर्तों के बीच रखा जाता है। जब इसके दो सिरों के बीच दुर्बल प्रत्यावर्ती वोल्टेज सिग्नल लगाते हैं, तो ट्रांजिस्टर द्वारा सिग्नल की प्रकृति में कोई परिवर्तन किए बिना सिग्नल की प्रबलता बढ़ा दी जाती है।
ट्रांजिस्टर के प्रकार (Types of Transistor)
ट्रांजिस्टर दो प्रकार के होते हैं
(i) n-p-n ट्रांजिस्टर (n-p-n Transistor)
इसमें p-टाइप अर्द्धचालक की एक बहुत पतली परत को दो n – टाइप अर्द्धचालकों के छोटे-छोटे क्रिस्टलों के बीच दबाकर रखते हैं। इस पतली परत p को आधार (base) तथा इसके बाएँ व दाएँ क्रिस्टलों को क्रमशः उत्सर्जक (emitter) व संग्राहक (collector) कहते हैं।
(ii) p-n-p ट्रांजिस्टर (p-n-p Transistor)
इसमें n – टाइप अर्द्धचालक की एक पतली परत को p टाइप अर्द्धचालकों के छोटे-छोटे दो क्रिस्टलों के बीच दबाकर रखते हैं। पहली परत को आधार (base) बाईं ओर के गुटके को उत्सर्जक तथा दाईं ओर के गुटके को संग्राहक कहते हैं। इसका उपयोग प्रवर्द्धक (amplifier) के परिपथ में किया जाता है।
एकीकृत परिपथ (Integrated Circuits)
साधारणतः एकीकृत परिपथ में बहुचालकीय अर्द्धचालक उपकरणों को व्यवस्थित किया जाता है। यह सिलिकॉन की एक क्रिस्टल चिप है, जिसके अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल लगभग 1.5 मिमी2 होता है।
डिजिटल परिपथ (Digital Circuit)
जो इलेक्ट्रॉनिक परिपथ डिजिटल सिग्नलों को क्रियान्वित करने के लिए बनाये जाते हैं, डिजिटल परिपथ कहलाते हैं। लॉजिक गेट का उपयोग डिजिटल परिपथ में किया जाता है।
लॉजिक गेट (Logic Gate)
इलेक्ट्रॉनिक परिपथों में अर्द्धचालक युक्तियाँ; जैसे रिले (relay), डायोड, ट्रांजिस्टर, एकीकृत परिपथ (integrated circuit) (IC) को ON तथा OFF करने अर्थात् स्विच (switch) के रूप में प्रयुक्त होती हैं। इसे लॉजिक गेट या लॉजिक परिपथ कहते हैं। इसमें दो या दो से अधिक निवेशी सिग्नल तथा केवल एक निर्गत होता है। जिन्हें 0 या 1 से प्रदर्शित करते हैं।
इस प्रकार का डायोड या तो विद्युत का प्रवाह करता है, या नही करता। इस स्थिति में असत्य (0) प्राप्त होती है तथा इस प्रक्रिया को विद्युत परिपथ का लॉजिक गेट कहते हैं । इस लॉजिक गेट द्वारा दोनों में से एक अर्थात् सत्य या असत्य स्थिति प्राप्त होती है।
लेसर (LASER)
लेसर LASER का पूर्ण नाम Light Amplification by Stimulated Emission of Radiation है, जिसका अर्थ है—विकिरण के उद्दीप्ति उत्सर्जन द्वारा प्रकाश का प्रवर्धन । यह एक युक्ति है जिससे एक अति तीव्र (highly intense), एकवर्णी (monochromatic), समान्तर (collimated) तथा उच्च कला-सम्बद्ध (highly coherent) प्रकाश-पुंज प्राप्त किया जाता है। यह बिना किसी प्रसार के अधिक दूरी तय कर सकता है। फिलप ने 1987 में परमाणु ऊर्जा विभाग में लेसर से सम्बन्धित क्रियाएँ दी |
लेसर किरणें (LASER Rays ) 
ये किरणें एकवर्णी तथा स्पष्ट (monochromatic) होती हैं। अर्थात् इसमें केवल एक तरंगदैर्ध्य होती है। ये किरणें बिना अवशोषित हुए अत्यधिक दूरी तक जा सकती हैं। जल में इनका अवशोषण नहीं होता है। लेसर का प्रकाश बहुत ही तीव्र होता है। इनको इतना फोकस किया जा सकता है कि 1017 वाट/सेमी2 की तीव्रता उत्पन्न हो जाए।
ये किरणें क्षण भर में कठोर से कठोर धातु को पिघलाकर वाष्पीकृत कर देती हैं।
ये सामान्य प्रकाश से बहुत अलग होती हैं तथा ये प्रकाश की एक विशिष्ट तरंगदैर्ध्य से बनी होती है।
लेसर प्रेरित प्लाज्मा स्पेक्ट्रोस्कोपी (LASER Induced Plasma Spectroscopy:LIPS) 
यह तापमान गठन के आधार पर आधारित है। इसमें धातुएँ सभी ऊष्मा को अवशोषित कर लेती हैं तथा संगलित (fused) लेसर किरणों से प्रकाश देती हैं। उस स्थिति में, जब सभी धातुएँ प्लाज्मा हो जाती हैं, तब LIPS का मुख्य उपयोग, विभिन्न सामग्री की रासायनिक संरचना के विश्लेषण (analyse) में किया जाता है। जैसे चट्टान के नमूने (rock samples)!
लेसर के प्रकार (Types of LASER)
लेसर पाँच प्रकार की होती हैं
(i) गैस लेसर (Gas LASER) हीलियम निऑन लेसर अलग-अलग तरह की तरंगदैर्ध्य उत्सर्जित करता है तथा 633 मिमी पर ओपरेटिंग इकाई शिक्षा के क्षेत्र में बहुत आगामी होती है। ऑर्गन-आयन लेसर प्रकाश में 351-599 मिमी परास की तरंगदैर्ध्य उत्सर्जित करता है। मेटल आयन लेसर गैस लेसर होती है, जोकि (0) अत्यधिक मात्रा में पराबैंगनी तरंगदैर्ध्य उत्पन्न करती है। कार्बन डाइऑक्साइड लेसर सैकड़ों किलोवाट की तरंगदैर्ध्य उत्पन्न कर सकती है। इसका उपयोग कारखानों में कटिंग व वैल्डिंग में किया जाता है।
(ii) रासायनिक लेसर (Chemical LASER) यह हाइड्रोजन व ड्यूटीरियम का संयोजन है। यह इथाइलीन में नाइट्रोजन ट्राइक्लोराइड का संयोजन उत्पाद है।
(iii) ठोस अवस्था लेसर (Solid State LASER) इसे आयनों के साथ एक ठोस क्रिस्टलीय (crystalline) डोपिंग से बनाने के लिए आवश्यक ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
(iv) फाइबर होस्ट लेसर (Fibre-Hosted LASER) जब प्रकाश किसी प्रकाशीय तन्त्रिका में कुल आन्तरिक परिवर्तन करता है तो वह तन्त्रिका (फाइबर) लेसर कहलाता है।
(v) अर्द्धचालक लेसर (Semiconductor LASER ) एक ठोस स्तर की मशीन जिसमें दो अर्द्धचालकों की बाहरी सतह, तन्त्रिका के दोनों ओर होती है तथा ध्रुवदर्शकता के कारण लेसर विकिरण उत्पन्न करती है।
लेसर किरणों के उपयोग (Uses of LASER Rays)
(i) लेसर प्रकाश के उपयोग से एक विशेष प्रकार के त्रिविमीय चित्र खींचे जा सकते हैं, जिससे होलोग्राफी (holography) तकनीक सम्भव हो सकती है।
(ii) प्रकाश तन्तु और अर्द्धचालक लेसर के सहसंयोजन से ऑप्टिकल सूचना प्रसंस्करण का उपयोग फिंगर प्रिन्ट पहचान, उपग्रहों तथा उच्च उड़ान भरते एयरक्राफ्टों से खीचीं गई तस्वीरों के प्रसंस्करण, आदि के क्षेत्र में किया जाता है।
(iii) इसका उपयोग रेटिना सर्जरी, निकट दोष सुधारने, पेट में रक्तस्राव को रोकने, किडनी के उपचार आदि में किया जाता है।
(iv) इसका उपयोग विद्युत परिपथों तथा सुपर कम्प्यूटर बनाने में किया जाता है।
(v) हवाई यात्रा को सुरक्षित बनाने के लिए वायुयान के उड़ान का पथ शुद्धतम निर्धारण लेसर के प्रयोग से किया जाता है।
(vi) अत्यन्त कठोर वस्तुओं को काटने, कपड़ा काटने, पुल, भवन, सुरंग, पाइप, खनन, आदि के सर्वेक्षण एवं निर्माण कार्यों, बिना किसी हानि के वेल्डिंग करने, हीरे को तराशने, रत्न प्रसंस्करण, प्लास्टिक, कार्ड बोर्ड, इत्यादि से सम्बन्धित उद्योगों में लेसर का उपयोग सफलतापूर्वक किया जा रहा है।
(vii) लेसर का उपयोग कैंसर के उपचार, हृदय की धमनियों में रक्त के जमने से उत्पन्न अवरोधों को दूर करने, नेत्रों के विभिन्न प्रकार के ऑपरेशनों, आदि में किया जाता है
भारत में लेसर प्रौद्योगिकी (LASER Technology in India)
◆ डा. होमी ने 1964 में भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र में लेसर अर्द्धचालक को विकसित किया।
◆ भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र (बार्क) द्वारा 1965 में गैलियम-आर्सेनिक (Ga-As) अर्द्धचालक लेसर का निर्माण किया गया। भारत में लेसर प्रौद्योगिकी के विकास के सन्दर्भ में सर्वोच्च संस्था भाभा परमाणु अनुसन्धान केन्द्र, ट्रॉम्बे द्वारा रूबी लेसर, सोडियम ग्लास लेसर, कार्बन डाइऑक्साइड लेसर, रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी हेतु एक 50 मेगावाट के लेसर, आदि का विकास किया गया है।
◆ भारत में निर्मित लेसर अर्द्धचालक द्वारा प्रकाशीय दूरसंचार की स्थापना सन् 1966 में भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र तथा टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फाउन्डेशन रिसर्च के बीच हुई थी।
◆ परमाणु ऊर्जा विभाग में लेसर से सम्बन्धित गतिविधियों को 1987 में प्रोत्साहन मिला तथा उन्नत प्रौद्योगिकी के लिए एक नए शोध संस्थान नामक केन्द्र का गठन किया गया।
◆ लेसर किरण की उपयुक्त तरंगदैर्ध्य की सहायता से चिकित्सक, रोगियों का उपचार करते हैं।
मेसर (MASER)
मेसर का आविष्कार तीन अमेरिकन वैज्ञानिकों गैरेलोन, गाइजर तथा एच टाउंनेस ने 1952 में किया था। MASER का पूर्ण रूप Microwave Amplification by Stimulated Emission of Radiation, है जिसका अर्थ है विकिरण के उद्दीप्ति उत्सर्जन द्वारा सूक्ष्म तरंगों का प्रवर्धन। लेसर द्वारा दृश्य प्रकाश तरंगों का कला-सम्बद्ध, एकवर्णी, संकीर्ण तथा अति तीव्र पुंज प्राप्त होता है।
ऐसा ही पुंज मेसर द्वारा अदृश्य सूक्ष्म तरंगों का प्राप्त होता है। इसीलिए मेसर को प्रकाशीय मेसर (optical MASER) भी कहते हैं।
मेसर के उपयोग (Uses of MASER) 
(i) मेसर तरंगों का उपयोग राडार में करके कृत्रिम उपग्रहों आदि का ठीक-ठीक पता लगाया जाता है तथा कईं मुद्दों के सम्बन्ध में आवश्यक जानकारी प्राप्त की जाती है, लेसर की तरह मेसर तरंगों के द्वारा कईं रोगों का इलाज किया जाता है।
(ii) मेसर तंरगों का उपयोग समुद्र के अन्दर सन्देश भेजने में किया जाता है।
रडार (RADAR)
रडार (RADAR) शब्द अंग्रेजी वाक्य Radio Detection and Ranging का संक्षिप्त रूप है। इसके द्वारा रेडियो तरंगों की सहायता से आकाशगामी वायुयान की स्थिति व दूरी का पता लगाया जाता है। रडार से प्रेषित एवं वायुयान से परावर्तित तरंगों के मध्य समान्तर दूरी ज्ञात करके वायुयान, जहाज तथा मिसाइल, आदि की दूरी ज्ञात से की जा सकती है।
रडार के उपयोग (Uses of RADAR)
(i) रडार द्वारा कुहरे के समय वायुयान पृथ्वी पर सुरक्षित उतर आते हैं। जब वायुयान हवाई अड्डे के निकट पहुँचता है, तो उसका चालक पृथ्वी पर लगे राडार से संकेत पाकर उचित मार्ग पर चलकर नीचे उतर आता है।
(ii) रडार द्वारा ऊँचाई पर उड़ने वाले वायुयान तथा समुद्र में चलने वाले जलयान धुन्ध या बादल होने पर सामने आने वाली रुकावटों; जैस पहाड़, मीनार, हिमखण्ड (iceberg), आदि का चित्र देख लेते हैं और उनसे बचकर आगे बढ़ते हैं।
(iii) रडार की सहायता से पृथ्वी के अन्दर स्थित धातु, तेल तथा अन्य उपयोगी वस्तुओं का पता लगाया जाता है।
(iv) जलवायु-विज्ञान में रडार का बहुत महत्त्व है। जल की बूँदों से परावर्तित रेडियो तरंग द्वारा बादलों की स्थिति तथा दूरी का पता लगाकर मौसम की भविष्यवाणी की जाती है।
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