मुद्रण यंत्र की विकास यात्रा को रेखांकित करें। यह आधुनिक स्वरूप में कैसे पहुँचा?

मुद्रण यंत्र की विकास यात्रा को रेखांकित करें। यह आधुनिक स्वरूप में कैसे पहुँचा?

उत्तर ⇒ मुद्रण कला के आविष्कार और विकास का श्रेय चीन को जाता है। 1041 ई० में एक चीनी व्यक्ति पि-शेंग ने मिट्टी के मुद्रा बनाए। इन अक्षर मुद्रों को साजन कर छाप लिया जा सकता था। इस पद्धति ने ब्लॉक प्रिंटिंग का स्थान ले लिया। धातु के मुवेबल टाइप द्वारा प्रथम पुस्तक 13वीं सदी के पूर्वार्द्ध में मध्य
कोरिया में छापी गई। यद्यपि मवेबल टाइपों द्वारा मुद्रण कला का आविष्कार ता पूरख में ही हुआ, परंतु इस कला का विकास यूरोप में अधिक हुआ। 13वीं सदी के आतम में रोमन मिशनरी एवं मार्कोपोलो द्वारा ब्लॉक प्रिंटिंग के नमनं यरोप पहुँचे। रोमन लिपि में अक्षरों की संख्या कम होने के कारण लकड़ी तथा धातु के बने मूर्वबल टाइम का प्रसार तेजी से हुआ। इसी काल में शिक्षा के प्रसार, व्यापार एवं मिशनारया का बढ़ती गतिविधियों से सस्ती मुद्रित सामग्रियों की माँग तेजी से बढ़ी। इस मांग की पति के लिए तेज और सस्ती मद्रण तकनीकी की आवश्यकता थी, जिसे (14304 दशक में) स्ट्रेसवर्ग के योहान गुटेन्वर्ग ने पूरा कर दिखाया।
18वीं सदी के अंतिम चरण तक धातु के बने छापाखानं काम करने लगे। 19वीं-20वीं सदी में छापाखाना में और अधिक तकनीकी सुधार किए गए। 19वा शताब्दी में न्यूयार्क निवासी एम० ए० हो ने शक्ति-चालित बेलनाकार प्रेस का निर्माण किया। इसके द्वारा प्रतिघंटा आठ हजार ताव छापे जाने लगे। इससे मुद्रण में तेजी आई। 20वीं सदी के आरंभ से बिजली संचालित प्रेस व्यवहार में आया। इसने छपाई को और गति प्रदान की। प्रेस में अन्य तकनीकी बदलाव भी लाए गए।

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